राजा नटवरलाल : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
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ठगी के तीन नियम हैं। दावा ऐसा करो कि सुनने वाले का सिर चकरा जाए। उसे यकीन भले न हो, लेकिन रूचि जरूर पैदा हो जाए। दूसरा नियम ये कि कहानी ऐसी सुनाओ कि उसके अंदर लालच पैदा हो। आखिरी बात ये कि उसे वही दिखाओ जो आप दिखाना चाहते हो। इसके इर्दगिर्द बुनी गई है 'राजा नटवरलाल' की कहानी।

अफसोस की बात है कि इन नियमों को बताने वाले लेखक और निर्देशक ने ही इनका पालन नहीं किया। दावा उन्होंने भी जोरदार किया। फिल्म का हीरो 1500 करोड़ की संपत्ति के मालिक को सड़क पर लाने का निर्णय लेता है। दर्शकों की रूचि पैदा हो जाती है कि कैसे करेगा वो ये?

फिर ऐसी कहानी दिखाई कि यकीन ही नहीं होता। निर्देशक ने सिर्फ वही दिखाने की कोशिश की जो वह दिखाना चाहता है, लेकिन दर्शकों ने वो सब कुछ भी देख लिया जो वह नहीं दिखाना चाहता था। लिहाजा 'राजा नटवरलाल' दर्शकों को ठगने में नाकाम रहता है। उसके झांसे में दर्शक नहीं आते।

राजा फिल्म के मुख्‍य किरदार इमरान हाशमी का नाम है। 'नटवरलाल' इसलिए जोड़ा गया है क्योंकि भारत में एक बेहद प्रसिद्ध ठग नटरवलाल हुआ है। उसका असली नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव है। सारे ठग उनका नाम बड़ी श्रद्धा से लेते हैं। यकीन नहीं होता, लेकिन बात सही है कि इस नटवरलाल ने ताज महल, लाल किला, राष्ट्रपति भवन और संसद भवन को वास्तविक जीवन में बेच दिया था। शायद इन्हीं बातों से प्रेरित होकर निर्देशक कुणाल देशमुख ने 'राजा नटवरलाल' में अविश्वसनीय बातों का समावेश किया है, लेकिन वे दर्शकों को इन अविश्वसनीय बातों में यकीन दिलाने में असफल रहे हैं।

कहानी है राजा (इमरान हाशमी) की। सड़क पर ताश के तीन पत्तों में रानी खोजने वाला खेल खिलाकर पैसा कमाता है। छोटी-मोटी ठगी वह इस अपराध में अपने पार्टनर राघव (दीपक तिजोरी), जिसे वह अपना बड़ा भाई मानता है, के साथ करता है। जिया (हुमैमा मलिक) राजा की गर्लफ्रेंड है जो बार में डांस करती है। राजा बड़ा दांव मारना चाहता है और उसे 80 लाख रुपये की चोरी करने का मौका मिलता है।

राघव उसे समझाता है कि बड़े दांव में बड़ा जोखिम है, लेकिन राजा नहीं मानता। दोनों मिलकर 80 लाख रुपये चुरा लेते हैं। ये पैसा बेहद खतरनाक अपराधी वरधा यादव (केके मेनन) का रहता है। उसे आसानी से पता चल जाता है कि ये पैसा किसने चुराया है। राघव की वह हत्या करवा देता है, जबकि राजा बच निकल लेता है। राजा की पहचान से वह अनभिज्ञ है।

राघव की हत्या का बदला राजा लेना चाहता है। वह उसके साथ ठगी करना चाहता है। ठगी के गुरु योगी (परेश रावल) के पास वह पहुंचता है और मदद मांगता है। योगी रिश्ते में राघव का सगा भाई है। वह राजा की मदद के लिए तैयार हो जाता है। वरधा क्रिकेट का दीवाना है। उसकी इसी कमजोरी का योगी और राजा फायदा उठाते हैं। उसे आईपीएल की तर्ज पर आधारित एक लीग में वे एक ऐसी टीम बेचने का प्लान बनाते हैं जो है ही नहीं। किस तरह से राजा 'नटवरलाल' बन यह काम करता है यह फिल्म का सार है।

पेपर पर यह कहानी उम्दा लगती है, लेकिन फिल्म में इतनी अविश्वसनीय बातों का जामा पहना कर इसे पेश किया गया है कि दर्शक हैरान रह जाते हैं। सारे घटनाक्रम फिल्म के हीरो 'राजा' की सहूलियत के मुताबिक लिखे गए हैं। जिन लोगों को वह 'ठगता' है उन्हें निरा मूर्ख बताया गया है, इस वजह से राजा कहीं से भी बहुत होशियार नहीं लगता। ठग पर आप फिल्म बना रहे हो तो दर्शक और भी ज्यादा सजग होकर फिल्म देखता है। अपने तर्क लगाता है, लेकिन 'राजा नटवरलाल' में 'लॉजिक' को कोई महत्व नहीं दिया गया है। यदि राजा की सारी ट्रिक्स लॉजिक की कसौटी पर खरी उतरती तो फिल्म देखने का मजा आता।

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फिल्म तब तक अच्छी और विश्वसनीय लगती है जब तक राजा छोटी-मोटी ठगी करता है। परेश रावल की एंट्री के बाद दिलचस्पी बढ़ती है क्योंकि उन्हें ठगी का 'महागुरु' बताया गया है। उम्मीद जागती है कि अब जोरदार ट्रिक्स देखने को मिलेगी, लेकिन ये सारी उम्मीदें धराशायी होने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। इसकी दो वजहें हैं। एक तो परेश रावल के किरदार को वैसा डेवलप नहीं किया गया जैसी उनकी एंट्री के समय उत्सुकता पैदा की गई थी। दूसरा ये कि जिस तरह से राजा और योगी मिलकर वरधा को बेवकूफ बनाते हैं वो हजम कर पाना मुश्किल है। अतिश्योक्ति की सारी हदें पार कर दी गई हैं।

फिल्म समीक्षा का शेष भाग और रेटिंग अगले पेज पर...


वरधा के किरदार को संवाद के जरिये बड़ा बुद्धिमान बताया गया है। एक आदमी उसे एक बल्ला यह कह कर बेचने आता है कि इससे डॉन ब्रेडमैन ने शतक बनाया था। वह बल्ला उठाकर कहता है कि ब्रैडमेन फलां वजन के बैट से खेलते थे और इस बल्ले का वजन उतना नहीं है। 'हम शौक के अलावा जानकारी भी रखते हैं' वह कहता है, लेकिन उसकी हरकतें उसे बेवकूफ साबित करती हैं।

वह टीम खरीदने के लिए उतावला है। क्रिकेट के बोर्ड ऑफिस जाता है। बोर्ड ऑफिस में राजा और उसके साथी घुसकर नकली ऑफिसर बन उससे मुलाकात कर लेते हैं। जब वरधा उस ऑफिसर का नाम गूगल करता है तो उसे फोटो तक दिख जाते हैं। टीम की नीलामी की जाती है और वरधा सूंघ भी नहीं पाता कि उसके साथ 'ठगी' की जा रही है। सौ करोड़ रुपये का चेक भी वह बड़ी आसानी से दे देता है। ऐसी कई अविश्वसनीय बातें फिल्म में दिखाई गई हैं।

अहम सवाल ये उठता है कि राजा और उसके साथियों के पास इतना सब करने के लिए पैसा कहां से आया? जैसी उनकी स्थिति दिखाई गई है उससे लगता है कि ये बेचारे सिर्फ 'दाल-रोटी' जितना ही जुगाड़ कर पाते होंगे, लेकिन फिल्म में वे दक्षिण अफ्रीका जाते हैं। बड़ी-बड़ी नीलामियों में शामिल होते हैं। फाइव स्टार होटलों में कांफ्रेंस करते हैं। महंगे सूट पहनते हैं। स्क्रिप्ट में ऐसी ढेर सारी खामियां हैं।

इमरान और जोया का रोमांस भी फिल्म की कहानी में बहुत बड़ी रूकावट है। हर चौथा-पांचवां सीन इमरान और जोया के बीच है और ये दृश्य जमकर बोर करते हैं। हिट गाने इमरान की फिल्मों की खासियत रहते हैं, लेकिन 'राजा नटवरलाल' के गाने रोक पाने में नाकाम हैं। युवान शंकर राजा द्वारा संगीतबद्ध गाने कभी भी फिल्म में टपक पड़ते हैं।

निर्देशक कुणाल देशमुख अविश्वसनीय प्रसंगों को विश्वसनीय बनाने में चूक गए हैं। स्क्रिप्ट का उन्हें सहयोग नहीं मिला। फिर भी उन्होंने ड्रामे को इस तरीके से पेश किया है भले ही स्क्रीन पर चल रहे घटनाक्रमों पर विश्वास न हो, लेकिन रूचि बनी रहती है। फिल्म का प्रस्तुतिकरण 'मास अपील' वाला नहीं है जबकि यह कहानी और स्क्रिप्ट की डिमांड थी। कहानी को उन्होंने बहुत फैलाया है, लेकिन समेटने वे कमजोर साबित हुए।

जिस तरह 'भाई' का किरदार निभाना संजय दत्त की नैसर्गिक खूबी है उसी तरह कॉनमैन के किरदार निभाना इमरान हाशमी की खासियत है, बावजदू इसके इमरान का अभिनय प्रभावित नहीं करता। वे बेहद सुस्त लगे और उनका अभिनय औसत किस्म का रहा।

पाकिस्तानी अभिनेत्री हुमैमा मलिक के हिस्से में नाच-गाना ज्यादा आया। परेश रावल का किरदार बहुत दिलचस्प हो सकता था और उसे ज्यादा फुटेज मिलने थे, लेकिन निर्देशक-लेखक ने इमरान-हुमैमा के रोमांस पर फुटेज बरबाद कर दिए। परेश ने अधपकी स्क्रिप्ट में जान डालने की कोशिश की है। केके मेनन का किरदार लेखक की सहूलियत के मुताबिक बुद्धिमान और बेवकूफ बनता रहता है। शायद वे भी कन्फ्यूज थे और ये कन्फ्यूजन उनके अभिनय में नजर आया।

एक अच्छी फिल्म बनने की तमाम संभावनाएं 'राजा नटवरलाल' में थी, लेकिन इन संभावनाओं का दोहन नहीं हो सका।

बैनर : यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला, सिद्धार्थ रॉय कपूर
निर्देशक : कुणाल देशमुख
संगीत : युवान शंकर राजा
कलाकार : इमरान हाशमी, हुमैमा मलिक, परेश रावल, केके मेनन, दीपक तिजोरी
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 21 मिनट 58 सेकंड
रेटिंग : 2/5
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