स्टैंड बॉय : फिल्म समीक्षा

दीपक असीम
बैनर : बीआरसी प्रोडक्शन्स
निर्माता : प्रकाश चौबे, सागर चौबे
निर्देशक : संजय सरकार
संगीत : आदेश श्रीवास्तव
कलाकार : आदिनाथ कोठारे, सिद्धार्थ खेर, अवतार गिल, रीमा वोरा, दलीप ताहिल, मनीष चौधरी, सचिन खेडेकर, सुरेन्द्र पाल

लोगों के दुस्साहस पर अचरज होता है। उनके भोलेपन पर प्यार भी आता है। उनकी आशावादिता पर हैरत होती है। पहला दुस्साहस, क्रिकेट के दीवाने इस देश में फुटबॉल जैसे विषय पर फिल्म बनाना। दूसरा दुस्साहस, बिना सितारों के फिल्म बनाना। तीसरा दुस्साहस, ऐसे दिनों में रिलीज करना जब दर्शक सिनेमाघर की तरफ झाँककर देखने को तैयार नहीं। अब बात आशा की... यह आशा करना कि हम फुटबॉल पर एक ऐसी फिल्म बनाएँगे, जो लोगों को पसंद आएगी। भोलापन... बिना सितारों की इस फिल्म को दर्शक देखेंगे।

बात हो रही है फिल्म "स्टैंड बॉय" की। अतिरिक्त खिलाड़ी को स्टैंड बॉय कहा जाता है। यानी सोलह खिलाड़ियों की मुख्य टीम है। इनमें से ग्यारह खेलेंगे। फिर यदि कोई चोटिल हुआ तो क्रिकेट में बारहवाँ खिलाड़ी केवल फिल्डिंग कर सकता है। फुटबॉल हुआ तो थोड़ी-थोड़ी देर सबको खिलाया जा सकता है। मगर स्टैंड बॉय तो फिर भी इंतजार ही करेंगे।

ये फिल्म फुटबॉल और फुटबॉल की राजनीति से संबंधित है। चयन में नेताओं की दखलंदाजी। अच्छे खिलाड़ी को दरगुजर करके चहेते को चुन लिया जाना...। इसका विरोध...। यानी वही सब कुछ, जो बेहद आम है। ये फिल्म बंगला भाषा में बनी होती, तो शायद कुछ दर्शक इसे देख भी लेते। बंगाल में फुटबॉल को लेकर एक जुनून है, मगर हिन्दी में फुटबॉल के लिए कुछ नहीं है। फुटबॉल विश्व कप के समय भी फिल्म रिलीज हुई होती तो नुकसान जरा कम रहता। ऐसे समय में जब लोग क्रिकेट से ही अघाए हुए हैं, आप फुटबॉल लेकर आ गए। फिल्म में दो फुटबॉल हैं। फिल्म की सस्ती हीरोइन रीमा वोरा दूसरी फुटबॉल हैं।

इस हफ्ते यही फिल्म देखने की कोशिश की थी। पूरी फिल्म देखना मुश्किल था। मुश्किल काम जरा मुश्किल से ही होता है। इस बार नहीं हुआ। नए कलाकारों ने अच्छा काम किया। पुराने कामधकाऊ थे। मगर फिल्म में जी ही नहीं लगा। फिल्म भी बार-बार बिखरे जा रही थी। सो सोच लिया कि इस हफ्ते छोड़ देते हैं। ये फिल्म वैसे फिल्मों की "स्टैंड बॉय" साबित हुई।

पहले अच्छी फिल्में लगीं, फिर अच्छी नहीं बचीं तो कमजोर फिल्में लगीं। फिर इस तरह की रुकी-रुकाई फिल्में आने लगीं। खैर... फिल्म "चितकबरे" की तारीफ एक भरोसेमंद आदमी ने की। मगर वो फिल्म भी देखी नहीं जा सकी। टीवी पर इतना मसाला अन्ना एंड कंपनी ने मुहैया करा दिया कि अब ऐसी-वैसी फिल्म कौन देखे?

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