एजेंट विनोद : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
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निर्माता : सैफ अली खान, दिनेश विजान
निर्देशक : श्रीराम राघवन
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : सैफ अली खान, करीना कपूर, गुलशन ग्रोवर, प्रेम चोपड़ा, रवि किशन, जाकिर हुसैन, धृतमान चटर्जी, मलिका हेडन, शाहबाज़ खान
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 48 मिनट * 19 रील
रेटिंग : 2.5/5

अक्सर देखने में आता है कि फिल्म को स्टाइलिश और रिच लुक देने में निर्देशक इतना खो जाता है कि फिल्म के कंटेंट पर उसका ध्यान कम जाता है। लिहाजा फिल्म एक ऐसी डिश के रूप में तैयार होती है जो देखने में बेहद आकर्षक लगती है, लेकिन उसका स्वाद बेमजा रहता है।

‘एजेंट विनोद’ के साथ भी यही कहानी दोहराई है। एजेंट विनोद को भारत का जेम्स बांड बनाने में निर्देशक श्रीराम राघवन इस कदर खो गए कि उनका सारा ध्यान कलाकारों के लुक, शॉट टेकिंग, फाइटिंग सीक्वेंस, कार चेजिंग पर रहा। उन्हें लगा कि कहानी और स्क्रीनप्ले की कमियों को वे इनके जरिये छिपा देंगे, लेकिन ऐसा हो न सका।

फिल्म के हीरो सैफ अली खान कोई टॉम क्रूज या रजनीकांत या सलमान खान तो है नहीं कि जिनकी अदाओं के चलते दर्शक सारी खामियों को माफ कर दे और ज्यादा दिमाग नहीं लड़ाए। निर्देशक के रूप में श्रीराम राघवन का नाम होने से एक इं‍टेलिजेंट थ्रिलर की उम्मीद जागना भी स्वाभाविक है और यहां भी फिल्म अपेक्षा पर खरी नहीं उतरती।

फिल्म की कहानी साधारण है। रूस में मरने के पहले रॉ एजेंट विनोद का साथी एक मैसेज भेजता है जिसमें नंबर ‘242’ का जिक्र है। उसकी हत्या क्यों की गई है, इसका पता लगाने के लिए एजेंट विनोद (सैफ अली खान) को रूस भेजा जाता है।

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सूत्र ढूंढते हुए विनोद माफिया डॉन अबू नजीर (राम कपूर) के पास जा पहुंचता है जिसके जरिये उसे पता चलता है कि 242 का राज तो मोरक्को में रहने वाला डेविड कज़ान (प्रेम चोपड़ा) जानता है। मोरक्को पहुंचने पर उसे और क्लू मिलते हैं जिसके जरिये वह कई देशों की यात्रा करते हुए न केवल 242 का राज पता करता है बल्कि दुश्मन के खतरनाक इरादों को भी नाकाम कर देता है।

श्रीराम राघवन और अरिजित बिस्वास ने मिलकर फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखा है, जो बेहद लंबा और खींचा हुआ है। कई देशों की सैर करवाई गई। कई दृश्यों को बेवजह ठूंसा गया जिससे न केवल फिल्म लंबी हो गई बल्कि एक सीमा बाद दर्शक यह सब देख थकने लगता है।

स्क्रीनप्ले भी ऐसा लिखा गया है कि दर्शक ड्रामे के साथ जुड़ नहीं पाता। होना तो ये चाहिए था कि एजेंट विनोद का सफर इतना बढि़या हो कि दर्शकों को उसमें मजा आए। जैसे-जैसे वह दुश्मन के नजदीक पहुंचे दर्शकों की दिलचस्पी भी बढ़े, लेकिन विनोद का यह सफर टुकड़ों-टुकड़ों में ही दिलचस्प है।

जहां चीजों को स्पष्ट किया जाना था वहां पर फिल्म की गति जरूरत से ज्यादा तेज कर दी गई है जिससे कुछ बातें अस्पष्ट रह जाती हैं। वहीं बेकार की बातों (मुजरा, लंबे फाइट सीन) को खूब वक्त दिया गया है।

निर्देशक श्रीराम राघवन चीजों का संतुलन ठीक से नहीं बैठा सके हैं। कई बार फिल्म गंभीर नजर आती है तो कई बार हास्यास्पद। सिनेमा के नाम पर उन्होंने कुछ ज्यादा ही छूट ली है। प्लस पाइंट्स की बात की जाए तो फिल्म बेहद स्टाइलिश है। कई फाइटिंग सीक्वेंस जबरदस्त बन पड़े हैं। राघवन ने कई शॉट्स उम्दा तरीके से फिल्माए हैं। लाइट्स और कलर्स का बखूबी उपयोग किया गया है। फिल्म के बैकग्राउंड म्युजिक में हर देश का लोकल फ्लेवर दिया गया है।

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एजेंट विनोद का रोल सैफ अली खान ने बखूबी निभाया है। जो स्टाइल उनका रोल डिमांड करता है उस पर सैफ खरे उतरे हैं। एक्शन दृश्यों में वे नेचुरल लगे हैं। करीना कपूर को करने को ज्यादा कुछ नहीं था और ज्यादातर वक्त वे उदास चेहरा लिए ही नजर आई ं। सैफ और उनकी केमिस्ट्री एकदम ठंडी रही। रवि किशन, राम कपूर, प्रेम चोपड़ा, धृतमान चटर्जी, गुलशन ग्रोवर, शाहबाज खान छोटे-छोटे रोल में अपना प्रभाव छोड़ते हैं।

कुल मिलाकर एजेंट विनोद बहुत अच्छी नहीं तो बहुत बुरी फिल्म भी नहीं है। एक्शन और स्टाइलिश फिल्म के शौकीनों को यह पसंद आ सकती है, लेकिन जो लोग एक इंटेलिजेंट थ्रिलर की उम्मीद करते हैं उन्हें ये निराश करती है।

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