मर्दानी : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
देह व्यापार सदियों पुराना है और इसमें बच्चियों को भी धकेल दिया गया है। भारत जैसे देश से प्रत्येक आठ मिनट में एक बालिका लापता होती है और चाइल्ड सेक्स के अवैध व्यापार का भारत बड़ा केन्द्र माना जाता है। ज्यादातर गरीब और अशिक्षित लोगों की बालिकाओं को उठा लिया जाता है और तथाकथित सभ्रांत और शक्तिशाली लोग इनका शोषण करते हैं। इन बातों को लेकर फिल्म निर्देशक प्रदीप सरकार ने 'मर्दानी' बनाई है। सरकार कमर्शियल फॉर्मेट में फिल्म बनाते हैं, लेकिन सामाजिक मुद्दे से उसे जोड़ देते हैं। पिछली कुछ फिल्मों में वे दिशा भटक गए थे, इसके बावजूद निर्माता आदित्य चोपड़ा ने उन पर विश्वास जताया और अपने बैनर तले तीसरा अवसर दिया।

मर्दानी दरअसल चोर-पुलिस का खेल है, जिसके बैकड्रॉप में गर्ल चाइल्ड ट्रैफिकिंग को दिखाया गया है। गोपी पुथरन द्वारा लिखी गई कहानी ऐसी नहीं है कि जिसमें आगे क्या होने वाला है इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन जिस तरह से मंजिल तक पहुंचने से ज्यादा सफर का मजा आता है, वैसा ही कुछ मजा यह फिल्म देती है। अपराधी तक पुलिस किस तरह पहुंचती है, ये देखना दिलचस्प है।

शिवानी रॉय (रानी मुखर्जी) क्राइम ब्रांच में सीनियर इंस्पेक्टर है। अपने पति और भतीजी के साथ वह रहती है। वह निडर है, गालियां बकती है और परिवार के मुकाबले काम को प्राथमिकता देती है। सड़क पर फूल बेचने वाली लड़की 'प्यारी' से उसे विशेष स्नेह है। उसे अपनी बेटी जैसी मानती है।

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' प्यारी' जब उसे तीन-चार दिन दिखाई नहीं देती तो वह खोजबीन शुरू करती है। उसे पता चलता है कि प्यारी का सिर्फ अपहरण ही नहीं हुआ है बल्कि वह संगठित तरीके से लड़कियों और व्यापार करने वाले गिरोह के जाल में फंस गई है। इसे एक ऐसा इंसान चलाता है जिसके बारे में कोई जानकारी किसी के पास नहीं है। शिवानी उसके खिलाफ लड़ती है और अंत में सफल होती है।

फिल्म की शुरुआत बेहद धीमी है और शुरुआती प्रसंग बेहद बनावटी लगते हैं। धीरे-धीरे फिल्म अपनी पकड़ मजबूत करती है और परदे पर चल रहा थ्रिल अच्छा लगने लगता है। फिल्म की स्क्रिप्ट ऐसी नहीं है जिसे परफेक्ट कहा जाए। फिल्म को वास्तविकता के नजदीक रखने की कोशिश भी की गई है तो कई जगह सिनेमा के नाम पर छूट भी ले ली गई है। खासतौर पर क्लाइमैक्स में रानी को 'हीरो' बनाने का मोह निर्देशक नहीं छोड़ पाए हैं। रानी के हाथ में बंदूक है। सामने विलेन खड़ा है। इसके बावजूद वह बंदूक से गोलियां निकाल फेंकती है और उसकी धुलाई करती है।

अपराधी को फिल्म में बेहद चालाक बताया गया है। वह अपनी किसी से भी सीधे तौर पर संवाद नहीं करता, लेकिन रानी को हमेशा फोन लगाता है। उसे धमकाता और चैलेंज देता है। ये बात उसके किरदार से मेल नहीं खाती। चाइल्ड सेक्स के अवैध व्यापार वाला मुद्दा भी फिल्म के बीच में पीछे रह जाता है और चोर-पुलिस का खेल उस पर हावी हो जाता है।

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स्क्रिप्ट की इन कमियों को प्रदीप सरकार का कुशल निर्देशन ढंक लेता है। उन्होंने ड्रामे को बेहद रोचक तरीके से पेश किया है जिससे पूरी फिल्म में दर्शक की रूचि बनी रहती है। गर्ल चाइल्ड ट्रैफिकिंग मुद्दे के गहराई में वे भले ही नहीं गए हो, लेकिन लगातार दर्शकों को वे इस दुनिया का अंधेरा पक्ष दिखाते रहे। उम्दा संवादों और बेहतरीन अभिनय ने उनके काम को आसान कर दिया। मामले की किस तरह पुलिस जांच करती है। क्लू मिलने के आधार पर कैसे आगे बढ़ती है। इसे दिलचस्प तरीके से पेश किया गया है।

अच्छी बात यह भी रही कि बॉलीवुड के तमाम लटको-झटकों से उन्होंने अपनी फिल्म को दूर रखा। बेवजह के हास्य दृश्यों, नाच और गानों को उन्होंने फिल्म में स्थान नहीं दिया। इनकी कोई सिचुएशन भी फिल्म में नहीं बनती थी।

फिल्म के एक्शन में अतिरेक नहीं है। एक्शन दृश्यों को लंबा नहीं खींचा गया है और फिल्म के मूड के अनुरूप वास्तविक रखा गया है।

रानी मुखर्जी ने एक इंस्पेक्टर का किरदार पूरे आत्मविश्वास के साथ निभाया है। उनके अभिनय में ठहराव देखने को मिलता है और वे कही भी हड़बड़ी में नहीं दिखाई दी। एक्शन सीन में जरूर वे कमतर लगी क्योंकि जिस तरह की फिटनेस उनका यह रोल डिमांड करता है वैसी फिटनेस उनमें नजर नहीं आई।

विलेन के रूप में ताहिर राज भसीन ने रानी को जबरदस्त टक्कर दी है। फिल्म में वे खून-खराबा करते या चीखते हुए नजर नहीं आते, बावजूद इसके वे अपने अभिनय से खौफ कायम करने में कामयाब रहे। जीशु सेनगुप्ता का रोल बहुत संक्षिप्त है। फिल्म में कई अपरिचित चेहरे हैं, लेकिन सभी का अभिनय अच्छा है।

कमियों के बावजूद 'मर्दानी' प्रभावित करती है।

बैनर : यश राज फिल्म्स
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : प्रदीप सरकार
कलाकार : रानी मुखर्जी, जीशु सेनगुप्ता, ताहिर राज भसीन
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 1 घंटा 53 मिनट 38 सेकंड
रेटिंग : 3/5

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