श्याम बेनेगल का कहना है कि वे युवाओं को गाँव से जोड़ना चाहते हैं क्योंकि भारतीयों का एक बहुत बड़ा हिस्सा गाँवों में बसता है जो शाइनिंग इंडिया से बहुत दूर है। इसलिए उन्होंने ‘वेल डन अब्बा’ में चिकटपल्ली नामक गाँव को दिखाया है। ग्रामीण जीवन और उनकी समस्याओं को यह फिल्म बारीकी से दिखाती है।
इस फिल्म के जरिये उन्होंने उन सरकारी योजनाओं पर प्रहार किया है जो गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए बनाई जाती है। मुफ्त का घर, मुफ्त का कुआँ, मुफ्त की शिक्षा, चिकित्सा जैसी योजनाएँ सरकार से गरीब तक पहुँचने में कई लोगों के हाथ से गुजरती है और लाख रुपए सैकड़े में बदल जाते हैं।
अरमान अली (बोमन ईरानी) मुंबई में ड्रायवर है। छुट्टी लेकर वह अपनी बेटी मुस्कान (मिनिषा लांबा) के लिए लड़का ढूँढने चिकटपल्ली जाता है। मुस्कान अपने चाचा-चाची के साथ रहती है जो मस्जिद से जूते भी चुराते हैं और बावड़ियों से पानी भी क्योंकि गाँव में पानी का संकट है।
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अरमान को पता चलता है कि कपिल धारा योजना के अंतर्गत सरकार गरीबों को बावड़ी के लिए मुफ्त में धन दे रही है। वह अपनी जमीन पर बावड़ी बनवाना चाहता है ताकि थोड़ी-बहुत फसल पैदा कर सके। गरीबी रेखा के नीचे होने का वह झूठा प्रमाण-पत्र बनवाता है और बावड़ी के लिए आवेदन करता है।
उसका सामना भ्रष्ट अफसर, बाबू, मंत्री और इंजीनियर से होता है जो उसे मिलने वाले अनुदान में से अपना हिस्सा माँगते हैं। आखिर में अरमान के हाथों में चंद हजार रुपए आते हैं जिससे बावड़ी नहीं बनाई जा सकती।
उदास अरमान को उसकी 12 वीं कक्षा में पढ़ रही बेटी मुस्कान अनोखा रास्ता बताती है। वे बावड़ी की चोरी की रिपोर्ट दर्ज करवाते हैं। उ नका साथ वे लोग भी देते हैं जिनके साथ भी बावड़ी के नाम पर हेराफेरी की गई। मामला विधानसभा तक पहुँच जाता है और सरकार बचाने के लिए रातो-रात बावड़ी बना दी जाती है।
इस कहानी को ‘नरसैय्या की बावड़ी’ (जीलानी बानो), ‘फुलवा का पुल’ (संजीव) और ‘स्टिल वॉटर्स’ को आधार बनाकर तैयार किया गया है। इस तरह की कहानी पर कुछ क्षेत्रीय भाषाओं में भी फिल्म बनी है और कुछ दिनों पहले ‘लापतागंज’ टीवी धारावाहिक के एक एपिसोड में भी ऐसी कहानी देखने को मिली थी। लेकिन श्याम बेनेगल का हाथ लगने से यह कहानी ‘वेल डन अब्बा’ में और निखर जाती है।
बेनेगल ने सरकारी सिस्टम और इससे जुड़े भ्रष्ट लोगों को व्यंग्यात्मक और मनोरंजक तरीके से स्क्रीन पर पेश किया है कि किस तरह इन योजनाओं को मखौल बना दिया गया है और गर ीबों का हक अफसर/मंत्री/पुलिस छ ीन रहे हैं। कई ऐसे दृश्य हैं जो चेहरे पर मुस्कान लाते हैं साथ ही सोचने पर मजबूर करते हैं। ये सारी बातें बिना लाउड हुए दिखाई गई हैं।
मुख्य कहानी के साथ-साथ मुस्कान और आरिफ का रोमांस और शेखों द्वारा गरीब लड़कियों को खरीदने वाला प्रसंग भी उल्लेखनीय है। फिल्म की धीमी गति और लंबे क्लायमेक्स से कुछ लोगों को शिकायत हो सकती है, लेकिन इसे अनदेखा भी किया जा सकता है।
गाँव की जिंदगी में एक ठहराव होता है और इसे फिल्म के किरदारों के जरिये महसूस किया जा सकता है। फिल्म में कई ऐसे कैरेक्टर हैं जो फिल्म खत्म होने के बाद भी याद रहते हैं। चाहे वो भला आदमी अरमान हो, उसकी तेज तर्रार बेटी मुस्कान हो या इंजीनियर झा हो जिसके दिमाग में हमेशा सेक्स छाया रहता है।
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अरमान अली के रूप में बोमन ईरानी की एक्टिंग बेहतरीन है, लेकिन अरमान के जुड़वाँ भाई के रूप में उन्होंने थोड़ी ओवर एक्टिंग की है। मिनिषा लांबा का यह अब तक सबसे उम्दा अभिनय कहा जा सकता है। रवि किशन, रजत कपूर, इला अरुण, समीर दत्ता, राजेन्द्र गुप्ता ने भी अपना काम अच्छे से किया है। सोनाली कुलकर्णी को ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए।
‘वेल डन अब्बा’ एक वेल मेड फिल्म है और इसे देखा जा सकता है।