विदेश मोह का विरोध

अनहद
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निर्माता : रवि चोपड़ा और डेविड हेमिल्टन
निर्देशक : दीपा मेहता
कलाकार : प्रीति जिंटा, वंश भारद्वाज, गीतिका शर्मा

दीपा मेहता के नाम का वजन अपनी जगह मगर फिल्म बनाना कहानी कहने जैसा है। कहानी आप शेर की सुनाएँ, चीते की सुनाएँ, बंदर की सुनाएंँ, राजा-रानी की सुनाएँ आपकी मर्ज़ी। शर्त यह है कि कहानी सुनते समय लोगों को ऊब नहीं होना चाहिए। दीपा मेहता की ताज़ा फिल्म "विदेश" उनकी पिछली फिल्मों के मुकाबले ज्यादा बारीक बुनावट की है। उसमें कलागत जटिलताएँ भी अधिक हैं। सो फिल्म बनाने की दीपा मेहता की जो शैली है, उसकी तारीफ की जा सकती है, पर पूरी फिल्म इस तरह की नहीं बन पाई कि आम आदमी उसे बिना घड़ी देखे, देख ले।

दीपा मेहता कैमरे को कलम बना लेती हैं। मिसाल के तौर पर प्रीति जिंटा को आम पंजाबी लड़की की तरह पेश करने के लिए दीपा मेहता का कैमरा पंजाबी शादी में पहले अन्य महिलाओं की तरफ घूमता है, फिर प्रीति जिंटा पर आता है। नायिका के कपड़े, मेकअप सब सामान्य और दूसरी औरतों की तरह ही है। नायिका की इस एंट्री की तुलना मुंबइया मसाला फिल्म से कीजिए... पहले हीरो के जूते की आवाज़ आती है, फिर कैमरा जूतों पर पैन होता हुआ ऊपर खिसकता है और बाद में हीरो का चेहरा एक जोरदार बैकग्राउंड आवाज़ के साथ पर्दे पर दिखाई पड़ता है। यह एंट्री बता देती है कि हीरो कोई सामान्य आदमी नहीं, खास हस्ती है (या खास हस्ती बनने वाला ही है)।

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फिल्म का पूरा नाम विदेश नहीं "विदेश, हेवन ऑफ अर्थ" है। नाम से ही लगता है कि दीपा मेहता व्यंग्य कर रही हैं। पंजाब में कनाडा जाने और कनाडा में लड़की ब्याहने की होड़ सी है। मगर पंजाब ही क्यों पूरे देश में यह चीज़ पाई जाती है, किसी प्रदेश में कनाडा जाने की होड़ है तो किसी में अमेरिका।

फिल्म के ज़रिए दीपा मेहता एक बात तो यह बताना चाहती हैं कि विदेश स्वर्ग नहीं है। लोग अपनी बेटियों को विदेश ब्याह देते हैं और विदेश में बेटी को तरह-तरह से सताया जाता है। विदेश में नौकर महँगे पड़ते हैं, सो इंडियन बीवी बाहर से भी कमा कर लाती है, घर का काम भी करती है और बच्चे भी पैदा करती है, जिसके लिए दूसरे देश की लड़कियाँ आसानी से तैयार नहीं होतीं।

इंडियन लड़की के संस्कारों की वजह से उसे पीटा भी जा सकता है, गालियाँ भी सुनाई जा सकती हैं, वो बेचारी गऊ कुछ नहीं कहेगी। विदेशी लड़की एक मिनट में सबको अंदर करा सकती है। मगर फिल्म में दीपा मेहता ने जो कुछ बताया है, वो अतिशयोक्ति है। अगर विदेश को स्वर्ग कहना एक अति है, तो विदेश फिल्म में दीपा ने जो बताया है, वो दूसरी अति है।

फिल्म में कुछ दृश्य बहुत ताकतवर हैं। नायिका की पिटाई को क्रिकेट कॉमेंट्री के साथ उम्दा ढंग से गूँथा गया है। नायिका की पिटाई देखकर मासूम बच्ची बिलख कर रोती है, जबकि बड़े उसे ठंडेपन से लेते हैं। कोई भी बच्चा पहली बार हिंसा देखकर अंदर से हिल जाता है, फिर चाहे वो हिंसा सामान्य मार-पीट हो या खाने के लिए पशु का वध।

फिल्म की नायिका टिपिकल पंजाबी लड़की बताई गई है। वो कहती है कि उसे पढ़ने का शौक है। कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, नाटक...। फिल्म में कई जगह नायिका कविताएँ दोहराती है। ये हिस्से खासतौर पर भारी हो उठे हैं।

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फिल्म में एक प्रतीक शेषनाग का है। हिन्दू मान्यता के अनुसार शेषनाग पर विष्णु विराजमान हैं और उस नाग ने अपने फन पर धरती को उठा रखा है। फिल्म में एक सामान्य साँप को शेषनाग कहा गया है। सवाल यह है कि क्या किसी भी नाग या साँप को शेषनाग कहा जा सकता है? फिल्म का अंत पलायनवादी है। ऐसा लगता है कि दीपा मेहता ने विदेश में बेटी ब्याहने के खिलाफ कोई प्रचार फिल्म बनाई है। फिल्म कई जगह चमक छोड़ती है मगर कुल मिलाकर बात बन नहीं पाती।

( नईदुनिया)

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