सास बहू के शो और सेंसेक्स में इन दिनों आम भारतीयों की बहुत रुचि है। इसे देखते हुए शोना उर्वशी ने दोनों को मिलाकर ‘सास बहू और सेंसेक्स’ नामक फिल्म बनाई है। सास-बहू, स्टॉक मार्केट के अलावा फिल्म में प्रेम त्रिकोण, स्टॉक ब्रोकर का एकतरफा प्यार और गृहिणियों का स्टॉक मार्केट में रुचि लेने जैसी बातें भी इस फिल्म में समाहित की गई हैं।
शोना ने बतौर निर्देशक कुछ दृश्य अच्छे फिल्माए हैं, लेकिन लेखक के रूप में वे प्रभावित नहीं कर पातीं। घटनाओं का क्रम सही है, लेकिन अंतिम बिंदु तक पहुँचने में वे बहुत ज्यादा समय लेती हैं। फिल्म की अवधि यदि डेढ़ घंटे की होती तो फिल्म ज्यादा प्रभावशाली होती। कुल मिलाकर कहा जाए तो ‘सास बहू और सेंसेक्स’ सिर्फ चंद दृश्यों में अच्छी लगती है।
अपनी माँ बिनिता (किरण खेर) के साथ नित्या को अपने पिता और कोलकाता स्थित आरामदायक घर को छोड़ना पड़ता है। नवी मुंबई में आकर नए शहर से सामंजस्य बैठाने में उसे तकलीफ होती है। उसका पड़ोसी रितेश (अंकुर खन्ना) इस मामले में उसकी मदद करता है।
बिनिता कॉलोनी में रहने वाली महिलाओं से दोस्ती कर उनके किटी पार्टी में शामिल होने लगती है। उसकी मुलाकात स्टॉक ब्रोकर फिरोज (फारुख शेख) से होती है जो उसे पैसा सही निवेश करने के रास्ते बताता है।
स्टॉक मार्केट के उतार-चढ़ाव, किटी पार्टी, सोप ओपेरा किस तरह रिश्तों में बदलाव लाते हैं यह कहानी का सार है।
शोना का विषय लीक से हटकर है, लेकिन जरूरी नहीं है कि लीक से हटकर विषय पर बनी फिल्म अच्छी ही हो। शेयर मार्केट को समझना अभी भी कई लोगों के लिए कठिन है। फिल्म में कई खामियाँ भी हैं, जिनकी ओर ध्यान नहीं दिया गया है। फिल्म का संगीत ठीक ही कहा जा सकता है, लेकिन अच्छी बात यह है कि सभी गाने लगभग एक मिनट के हैं।
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फारूक़ शेख और किरण खेर को अभिनय करते देखना सुखद है। लंबे अरसे बाद फारूक़ ने बेहतरीन वापसी की है। किरण खेर ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है। तनुश्री को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला और उन्होंने इसका फायदा भी उठाया। अंकुर खन्ना फिल्म-दर-फिल्म बेहतर होते जा रहे हैं। मासूमी का अभिनय टुकड़ों में अच्छा है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो ‘सास बहू और सेंसेक्स’ निराश करती है।