रकीब : राइवल्स इन लव

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निर्माता : राज कंवर
निर्देशक : अनुराग सिंह
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : तनुश्री दत्ता, राहुल खन्ना, जिमी शेरगिल, शरमन जोश ी

IFM
‘रकीब’ की कहानी ‘हमराज’ (अब्बास-मस्तान) और ‘फिदा’ (केन घोष) से मिलती-जुलती है। सस्पेंस और थ्रिलर फिल्म ऐसी होनी चाहिए कि पहली रील से ही दर्शक को मजा आने लगे, परंतु ‘रकीब’ में यह बात इंटरवल के बाद आ पाती है। फिल्म का अंत भी खटकता है। फिल्म अच्छी और बुरी के बीच झूलती रहती है। यदि आप बहुत ज्यादा आशा लेकर नहीं गए हों तो फिल्म अच्छी लग सकती है।

रैमो (राहुल खन्ना) एक शर्मीला नौजवान है जो बिलकुल भी सामाजिक नहीं है। वह एक सॉफ्टवेयर कंपनी का मलिक है। रैमो जब छोटा था तब उसके माता-पिता एक कार दुर्घटना में मारे गए थे। रैमो का दोस्त सिद्धार्थ (शरमन जोशी) उसे लोगों से घुलने-मिलने को कहता है ताकि उसकी किसी लड़की से पहचान हो, दोस्ती हों। एक दिन वह मजाक-मजाक में रैमो को ब्लाइंड डेट पर भेज देता है। रैमो की मुलाकात सोफी (तनुश्री दत्ता) से होती है। दोनों में प्यार हो जाता है।

सोफी को एक दिन पता चलता है कि उसके माता-पिता जिस कार दुर्घटना में मारे गए थे उसकी टक्कर रैमो के माता-पिता की कार से हुई थी। सोफी को लगता है कि इसमें गलती रैमो के माता-पिता की थी। थोड़ी बहुत हिचकिचाहट के बाद वह रैमो से शादी करने को तैयार हो जाती है।

सोफी को सनी (जिमी शेरगिल) भी चाहता था। लेकिन सोफी ऐशो-आराम की जिंदगी चाहती थी और वह देने में सनी असमर्थ था। इसलिए सोफी सनी को छोड़ रैमो से शादी कर लेती है। शादी के बाद सोफी और सनी की मुलाकात होती है और उनका पुराना प्यार फिर जिंदा हो जाता है। दोनों छुप-छुपकर मिलने लगते हैं। लेकिन इस तरह से मिलना उन्हें पसंद नहीं आता। वे अपनी राह से रैमो को हटाने की सोचते है। रैमो को अस्थमा रहता है। वे रैमो की दवाई छिपा देते हैं। रैमो को अस्थमा का अटैक आता है और वह मर जाता है। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में आता है कि वह अस्थमा की वजह से मरा है।

सनी जब रैमो के घर आता है तब सोफी अपना खेल खेलना शुरू करती है। वह सनी को रैमो की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार करवा देती है। हर किरदार गेम खेलता है। लेकिन फिल्म का अंत सब कुछ गड़बड़ कर देता है।

निर्देशक अनुराग सिंह ने गैर-पारंपरिक कहानी चुनी है‍ जिसमें एक महत्वाकांक्षी महिला के एक ही समय में तीन पुरुषों के साथ रिश्ते हैं। पहली फिल्म के हिसाब से अनुराग का निर्देशन अच्छा है।

‘मेट्रो’ के बाद शरमन जोशी ने यहाँ भी शानदार अभिनय किया है। उनका अभिनय नेचुरल है। राहुल खन्ना और जिमी शेरगिल भी जमे हैं। ‘गुड बॉय बैड बॉय’ की तरह तनुश्री दत्ता का मेकअप इस फिल्म में भी खराब है। लेकिन अपने किरदार को तनुश्री ने बड़े अच्छे ढंग से निभाया। उसका रोल भी पॉवरफुल है। प्रीतम का संगीत अच्छा है। ‘चन्ना वे चन्ना’ और ‘कातिल’ की धुनें कानों को अच्छी लगती है।

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