हैप्पी हसबैंड्स, अनहैप्पी दर्शक

दीपक असीम
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बैनर : फिनॉमेनल क्राफ्ट्स लि.
संगीत व निर्देशन : अनय
कलाकार : अनय, कुरुष देबू, मोहित घई, आह्वान, अर्चना

माफ कीजिए कि मैं आपको फिल्म हैप्पी हसबैंड्स के बारे में कुछ नहीं बता सकता। ऐसा नहीं कि फिल्म देखने नहीं गया। फिल्म देखने तो गया था। कस्सम से गया था। टिकट भी खरीदा, मगर फिल्म देख नहीं पाया।

दरअसल फिल्म इतनी बोर है कि पौन घंटा बमुश्किल झेल सका। टिकट के पैसे वापस लेने की एक कमजोर-नाकाम कोशिश की और आ गया। अब आप बताइए कि जो फिल्म सिर्फ पौन घंटा देखी, उसके बारे में क्या कहा जा सकता है कि वो अच्छी है या बुरी?

फिल्म के निर्देशक अनय का कहना है कि इसका ट्रायल शो जब रखा गया था, तो लोगों ने फिल्म खत्म होने पर ताली बजाई थी। ट्रायल शो देखने के लिए अपने वालों को बुलाया जाता है। ऐसे लोग बीच में फिल्म छोड़कर नहीं जा सकते। ट्रायल शो के बाद पार्टी होती है, खाना-पीना भी होता है। मुमकिन है फिल्म का खत्म होना इतनी खुशी दे गया हो कि लोग ताली बजाने लगे हों।

हाँ तो ये फिल्म अनय ने बनाई है और उसमें काम भी किया है। अनय को उनके उच्चारणों से पहचाना जा सकता है। वे डिमांड का बहुवचन "डिमांडें" करते हैं। "हूँ" उनसे पूरा नहीं बोला जाता। वे इतनी जल्दी-जल्दी बोलते हैं कि शब्द एक--दूसरे पर गिरे पड़ते हैं।

अब थोड़ी सी बात कहानी की। पोर्न और पोर्ननुमा फीचर फिल्मों में मलयाली फिल्में शुरू से बहुत आगे रही हैं। इस फिल्म का विषय भी ऐसा ही है। कुछ पति हैं, जो खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। पत्नी सुंदर है, कमाई अच्छी है। मगर फिर भी ये दूसरी लड़कियों से संबंध रखते हैं।

ऐसा करने के लिए उन्हें उकसाता है उनका ही एक दोस्त जो कहता है कि पति अगर पत्नी को खुश रखता है, बच्चों को खुश रखता है, तो उसे दूसरी जगह संबंध बनाने की छूट है। ये दोस्त औरत को कुदरत की बनाई हुई सबसे खूबसूरत "चीज" कहता है। चीज यानी वस्तु। महिला को वस्तु कहना बहुत ही आपत्ति वाली बात है। सवाल यह उठता है कि यदि कोई पत्नी अपने पति और बच्चों को बहुत खुश रखती है तो क्या उसे दूसरी जगह संबंध बनाने दिया जाएगा?

इस तरह की बहुत सी फिल्में हिन्दी में भी बनी हैं, बनती रहती हैं। फिल्म "मस्ती" का विषय यही था। नो एंट्री भी इसी तरह की थी। भूल-चूक, लेनी-देनी...बहुत सी फिल्में इस विषय पर बनी हैं, पर दिलचस्प बनी हैं। "हैप्पी हसबैंड्स" को हम इस विषय की सबसे कचरा फिल्म कह सकते थे, पर नहीं कह सकते, क्योंकि पूरी फिल्म देख ही नहीं पाए।

अब जब देखी ही नहीं तो कैसे कहें कि ये बुरी फिल्म है। हाँ बोर है, उखड़ी-उखड़ी है, घिसी-पिटी है, बकवास है... मगर ये कैसे कहें कि बुरी है? बुरी तो तब कहते जब पूरी देख पाते।

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