मनोरंजन का संकट तो कतई नहीं है

अनहद
IFM
निर्माता : अनुभव सिन्हा
निर्देशक : पंकज आडवाणी
संगीत : रंजीत बारोट
कलाकार : के.के. मेनन, रिमी ‍सेन, अनुपम खेर, चंकी पांडे, दिलीप प्रभावलकर, राहुल देव, यशपाल शर्मा, हेमंत पांडे, वीरेन्द्र सक्सेना, संजय मिश्रा

रिलीज़ के पहले लग रहा था कि "संकट सिटी" के मुकाबले "शॉर्टकट..." बेहतर फिल्म साबित होगी। मगर हुआ उलटा। कहानी के हिसाब से देखा जाए, तो "शॉर्टकट" की कहानी ज्यादा नई है। "शॉर्टकट" में न सिर्फ अनिल कपूर का नाम निर्माता के तौर पर जुड़ा है, बल्कि अक्षय खन्ना और अरशद वारसी की एक्टिंग भी है। मगर फिल्म में न तो बड़े नामों से कुछ होता है और ना ही कहानी से। अच्छा स्क्रीनप्ले और बढ़िया निर्देशन। ये दो चीज़ें ही फिल्म की गुणवत्ता तय करती हैं और इस मामले में संकट सिटी ने बाज़ी मारी है।

ऐसा समझिए कि निर्देशक कहानी सुनाने वाला है। कहानी सुनाने वाले अपनी कहानी को भरोसेमंद और दिलचस्प बनाने के लिए तरह-तरह के अभिनय भी करते चलते हैं। बड़े-बूढ़े जब बच्चों को कोई कहानी सुनाते हैं तो शेर की तरह दहाड़ने का अभिनय करते हैं, हाथी की तरह गर्दन इधर-उधर करके काल्पनिक सूंड घुमाते हैं। उदासी की बात पर उदास हो जाते हैं और खुशी की बात पर खुश...। निर्देशक को यह सुविधा हासिल है कि कहानी सुनाते हुए वो दर्शक को कहानी में ले जाए। सेट बनाए, पात्र खड़े करे...।

" संकट सिटी" के निर्देशक पंकज आडवाणी ने ये काम बखूबी किया है। इस फिल्म को कॉमेडी थ्रिलर कहा जा सकता है। चरित्रों को पेश करने में तो पंकज ने कमाल किया है। खास कर ढोंगी समलैंगिक गुरु महाराज का चरित्र जानदार और एकदम नए ढंग से गढ़ा गया है। अनुपम खेर इस ढोंगी का शिष्य है और शिष्यों के अंधेपन पर तंज़ करता एक दृश्य है जिसमें खुद चेला, गुरु महाराज को ड्रिंक कराता है और नॉनवेज खिलाता है।

फिल्म में इस सबका बहुत महत्व नहीं है, पर ऐसी ही छोटी-छोटी चीजें मिलकर समग्र प्रभाव पैदा करती हैं। फिल्म इसीलिए एक खास माध्यम है। कितनी ही फिल्मों में गैरेज दिखाए गए हैं, पर यहाँ का गैरेज वाकई गैरेज लगता है। फिल्म हेराफेरी में जो गैरेज है, वो बस नाम का गैरेज है। असल गैरेज यहाँ है। देह व्यापार करने वाली का कमरा उतना ही गंदा है, जितना होता है। सआदत हसन मंटो देखते तो पंकज आडवाणी और आर्ट डायरेक्टर की पीठ ठोकते। पंकज ने खुद ही स्क्रीन प्ले लिखा है और कहानी भी उन्हीं की है।

कहानी तो मामूली और मुंबइया मसाला है, पर निर्देशन ऐसा है कि एक मिनट के लिए भी कुर्सी छोड़ पाना मुश्किल है। हास्य के साथ-साथ फिल्म तंज़ भी करती चलती है। टीवी शो छुपा रुस्तम के गुरुपाल और चंकी पांडे का बचपन के बिछड़े भाई होना मज़ेदार है। रिमी सेन ने इस फिल्म में भी बंगाली बड़बड़ाई है। केके मेनन बहुत कीमती एक्टर हैं और जो कुछ भी करते हैं, उसमें जान डाल देते हैं।

किसी फिल्म को जब आप डिब्बा समझकर देखने जाएँ और वो अच्छी निकल जाए तो ऐसी खुशी होती है, जैसे अपने ही धुले हुए कपड़ों में से पाँच सौ का कोई नोट सही सलामत मिल जाने से होती है। कुल मिलाकर फिल्म मज़ेदार है।

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