राइट या रांग : टाइमपास थ्रिलर

समय ताम्रकर
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निर्माता : नीरज पाठक, कृष्ण चौधरी
निर्देशक : नीरज पाठक
संगीत : मोंटी शर्मा
कलाकार : सनी देओल, ईशा कोप्पिकर, इरफान खान, कोंकणा सेन शर्मा, दीपल शॉ, गोविंद नामदेव
यू/ए * दो घंटे 15 मिनट
रेटिंग : 2.5/5

कई बार ज्यादा उम्मीदों के साथ फिल्म देखी जाए, तो पसंद नहीं आती। उसी तरह कई फिल्में तब अच्छी लगती हैं जब उम्मीद कम हो। ‘राइट या रांग’ इसी कैटेगरी में आती है। फिल्म पर थोड़ी मेहनत की जाती तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी, लेकिन इसके बावजूद यह निराश नहीं करती।

कहानी है अजय (सनी देओल) की जो पुलिस ऑफिसर है। वह अपनी पत्नी (ईशा कोप्पिकर) और बेटे के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहा है। अजय को गोली लग जाती है और शरीर का निचला हिस्सा लकवे का शिकार हो जाता है।

व्हील चेयर पर बैठकर अजय जीना नहीं चाहता। वह अपनी पत्नी और भाई को कहता है कि वे उसे मार दे। वह एक प्लान बनाता है, जिससे लगता है कि उसकी मौत एक हादसे में हुई है। इसके बाद कहानी में जबरदस्त घुमाव आता है।

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नीरज पाठक द्वारा निर्देशित इस फिल्म की शुरुआत की कुछ रील्स बेहद बोर और उबाऊ है। समझ में ही नहीं आता कि वे क्या दिखाना चाहते हैं। इस हिस्से में कुछ गानों को भी बेवजह ठूँसा गया है, जिनका कोई मतलब नहीं है। कुछ सीन (सनी और इरफान के बीच शादी को लेकर बातचीत) बड़े बोरिंग हैं।

फिल्म में पकड़ तब आती है जब सनी देओल अपने आपको मारने का प्लान बनाते हैं। इसके बाद चौंकाने वाले घटनाक्रम घटते हैं और फिल्म एक थ्रिलर में बदल जाती है। अपराधी सामने है और पुलिस उसके खिलाफ सबूत ढूँढ रही है। चूहे और बिल्ली का खेल शुरू हो जाता है। इस हिस्से में इरफान के रोल को भी इम्पॉर्टेंस दिया गया है और ये भी एक कारण है कि फिल्म में रुचि पैदा होती है।

नीरज पाठक ने फिल्म को लिखा भी है। उनके लेखन में कुछ छोटी-मोटी कमियाँ भी हैं, जिनकी चर्चा यहाँ करने से फिल्म का सस्पेंस खुल सकता है। अगर वे फिल्म के मध्यांतर के पूर्व हिस्से को भी बेहतर लिख लेते तो यह एक उम्दा फिल्म बन सकती थी।

सनी देओल के अभिनय का स्तर एक जैसा नहीं रहा। कुछ दृश्य उन्होंने बेमन से किए मानो उन्हें कोई रू‍चि ही नहीं हो। बैक प्रॉब्लम के कारण वे एक्सरसाइज नहीं कर पा रहे हैं और थुलथुले हो गए हैं। लूज शर्ट/टी शर्ट पहनकर उन्होंने मोटापे को छिपाने की कोशिश की है।

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इरफान खान सशक्त तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं और उन्हें ज्यादा मौके दिए जाने थे। कोंकणा सेन जो रोल निभाया है वो उनके लायक नहीं था। सनी और उनके रिश्ते को भी ठीक से परिभाषित नहीं किया गया है। ईशा कोप्पिकर और अन्य कलाकारों का अभिनय औसत है।

फिल्म के म्यूजिक के बारे में बात करना बेकार है। बैकग्राउंड म्यूजिक और सिनेमाटोग्राफी औसत है।

इंटरवल के पहले ‘रांग’ ट्रेक पर चलने वाली यह फिल्म बाद में ‘राइट’ ट्रेक पकड़ लेती है। टाइम पास करना हो तो देखी जा सकती है।

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