मूरख चिंटूजी की बोगस फिल्म

अनहद
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निर्देशक : रंजीत कपूर
संगीत : सिद्धार्थ, सुहास, अभिषेक इष्टेयक, अमजद नदीम, सुखविंदर सिंह
कलाकर : ऋषि कपूर, प्रियांशु चटर्जी, कुलराज रंधावा, सौरभ शुक्ला, सोफी चौधरी

भरोसे की भैंस कभी-कभी पाड़ा भी दे दिया करती है। कभी-कभी तो आप दूध के लिए ही बैठे रह जाते हैं और भैंस कुछ भी नहीं देती... न पाड़ा, न पाड़ी और न दूध... गोबर तक नहीं। अब भैंस की इच्छा और सेहत भी तो कोई चीज है या नहीं?

बॉबी बेदी की प्रोड्यूस की हुई फिल्म "चिंटूजी" ऐसी ही भरोसे भी भैंस निकली। इंटरवेल तक तो कई बार लगा कि हम श्याम बेनेगल की "वेलकम टू सज्जनपुर" जैसी कोई चीज देख रहे हैं। मगर इंटर के बाद फिल्म एकदम ही चौपट हो जाती है। फिल्म का कोई चरित्र ही नहीं बन पाया कि आखिर यह है क्या? व्यंग्य है, हास्य है, करुण कहानी है, मसाला फिल्म है और आखिरकार है क्या?

इस कहानी में अपार संभावनाएँ थीं। फिल्म वाले राजनीति में कैसे जाते हैं, जाकर क्या करते हैं, कैसे उन्हें राजनीति में माहौल अजनबियत भरा लगता है, कैसे उनका मोहभंग होता है...। मगर यह फिल्म कुछ नहीं कर पाई।

चिंटूजी का चरित्र भी फिल्म के चरित्र की तरह बेबूझ है। वह राजनीति में आना चाहता है, मगर लोगों से बदतमीजी करता है। राजनीति में आने के लिए एक कंपनी से इमेज मैकिंग का सहारा लेता है, मगर उस कंपनी की सलाह नहीं मानता।

गाँव का चरित्र भी अनगढ़ है। निर्देशक की कल्पना का एक गाँव है हरबहेड़ी, जहाँ का हर आदमी लगभग संत है, जहाँ कोई व्यक्ति थोड़ा-सा भी बुरा नहीं है। गाँव की ऐसी कल्पना कभी की ध्वस्त की जा चुकी है।

प्रेमचंद की कहानियों में गाँव मुसीबत का गढ़ है, जहाँ किसान भूखा है और साहूकार उसका खून चूस रहे हैं। श्रीलाल शुक्ल के गाँव में लोग बला के चालाक और चालबाज हैं। रेणु के गाँव में सतरंगी लोग हैं, सभी तरह के। साहित्य में "अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है" वाली कल्पना दशकों पहले उखाड़ फेंकी गई है।

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" बिल्लू" का गाँव भी ऐसा ही था, एकदम निर्दोष...। इस फिल्म में भी सब कुछ नकली-नकली-सा है। कुछ प्रसंग जरूर रोचक हैं, जिनका श्रेय कुछ तो ऋषि कपूर को दिया जाना चाहिए और कुछ लेखक को।

गाँव में फिल्म की शूटिंग वाला प्रसंग भी बढ़िया है और सोफिया चौधरी पर फिल्माया गया आइटम साँग भी बेहतर है। मगर यह तो सिर्फ 30 प्रतिशत हिस्सा हुआ। 70 फीसद तो कच्चा-कच्चा ही है। कभी-कभी बड़े नाम भी भरमा देते हैं। इस बार भी यही हुआ। जिस फिल्म से बहुत उम्मीदें थीं, वह गलत निकल गई है।

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