हमशकल्स : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
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तीन कलाकारों के ट्रिपल रोल कॉमेडी और कन्फ्यूजन के लिए विशाल कैनवास देता है, लेकिन इसके लिए फिल्मकार और स्क्रिप्ट में बहुत दम होना चाहिए। साजिद खान ने ट्रिपल रोल वाली बात तो सोच ली, लेकिन उसके लिए जो स्क्रिप्ट लिखी है वो निहायत ही घटिया है। ऊपर से साजिद का घटिया निर्देशन करेला और नीम चढ़ा वाली कहावत को चरितार्थ करता है। 'तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा' भी याद आ रहा है।

' हमशकल्स' फिल्म मजा के बजाय सजा देती है। ऐसी सजा जिसके लिए पैसे भी आपने ही खर्च किए हैं। 'हिम्मतवाला' के पिटने के बाद साजिद को समझ में आ गया कि वे वही काम करें जो उन्हें आता है। यानी की कॉमेडी फिल्म बनाना। 'हाउसफुल' सीरिज में उन्होंने दर्शकों को हंसाया था, लेकिन इस बार साजिद अपने चिर-परिचित विकेट पर ही रन आउट हो गए। कई बार ऐसा लगता है कि 'हिम्मतावाला' की असफलता का वे दर्शकों से बदला ले रहे हो। माइंडलेस कॉमेडी फिल्मों का भी अपना मजा होता है, लेकिन 'हमशकल्स' तो इस कैटेगरी में भी नहीं आती।

' हमशकल्स' में कहानी जैसी कोई चीज है ही नहीं। अशोक (सैफ अली खान) और कुमार दोस्त हैं। अरबपति-खरबपति अशोक संघर्षरत स्टैंडअप कॉमेडियन है। रेस्तरां में वह ऐसे चुटकले सुनाता है कि लोग भाग खड़े होते हैं। अंग्रेजों को वह हिंदी में जोक्स सुनाता है। एक लड़की उसे बोलती है कि आप बड़े 'विटी' हैं तो वह जवाब देता है कि आप 'चर्चगेट' हैं। अशोक का मामा (राम कपूर) उसे पागल घोषित कर सारी जायदाद अपने नाम कराना चाहता है।

अशोक, कुमार और मामाजी के उसी शहर में हमशकल्स हैं। तीनों ही पागल हैं और पागलखाने में भर्ती है। वे कब पागल बन जाते हैं और कब एकदम सयाने ये लेखक और निर्देशक ने अपनी सहूलियत से तय किया है। अदला-बदली होती है और कन्फूजन पैदा करने की नाहक कोशिश पैदा की गई है।

सयाने अशोक और कुमार बाहर भी आ जाते हैं, लेकिन पुलिस की मदद लेने का खयाल उनके दिमाग में दूर-दूर तक नहीं आता। खतरनाक पागलों को वहां काम करने वाला एक कर्मचारी बड़ी आसानी से भगा देता है। ऐसी ढेर सारी खामियां स्क्रिप्ट्स में हैं।

डबल रोल का वजन तो साजिद से संभल नहीं रहा था और उन्होंने तीनों के तीसरे हमशकल्स को भी स्क्रिप्ट में बिना वजह के घुसेड़ दिया। इतना वजन लादने के बाद स्क्रिप्ट का तो दम ही निकल गया। डर लगने लगा कि कहीं इनके चौथे हमशकल्स न आ जाए। तीसरे हमशकल्स के लिए प्लास्टिक सर्जरी का सहारा ले लिया गया। वैसे तो साजिद अपने दर्शकों को निहायत ही बुद्धू समझते हैं, लेकिन फिर भी एक किरदार पूछता है कि प्लास्टिक सर्जरी से चेहरे तो बदल दिए गए हैं, लेकिन आवाज वैसी कैसे है? जवाब मिलता है कि गले में वोकल घुसेड़ दिया गया है। क्लाइमेक्स में भीड़ इकट्ठी करना साजिद की खासियत है जो फिजूल की भागमभाग करते हैं। हाउसफुल में इंग्लैंड की महारानी नजर आई थी कि यहां प्रिंस चार्ल्स का डुप्लिकेट दिखाई देता है।

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दर्शकों को हंसाने के लिए तमाम कोशिशें की गई हैं, लेकिन एकाध दृश्यों को छोड़ दिया जाए तो इन्हें देख मुस्कान भी चेहरे से मीलों दूर रह जाती है। कंपनी की बोर्ड मीटिंग वाला सीन ही उम्दा है जिसमें तीनों हमशकल्स के कारण कन्फ्यूजन पैदा होता है। हंसाने के लिए क्या-क्या किया गया है, इसकी बानगी देखिए, पानी एक दवाई में मिला दो तो आदमी कुत्ते की तरह व्यवहार करने लगता है। यह दवाई पीने के बाद सैफ और रितेश कुत्ते की तरह व्यवहार करते हैं। लोगों को काटते हैं। एक परफ्यूम ऐसा है जिसे लगा तो महिलाओं से पुरुष चिपकने लगता है। राम कपूर अपनी ही हमशक्ल महिला के पीछे बावरा हो जाता है। कोकीन और वोदका के परांठे खिलाए गए हैं।

साजिद खान ने दर्शकों को बुद्धू समझते हुए चीजों को इतना ज्यादा समझाया है कि कोफ्त होने लगती है। जब हमशक्ल किरदारों की अदला-बदली होती है तो बैकग्राउंड से आवाज आती है 'अदला बदली हो गई, कन्फ्यूजन शुरू हो गई'। और जिस कन्फ्यूजन के पीछे दर्शक मनोरंजन की तलाश करता है वो कही भी नजर नहीं आता।

कलाकारों ने एक्टिंग के नाम पर मुंह बनाया है, आंखें टेढ़ी की हैं और जीभ बाहर निकाली है। सैफ अली खान थके हुए, असहज और मिसफिट लगे हैं। रितेश देशमुख की टाइमिंग भी साजिद के घटिया निर्देशन के कारण गड़बड़ा गई है। राम कपूर ने इन दोनों हीरो के मुकाबले अच्‍छा काम किया है। सतीश शाह भी थोड़ा हंसा देते हैं। बिपाशा बसु ने फिल्म का प्रमोशन क्यों नहीं किया, उनका रोल देख समझ आ जाता है। ऊपर से उन्होंने एक्टिंग भी घटिया की है। तमन्ना भाटिया और ईशा गुप्ता को तुरंत एक्टिंग की क्लास में प्रवेश लेना चाहिए। तीनों हीरोइनें हर जगह शॉर्ट पहन कर आंखें मटकाती रहती हैं।

‍ फिल्म में पागल खाने का सिक्युरिटी ऑफिसर (सतीश शाह) मरीजों को टार्चर के लिए साजिद खान की 'हिम्मतवाला' और फराह खान की 'तीस मार खां' दिखाता है। हो सकता है कि साजिद अपनी अगली फिल्म में टार्चर लिए 'हमशकल्स' का भी इस्तेमाल करें। फिल्म के किरदार बार-बार बोलते हैं 'हम पागल नहीं हैं हमारा दिमाग खराब है', उनका इशारा किस ओर है यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।

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बैनर : फॉक्स स्टार स्टुडियो, पूजा एंटरटेनमेंट इंडिया लि.
निर्माता : वासु भगनानी
निर्देशक : साजिद खान
संगीत : हिमेश रेशमिया
कलाकार : सैफ अली खान, बिपाशा बसु, रितेश देशमुख, तमन्ना भाटिया, ईशा गुप्ता, राम कपूर, सतीश शाह, चंकी पांडे
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 39 मिनट 33 सेकंड
रेटिंग : 0.5/5

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