पुरुषोत्तम जोशी सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हो गए हैं। पूरे कार्यकाल के दौरान ईमानदारी से उन्होंने अपना कार्य किया। शेखर और सुभाष जोशी उनके बेटे हैं। बेटों का मानना है कि उनके पिता को वो सम्मान नहीं मिला जिसके कि वे हकदार हैं। अपने पिता को 'इक्कीस तोपों की सलामी' देने के लिए शेखर और सुभाष ऐसा कुछ करते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस फिल्म में दिल को छू लेने वाली कॉमेडी है जो सोचने के लिए भी मजबूर करती है।