निर्देशक मधुर भंडारकर को पोल खोलने वाला निर्देशक माना जाता है क्योंकि वे प्रत्येक कार्य क्षेत्र के अँधेरे में छिपे हुए पक्ष पर रोशनी डालकर उसका कुरूप चेहरा सबके सामने प्रस्तुत करते हैं। इस बार मधुर के निशाने पर फ़ैशन जगत है। तेज रोशनी, छरहरे बदन, खूबसूरत चेहरे, स्टाइलिश ड्रेसेस और एटीट्यूड लिए मॉडल्स की जिंदगी और फैशन की दुनिया में परदे के पीछे क्या होता है, यह जानने के लिए मधुर मॉडल्स के ग्रीन रूम में कैमरा लिए घुस गए हैं।
कहानी है चंडीगढ़ में रहने वाली मेघना माथुर (प्रियंक चोपड़ा) की, जिसकी आँखों में ढेर सारे सपने हैं। अपने सपनों को पूरा करने के लिए उसे अपना शहर छोटा लगता है और वह परिवार के खिलाफ मुंबई जाने का निर्णय लेती है। सपने पूरे करने के चक्कर में अक्सर उसके लिए चुकाया जाने वाला मूल्य नजर अंदाज कर दिया जाता है, जिसका परिणाम बेहद घातक सिद्ध होता है। यही गलती मेघना से होती है। जब उसे इस बात का अहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। अपनी महत्वाकांक्षाओं को वह पूरा तो कर लेती है, लेकिन शिखर पर पहुँचकर उसे अकेलेपन का अहसास होता है। वह अपने आपको खो देती है और उसे लगता है कि उसने इसकी बहुत बड़ी कीमत अदा की है।
फिल्म में जेनेट (मुग्धा गोडसे) और शोनाली गुजराल (कंगना) के रूप में दो और मुख्य किरदार हैं। जेनेट ने कड़ा संघर्ष किया, लेकिन वह सुपरमॉडल नहीं बन पाई। फ़ैशन जगत से जुड़े रहने के लिए वह राहुल (समीर सोनी) नामक शख्स से शादी कर लेती है, जो कि एक गे है।
शोनाली के रूप में मॉडल्स की मानसिक स्थिति को दिखाया गया है। वह सुपर मॉडल है, लेकिन काम के दबाव को वह सहन नहीं कर पाती और ड्रग्स में खुशी की तलाश करती है।
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मेघना माथुर फिल्म का केन्द्रीय पात्र है और उसके जरिए मधुर भंडारकर ने फैशन जगत की पड़ताल की है। इस दुनिया के ग्लैमरस चेहरे के पीछे छिपे तिकड़म, राजनीति, ईर्ष्या, गलाकाट प्रतियोगिता और शोषण को उन्होंने परदे पर पेश किया है। मॉडल्स के पास प्रसिद्धी और शोहरत होती है, लेकिन वे कंपनियों के गुलाम रहते हैं। कांट्रेक्ट के मकड़जाल में उन्हें ऐसा फँसाया जाता है कि उनका हरकदम कंपनियों के इशारे पर संचालित होता है। महिला मॉडल्स पर चूँकि बहुत पैसा लगा रहता है इसलिए वे न गर्भवती हो सकती हैं और न ही शादी कर सकती हैं।
मधुर का निर्देशन प्रशंसनीय है, लेकिन उनसे और ज्यादा की उम्मीद थी। फैशन जगत के बजाय उन्होंने मेघना माथुर की संघर्ष यात्रा पर ज्यादा ध्यान दिया। फिल्म देखने के बाद फैशन जगत की नकारात्मक छवि उभरती है। ऐसा लगता है कि सारी मॉडल्स कामयाबी पाने के लिए अपने नैतिक मूल्यों को ताक में रखती हैं। इस जगत के सकारात्मक पहलू को भी दिखाने की कोशिश की जानी थी, हालाँकि कुछ किरदारों के जरिए और अंत में मेघना की वापसी के रूप में उन्होंने यह प्रयास किया है, लेकिन यह काफी नहीं है। फिल्म की लंबाई भी अखरने वाली है और कम से कम इसे बीस मिनट छोटा किया जा सकता है।
फिल्म की पटकथा मध्यांतर के पहले और अंतिम तीस मिनट्स में चुस्त है। निरंजन आयंगर के संवाद छोटे और सटीक हैं। फिल्म में गीत-संगीत की गुंजाइश नहीं थी, लेकिन बार-बार पार्श्व में बजते ‘मर जावां’ और ‘जलवा’ अच्छे लगते हैं। फिल्म में दिखाई गई कास्ट्यूम्स उल्लेखनीय है।
प्रियंका चोपड़ा का अभिनय शानदार है। लगभग पूरे समय वे परदे पर दिखाई देती हैं। उनका किरदार थोड़ी कम उम्र की लड़की की माँग करता है, लेकिन अपने उम्दा अभिनय से वे इस कमी को वे पूरा करती हैं।
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कंगना का अभिनय सबसे बेहतरीन है। उनका रोल छोटा है, लेकिन वे असर छोड़ने में कामयाब रही हैं। उनका किरदार जो एटीट्यूड माँगता था उससे बढ़कर उन्होंने उसे दिया है। मुग्धा गोडसे को देख लगता ही नहीं कि यह उनकी पहली फिल्म है। पूरे आत्मविश्वास के साथ उन्होंने जेनेट के किरदार को परदे पर पेश किया है।
अरबाज खान, अर्जन बाजवा, हर्ष छाया और समीर सोनी ने भी अपने-अपने किरदारों को बखूबी अंजाम दिया है, लेकिन थोड़े अधिक लोकप्रिय चेहरों को लिया जाता तो प्रभाव और बढ़ता।
कुल मिलाकर ‘फैशन’ अपने विषय, उम्दा प्रस्तुतीकरण और सशक्त अभिनय की वजह से एक बार देखी जा सकती है।