बॉम्बे टू बैंकॉक : उबाऊ सफर

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यू/ए * 14 रील
बैनर : मुक्ता सर्चलाइट फिल्म्स
निर्देशक : नागेश कुकुनूर
कलाकार : श्रेयस तलपदे, लेना, विजय मौर्या, मनमीत सिंह, विक्रम इनामदार, नसीरुद्दीन शाह (मेहमान कलाकार)
रेटिंग : 1/5

फिल्म में भले ही नामी कलाकार नहीं हैं, परंतु निर्देशक के रूप में नागेश कुकुनूर का नाम देख फिल्म के अच्छे होने की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन ‘बॉम्बे टू बैंकॉक’ में नागेश पूरी तरह निराश करते हैं।

पिछले दिनों ‘बॉम्बे टू गोवा’, ‘धमाल’ और ‘गो’ जैसी फिल्में आई थीं, जिसमें पात्र एक शहर से दूसरे शहर की यात्रा करते हैं और उनके साथ घटनाएँ घटती हैं। ‘बॉम्बे टू बैंकॉक’ भी उसी तरह की फिल्म है, जिसमें हास्य पैदा करने की नाकाम कोशिश की गई है।

शंकर (श्रेयस तलपदे) मुंबई में बावर्ची का काम करता है। पैसों के लालच में वह एक डॉन के पैसे चुरा लेता है। जब डॉन के साथी उसके पीछे भागते हैं तो वह उन डॉक्टरों के दल में शामिल हो जाता है जो थाईलैंड जाने वाला रहता है।

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शंकर अपना पैसों से भरा बैग दवाइयों से भरे बॉक्स में डाल देता है। थाईलैंड पहुँचने पर वह मसाज गर्ल जस्मिन (लेना) को पसंद करने लगता है, लेकिन दोनों को बात करने में परेशानी महसूस होती है क्योंकि शंकर हिंदी और जस्मिन थाई भाषा बोलती है। इस काम में वह अपने दुभाषिए दोस्त रचविंदर (मनमीत सिंह) की मदद लेता है।

शंकर को पता चलता है कि उसका बैग बैंकॉक में है, वह ‍जस्मिन की सहायता से वहाँ पहुँचता है। इसी बीच शंकर के पीछे वो डॉन भी आ पहुँचता है जिसके शंकर ने पैसे चुराए थे। थोड़े बहुत उतार-चढ़ाव के साथ फिल्म समाप्त होती है।

फिल्म की कहानी बेहद कमजोर है। ढेर सारी खामियों से भरी पटकथा अपनी सहूलियत के हिसाब से लिखी गई है। लेखक ने कहानी के बजाय चरित्रों पर ज्यादा मेहनत की है।

शंकर पैसे चुराने के बाद सभी को आसानी से चकमा देता रहता है। डॉक्टरों के दल में शामिल होकर वह मरीजों का इलाज करता है और उसे कोई पकड़ नहीं पाता। जिस बॉक्स में वह पैसे छिपाता है उसके ऊपर वह कोई निशान या पहचान भी नहीं बनाता, जबकि सारे बॉक्स एक जैसे रहते हैं।

निर्देशक और लेखक के रूप में नागेश कहीं से भी प्रभावित नहीं करते। फिल्म में बहुत ही सीमित पात्र है और बार-बार वहीं चेहरों को देख ऊब होने लगती है। फिल्म का अंत जरूरत से ज्यादा लंबा है। कहने को तो फिल्म हास्य है, लेकिन हँसने के अवसर बेहद कम आते हैं। शंकर और जस्मिन की प्रेम कहानी में से प्रेम गायब है। पूरी फिल्म बोरियत से भरी हुई है।

श्रेयस तलपदे का अभिनय अच्छा है, लेकिन पूरी फिल्म का भार वे नहीं ढो सकते। जस्मिन की भूमिका के लिए थाई अभिनेत्री लेना उपयुक्त लगी। रचिंदर बने मनमीत सिंह और जैम के की भूमिका निभाने वाले विजय मौर्या राहत पहुँचाते हैं। नसीरुद्दीन शाह मात्र एक दृश्य के लिए परदे पर नजर आते हैं।

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फिल्म बहुत ही सीमित बजट में बनाई गई है और इसका असर परदे पर दिखाई देता है। फिल्म के नाम में बैंकॉक जरूर है, लेकिन बैंकॉक लगभग नदारद है। सुदीप चटर्जी ने कहानी को फिल्माते हुए इतना कम प्रकाश रखा है कि ज्यादातर परदे पर अँधेरा नजर आता है। गानों में ‘सेम-सेम बट डिफरेंट’ ही याद रहता है। कुल मिलाकर ‘बॉम्बे टू बैंकॉक’ का यह सफर बेहद उबाऊ और थकाऊ है।
इस फिल्म के बारे में पाठक भी अपनी समीक्षा भेज सकते हैं। सर्वश्रेष्ठ समीक्षा को नाम सहित वेबदुनिया हिन्दी पर प्रकाशित किया जाएगा। समीक्षा भेजने के लिए आप editor.webdunia@webdunia.com पर मेल कर सकते हैं।
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