यमला पगला दीवाना - फि‍ल्‍म समीक्षा

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- अरुंधती आमड़ेकर

बैनर : टॉप एंगल प्रोडक्शन्स, वन अप एंटरटेनमें ट
निर्माता : समीर कर्णिक, नितिन मनमोह न
निर्देशक : समीर कर्णि क
संगीत : लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, अनु मलिक, आरडीबी, संदेश शांडिल्य, राहुल बी. सेठ, नौमैन जावेद
कलाकार : धर्मेन्द्र, सनी देओल, बॉबी देओल, कुलराज रंधावा, नफीसा अली, अनुपम खेर, जॉनी लीवर, मुकुल देव, एमा ब्राउन
सेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए, 2 घंटे 45 मिनट
रेटिंग : 2/5

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' नाम बड़े और दर्शन छोटे' एक बार फि‍र ये कहावत साबि‍त हो गई 'यमला पगला दीवाना' के बहाने। धर्मेंद्र, सनी और बॉबी देओल को लग रहा था कि‍ उन तीनों की ति‍कड़ी कुछ कमाल कर जाएगी और ऐसा ही कुछ देओल फेन्‍स को भी लग रहा था लेकि‍न उन्‍हें फि‍ल्‍म से नि‍राशा हो सकती है, देओल्स का पता नहीं।

कहानी शुरू होती है कनाडा में परमजीत सिंह (सनी देओल) के घर से जहाँ वो अपनी माँ, पत्नी और दो बच्‍चों के साथ रहता है और अपने बि‍छड़े हुए पि‍ता धरम सिंह (धमेंद्र) और छोटे भाई (गजोधर सिंह) को इंटरनेट पर ढूँढता रहता है। एक मेहमान के कारण उसे अपने पि‍ता और भाई का पता मि‍लता है और वो उनक ी खो ज मे ं भारत आ जाता है।

भारत आने पर उसकी मुलाकात जल्‍दी ही उसके ठग भाई से हो जाती है। पहली ही मुलाकात में गजोधर सिंह अपने एनआरआई भाई को ठग लेता है। बाद में परमजीत सिंह की मुलाकात अपने पि‍ता से होती है जो उसे बेटा मानने से इंकार कर देता है। लेकि‍न फि‍र भी परमजीत हि‍म्‍मत नहीं हारता और ठगों की टीम में शामि‍ल हो जाता है क्‍योंकि‍ उसने अपनी माँ से अपने पि‍ता और भाई को वापस लाने का वादा कि‍या है।

इसी बीच गजोधर को पंजाब से, बनारस पर एक कि‍ताब लि‍खने आई लड़की साहि‍बा से प्‍यार हो जाता है लेकि‍न साहि‍बा के पाँच भाई उनके प्‍यार के खि‍लाफ हैं क्‍योंकि‍ वो अपनी बहन की शादी कि‍सी एनआरआई लड़के से करना चाहते हैं। अपने भाई को उसके प्‍यार से परमजीत कैसे मि‍लाता है और कैसे पूरा परि‍वार एक होता है यही फि‍ल्‍म का सार है।

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फि‍ल्‍म इंटरवेल के पहले बोर करती है। इंटवेल के बाद फि‍ल्‍म में थोड़ी गति‍ आती है लेकि‍न वो हि‍स्‍सा भी ज्‍यादा प्रभावि‍त नहीं करता। काश 'यमला पगला दि‍वाना' के दर्शकों के पास फि‍ल्‍म को उल्‍टा देखने का वि‍कल्‍प होता।

शुरु से लेकर अंत तक कहानी बि‍खरी बि‍खरी सी लगती है। देओल की ति‍कड़ी होने के साथ-साथ फि‍ल्‍म के तीन खास पहलू थे। पहला 30 साल पहले बि‍छड़े परि‍वार का मि‍लना, दूसरा बाप और बेटे का ठग होना, और तीसरा एक प्रेमी को उसकी प्रेमि‍का से मि‍लाना। नि‍र्देशक के सामने इन तीनों पहलुओं को मि‍लाने का चैलेंज था जि‍से वो पूरा करने में वो वि‍फल रहे। तीनों में से एक पहलू भी दर्शक को बाँधकर नहीं रख पाता।

फि‍ल्‍म की कुछ बातें तर्क हीन हैं जैसे 30 साल पहले धरम सिंह अपने छोटे बेटे को लेकर क्‍यों भाग जाता है और व ो परमजीत को बेटा मानने से क्‍यों इंकार करता है।

कॉमेडी की बात करें तो फि‍ल्‍म मे ं ठगी वाले दृश्‍यों को जि‍तना मजेदार बनाया जा सकता व ो उसका 10 प्रति‍शत भी नहीं हैं। कॉमेडी के नाम पर दो-चार सीन ही हँसाने में कामयाब रहे हैं। फि‍ल्‍म में कई घटनाओं को बड़ी जल्‍दी में दि‍खा दि‍या है मसलन परमजीत सिंह का अपने पि‍ता और भाई को ढूँढ लेना। उसे अपने पि‍ता और भाई का पता जि‍तने जल्‍दी मि‍लता है उससे भी जल्‍दी वो उन्‍हें ढूँढ भी लेता है। इसे और भी मनोरंजक बनाया जा सकता था लेकि‍न निर्देशक चूक गए। हो सकता है कि‍ उनका फोकस गजोधर सिंह को उसकी प्रेमि‍का से मि‍लाने वाले हि‍स्‍से पर रहा हो लेकि‍न ज्यादा समय देने के बावजूद नि‍र्देशक उस हि‍स्‍से को भी ठीक ढंग से फि‍ल्‍माने में नाकामयाब रहे हैं।

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कुछ दृश्‍यों को गैरजरूरी तरीके से खींचा गया है जैसे सनी बॉबी और धरम जी का एक साथ शराब पीने वाला सीन। संवाद कोई भी ऐसा नहीं है जो सि‍नेमाघर से बाहर नि‍कलने के बाद भी याद रखा जा सके।

एक्‍टिंग की बात करें तो तीनों देओल्‍स में से एक्‍टिंग सि‍र्फ सनी देओल ने की है। धरम जी अब बूढ़े हो गए हैं और बॉबी देओल अभि‍नय करना शायद भूल गए चुके हैं। बॉबी का अभि‍नय इंटरवेल के बाद थोड़ा ठीक है। कुलराज रंधावा को ज्‍यादा अवसर नहीं मि‍ले हैं लेकि‍न वो खूबसूरत दि‍खाई दी हैं।

द ो आइट म सॉन्‍ ग डालक र फि‍ल्‍ म क ा सम य खरा ब कि‍य ा गय ा ह ै, आमतौ र प र फि‍ल्‍ म मे ं ए क ह ी आइट म सॉन्‍ ग बहु त होत ा है । संगीत में भी कोई खास दम नहीं है। 'यमला पगला दीवाना' ही केवल सुनने लायक है। कुल मि‍लाकर अगर आप बोर हो रहे हैं, आपके पास समय है और आपके पास दूसरा कोई बेहतर वि‍कल्‍प नहीं है तो 'यमला पगला दीवाना' देखी जा सकती है।

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