देल्ही बैली : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
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निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला, आमिर खान, किरण राव, जिम फरगेले
निर्देशक : अभिनय देव
संगीत : राम सम्पत
कलाकार : इमरान खान, पूर्णा जगन्नाथ, शेनाज़ ट्रेजरीवाला, राहुल पेंडकालकर, वीर दास, कुणाल रॉय कपूर, विजय राज
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 96 मिनट * 10 रील
रेटिंग : 3/5

अनुराग कश्यप की फिल्म ‘देव डी’ के बाद हिंदी सिनेमा में बोल्डनेस बढ़ गई है। अब तक डरते-डरते बोल्ड सीन और संवाद रखने वाले फिल्मकारों में ‍भी हिम्मत आ गई। सेंसर की सोच भी वयस्क हो गई और उसने भी एडल्ट फिल्म की थीम को समझते हुए इस तरह के संवादों और दृश्यों को पास किया। इसका ही नतीजा है कि देल्ही बैली जैसी फिल्म सामने आई।

इस फिल्म में जिस तरह के दृश्य और संवाद हैं शायद ही पहले हिंदी फिल्मों में नजर आए हों या सुनाई दिए हों। हर दूसरे संवादों में अपशब्दों का प्रयोग है। गालियाँ हैं। दरअसल फिल्म के किरदार ही ऐसे हैं कि यकीन किया जा सकता है कि वे इस तरह के संवाद बोलते होंगे। यूँ भी आजकल फिल्मों को ऐसा लुक दिया जाता है कि वो सच्चाई के नजदीक लगे।

फिल्म की कहानी एकदम साधारण है। ये डेविड धवन की फिल्म की कहानी भी हो सकती है और प्रियदर्शन की भी। सवाल प्रस्तुतिकरण का है। डेविड धवन इसे अपने अंदाज में बनाते। उनके हास्य दृश्यों में द्विअर्थी संवाद हो सकते थे। प्रियदर्शन यदि इस कहानी पर फिल्म बनाते तो उसमें गलतफहमियों की भरमार होती।

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अभिनय देव का प्रस्तुतिकरण और अक्षत वर्मा की लिखी स्क्रिप्ट इस मायने में अलग है क्योंकि इसमें पॉटी ह्यूमर है, दोस्तों के बीच होने वाली बातचीत है जिसमें की आमतौर पर गालियों का आदान-प्रदान होता है और टॉयलेट जोक्स हैं। हर घटना को और किरदार को इनसे ऐसे जोड़ा गया है कि ये चीज ठूँसी हुई नहीं लगती हैं।

कुछ दृश्यों या गानों को आपत्तिजनक माना जा सकता है, लेकिन इन्हें छोड़ दिया जाए तो बाकी का आप आनंद उठा सकते हैं। कुछ दृश्य तो इतने मजेदार हैं कि उनके खत्म होने के मिनटों बाद तक भी हँसा जा सकता है। जैसे ऑरेंज ज्यूस वाले दृश्य, सीलिंग फैन और छत का गिरना, ताशी और मेनका का होटल रूम वाला दृश्य, बुर्का पहन कर दोनों का किस करने वाला दृश्य और नितिन के पेट से तरह-तरह की आवाज निकलने वाले दृश्य।

स्क्रिप्ट बेहद कसी हुई है जिससे साधारण कहानी भी अच्छी लगती है और फिल्म तेजी से भागती है। ये आमिर खान का ही कमाल है कि 96 मिनट की ‍इस फिल्म में वे इंटरवल के लिए राजी नहीं हुए वरना मल्टीप्लेक्सेस वालों की कमाई टिकट बेचने से ज्यादा समोसे बेचने में ही होती है।

कहानी है ताशी, अरुप और नितिन नामक दोस्तों की, जो बहुत ही गंदे मकान में जानवरों की तरह रहते हैं। पता नही ताशी जैसे इंसान को कोई गर्लफ्रेंड कैसे मिल सकती है। तीनों के रास्ते अपराधियों के रास्ते से टकरा जाते हैं और उसके बाद शुरू होता है भागादौड़ी का खेल।

भले ही ये तीनों गालियाँ बकते रहते हैं, लेकिन दिल से बड़े अच्छे इंसान हैं। अरुण तो अपनी गर्लफ्रेंड, जिससे वह शादी नहीं करना चाहता है, को बचाने के लिए अपनी जिंदगी तक दाँव पर लगा देता है और उसका साथ दोनों दोस्त भी देते हैं।

फिल्म में विजय राज भी हैं और एक खतरनाक अपराधी की भूमिका उन्होंने क्या खूब निभाई है। कब बोलना और कब पॉज़ लेना है ये उनसे सीखा जा सकता है। इमरान खान इस फिल्म के एकमात्र सितारा कलाकार हैं, लेकिन न्याय सभी किरदारों के साथ हुआ है।

इमरान का अभिनय भी अच्छा है और उन्होंने दिखाया है कि चॉकलेटी भूमिका के अलावा भी वे कुछ और कर सकते हैं, लेकिन उनके दोस्त के रूप में कुणाल रॉय कपूर और वीर दास भारी पड़े हैं। कुणाल रॉय की टाइमिंग और संवाद अदायगी बेहतरीन है। मेनका के रूप में पूर्णा जगन्नाथ प्रभावित करती है।

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राम सम्पत ने बेहतरीन धुनें बनाई हैं, लेकिन जो गीत लिखे गए हैं वो डबल मिनिंग वाले हैं। फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट देकर कम उम्र वाले दर्शकों को रोका जा सकता है, लेकिन गानों को सुनने से रोकना संभव नहीं है। इसलिए इस तरह के गानों से बचा जा सकता था।

निर्देशक के रूप में अभिनय देव प्रभावित करते हैं। लगता ही नहीं है कि इसी शख्स ने ‘गेम’ नामक महाफ्लॉप फिल्म भी बनाई थी। शायद आमिर की संगति का असर है। उनका साथ मिलते ही साधारण भी असाधारण हो जाता है।

‘देल्ही बैली’ को वयस्क सोच के साथ देखा जाए तो इसका मजा आप उठा सकते हैं। फिल्म के अंत में आमिर खान कहते हैं कि चौका जब उड़ता हुआ जाए तो उसे छक्का कहते हैं। वे छक्का लगाने में कामयाब हुए या कैच आउट इसका फैसला दर्शक करेंगे।

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