दो दूनी चार : मध्यमवर्गीय जीवन की सुंदर कविता

दीपक असीम
बैनर : प्लानमैन मोशन पिक्चर्स, वाल्ट डिज्नी पिक्चर्स
निर्माता : अरिंदम चौधरी
निर्देशक : हबीब फैजल
कलाकार : ऋषि कपूर, नीतू सिंह, अर्चित कृष्णा, अदिती वासुदेव

" दो दूनी चार" जब खत्म होती है, तो जी चाहता है खड़े होकर तालियाँ बजाई जाएँ। फिल्म का अंत जरा-सा फिल्मी हो गया है, वरना हबीब फैसल ने फिल्म को ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी जैसी संवेदनशीलता और सादगी से चलाया है।

इस फिल्म के आर्ट डायरेक्टर को यदि कोई पुरस्कार नहीं मिला तो बहुत नाइंसाफी होगी। मध्यमवर्गीय आदमी के घर का सेट ऐसा तैयार किया है कि दर्शकों को हर चीज अपनी-सी लगती है।

वो रंग उड़ा-सा फ्रिज, वो बहुत सारे स्टीकरों से बदरंग लोहे की अलमारी, वो सँकरा-सा किचन, वो गंदा-सा वाशिंग एरिया, वो गली, वो पड़ोसी...। वाकई ये मध्यमवर्गीय जिंदगी की कविता है। ऐसी कविता जिसमें हँसी भी है, उदासी भी।

ऋषि कपूर इतने अच्छे एक्टर हैं, ये पहले इसलिए पता नहीं चल पाया था क्योंकि वे अधिकतर प्रेमी के रोल ही में आए थे। पहली बार उन्होंने कुछ हटकर किया है और ऐसा किया है कि यदि उन्हें इस फिल्म में अभिनय के लिए अवॉर्ड नहीं मिला, तो ये भी नाइंसाफी होगी।

साथ ही कास्टिंग डायरेक्टर भी इनाम का हकदार है कि उसने बच्चों का रोल करने के लिए दो ऐसे किशोरों को छाँटा है, जिनसे बेहतर शायद कोई और नहीं हो सकते थे। तेजतर्रार महत्वाकांक्षी लड़की पायल का रोल अदिति वासुदेव ने और ऐशपसंद लड़के सेंडी का रोल अर्चित कृष्णा ने गजब किया है।

फिल्म बहुत सारी प्रतिभाओं के जोड़ से बनती है, सो ड्रेस डिजाइनर को भी नहीं भूला जा सकता और गीतकार को भी। "माँगे की घोड़ी" वाला गीत तो गुलज़ार की सहजता की याद दिलाता है।

अक्सर यह होता है कि हम पर्दे के पीछे के लोगों को याद नहीं करते, मगर इस फिल्म में पर्दे के पीछे रहने वालों ने ऐसा ठोस काम किया है कि जी चाहता है, नेट से नाम-पता ढूँढकर उन्हें बधाई भेजी जाए। सबकुछ इतना विश्वसनीय बना दिया गया है कि हर कलाकार का अभिनय खिल-खिल उठा है। फिल्म की कहानी एक अलग ही तरह की विचारोत्तेजना पैदा करती है।

फिल्म "दबंग" के बाद यदि कोई देखने लायक फिल्म आई है, तो यही। अगर इसे न देखा गया, तो ये न सिर्फ अच्छा काम करने वालों के साथ नाइंसाफी होगी, बल्कि अपने-आपके साथ भी होगी। इसे सच्चे अर्थों में पारिवारिक फिल्म कहा जा सकता है।

पारिवारिक फिल्मों के नाम पर अब सत्रह सदस्यों वाला परिवार पेश नहीं किया जा सकता, जिसमें सास-बहू के झगड़े चल रहे हों। संयुक्त परिवार अब कहाँ हैं? अब तो न्यूक्लियर फैमिलीज हैं, छोटे परिवार हैं। इसीलिए ये भी पारिवारिक फिल्म है।

Show comments

बॉलीवुड हलचल

नरसिंह जयंती पर महावतार नरसिम्हा की रिलीज डेट की हुई घोषणा, शेयर किया खास वीडियो

तन्वी द ग्रेट से बॉलीवुड डेब्यू करने जा रहे करण टैकर, फिल्म में निभाएंगे यह किरदार

बैटलग्राउंड सीजन 1 को मिल गया विनर, अभिषेक मल्हान की टीम ने जीती ट्रॉफी

Mother's Day 2025 : करिश्मा कपूर से लेकर सुष्मिता सेन तक - डिजिटल स्क्रीन्स पर मम्मी जिन्होंने प्रभाव छोड़ा

मां ही नहीं, बेटी भी हैं बॉलीवुड की स्टाइलिश एक्ट्रेस, ये हैं फेमस मां-बेटी की जोड़ियां

सभी देखें

जरूर पढ़ें

रेड 2 मूवी रिव्यू: रेड की परछाई में भटकी अजय देवगन की एक औसत फिल्म

बॉडीकॉन ड्रेस पहन पलक तिवारी ने फ्लॉन्‍ट किया कर्वी फिगर, लिफ्ट के अंदर बोल्ड अंदाज में दिए पोज

मोनोकिनी पहन स्विमिंग पूल में उतरीं राशि खन्ना, बोल्ड अदाओं से इंटरनेट पर मचाया तहलका

मोनालिसा ने फिर गिराई बिजलियां, जंप सूट में शेयर की सुपर हॉट तस्वीरें

जाट मूवी रिव्यू: सनी देओल का ढाई किलो का हथौड़ा और सॉरी बोल का झगड़ा