पुलिस के नजरिए से दिखाया गया शूटआउट

समय ताम्रकर
निर्माता : संजय गुप्ता-शोभा कपूर-एकता कपू र
निर्देशक : अपूर्व लाखिया
संगीत : आनंद राज आनंद, मीका, बिद्दू
कलाकार : अमिताभ बच्चन, संजय दत्त, विवेक ओबेरॉय, तुषार कपूर, नेहा धूपिय ा

IFM
1991 में लोखंडवाला में हुआ शूट आउट को हमेशा ही संदेह की दृष्टि से देखा गया। इस शूटआउट के बारे में कहा गया था कि यह दाऊद के इशारे पर हुआ था। कहा जाता है कि चारों तरफ से घिरे अपराधी आत्मसमर्पण करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें मार डाला। निर्देशक अपूर्व लाखिया ने इस एनकाउंटर को पुलिस के नजरिए से अपनी फिल्म 'शूटआउट एट लोखंडवाला' में दिखाया है। अपूर्व ने इस घटना के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी पुलिस रेकॉर्ड से ही प्राप्त की होगी, इसलिए पुलिस का पक्ष मजबूत होना स्वाभाविक है।

सत्य घटनाओं पर फिल्म बनाना थोड़ा मुश्किल काम होता है। या तो डाक्यूमेंट्री बन जाती है या फिर नमक-मिर्च ज्यादा हो जाता है। आधी हकीकत आधा फसाना के बिना ये फिल्में नहीं बनाई जा सकती है। अपूर्व ने हकीकत और फसाने का बैलेंस कायम रखा है। लोखंडवाला एनकाउंटर बहुत बड़ी घटना नहीं थी और बहुत से लोगों को इस बारे में कुछ भी पता नहीं है। इसके बावजूद उन्हें फिल्म को समझने में कोई दिक्कत नहीं होती है।

लाखिया ने अपनी तरफ से इस घटना के पीछे छिपे सत्य के बारे में पड़ताल करने की कोशिश नहीं की है। जैसा सबको पता है वैसा का वैसा उन्होंने दर्शकों के सम्मुख इस घटना का फिल्मी रूपांतरण किया है। इसीलिए उन्होंने फिल्म के प्रचार में लिखा है सच्ची अफवाहों पर आधारित।

शूटआउट एट लोखंडवाला सच था या फर्जी यह सोचने का काम निर्देशक ने दर्शकों के ऊपर छोड़ दिया है। फिल्म के प्रदर्शित होने के एक दिन पूर्व अंडरवर्ल्ड के पूर्व डॉन एजाज लकड़ावाला ने यह खुलासा किया है कि यह शूट आउट फर्जी था और इसे दाऊद के इशारे पर अंजाम दिया गया था।

माया डोलास (विवेक ओबेरॉय) दाऊद का आदमी था। वह दाऊद के इशारे पर मुंबई में अपराध करता था। काम करते-करते माया को यह घमंड हो गया कि उसे अब दाऊद की जरूरत नहीं है। उसने दाऊद के कायदे-कानून मानने से इंकार कर दिया। पु‍लिस ऑफिसर खान (संजय दत्त) अपने ग्रुप एटीएस (एंटी टेरेरिस्ट स्क्वॉड) के जरिए माया और उसके साथियों की तलाश में रहते हैं।

एक दिन उन्हें मुखबिर के जरिए सूचना मिलती है कि माया और उसके साथी लोखंडवाला स्थित एक फ्लैट में छिपे हुए हैं। कहा जाता है कि उन्हें मुखबिर ने नहीं बल्कि खुद दाऊद ने फोन कर माया का पता बताया था। निर्देशक अपूर्व लाखिया ने दोनों पहलूओं को दिखाया है। पुलिस उस क्षेत्र को चारों और से घेर लेती हैं। खान अपने साथियों को यह निर्देश देता है कि जैसे ही वे अपराधी दिखें वे उन्हें मार डाले। एक अपराधी जिंदा पकड़ा जाता है तो खान उसे गोलियों से भून देता है। छ: घंटे चले इस एनकाउंटर में सारे अपराधी मारे गए थे।

अपूर्व का कहानी कहने का अंदाज बहुत रोचक है। एक वकील (अमिताभ बच्चन) के सामने खान, कविराज पाटिल (सुनील शेट्टी) और जावेद शेख (अरबाज खान) बैठे हुए हैं। खान पर यह आरोप है कि उन्होंने एनकाउंटर के जरिए कई लोगों को मार डाला। खान अपनी सफाई देता है और कहानी चलती रहती है।

खान अपनी सफाई में कहता है कि माया जैसे लोगों को मार डालना चाहिए क्योंकि उनके जिंदा रहने से किसी को फायदा नहीं है। अमिताभ अंत में जज से सवाल पूछते हैं कि आपके घर के बाहर कोई आदमी गन लिए खड़ा है। आप क्या चाहेंगे कि वो पुलिस ऑफिसर खान हो या माया डोलास जैसा अंडरवर्ल्ड का आदमी।

अपूर्व ने पुलिस में काम करने वालों के मानवीय पहलू भी दिखाए हैं। पुलिसवाले दिन-रात काम करते रहते हैं और इस वजह से उनके परिवार वाले उपेक्षित महसूस करते हैं। इससे बात तलाक तक जा पहुँचती है। हमेशा अपराधियों से घिरे रहने के कारण वे जिंदगी के कई अच्छे क्षण खो देते हैं।

अंतिम समय फ्लैट में फंसे माया और उसके साथी टेलीफोन के जरिए अपने परिवार से बात करते हैं और उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है। शायद उन्हें भी दर्शकों की थोड़ी हमदर्दी मिलें, ऐसी कोशिश निर्देशक ने की है।
फिल्म का एक्शन रियल है। पूरी फिल्म में हजारों गोलियाँ चलती है और कई जानें जाती है। हिंसा के कुछ दृश्य ऐसे हैं कि दिल दहल जाता है। दो गानों को हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि वे मुँह में कंकड़ का काम करते हैं।

पुलिस ऑफिसर खान बने संजय दत्त का अभिनय शानदार है। सुनील शेट्टी और अरबाज खान ने उनका साथ बखूबी निभाया है। माया डोलास के रूप में विवेक ओबेरॉय ने अपनी छाप छोड़ी है। उनकी बॉडी लैंग्वेज जबरदस्त है। तुषार कपूर ने ओवर एक्टिंग की है। अभिषेक को पहली रील में ही मार दिया गया। पता नहीं उन्होंने यह भूमिका क्यों स्वीकार की। अमिताभ का रोल भी छोटा है। नायिकाओं के हिस्से में कुछ भी नहीं था। नेहा धूपिया, दिया मिर्जा और आरती छाबरिया को दो-चार दृश्य मिले हैं। फिल्म के अन्य तकनीकी पक्ष मजबूत है।

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