आज़ाद मूवी रिव्यू: अमन-साशा की बिगड़ी शुरुआत, क्यों की अजय देवगन ने यह फिल्म

WD Entertainment Desk
शुक्रवार, 17 जनवरी 2025 (18:39 IST)
रॉक ऑन और काई पो छे जैसी फिल्म बनाने वाले निर्देशक अभिषेक कपूर से 'आज़ाद' जैसी फिल्म की उम्मीद नहीं की जा सकती। इतनी रूटीन कहानी पर फिल्म बनाना वे मंजूर कर लेंगे, ये सोच कर ही हैरानी होती है। अभिषेक कहानी को बेहतरीन तरीके से दिखाने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन 'आज़ाद' में उनकी यह विशेषता भी गायब है। 
 
इस फिल्म के जरिये बॉलीवुड में दो नए कलाकार पेश किए हैं, जिनकी जड़ें बॉलीवुड में गहरी है। अमन देवगन का अजय देवगन से रिश्ता है तो राशा थडानी फिल्म अभिनेत्री रवीना टंडन की बेटी हैं। इनको लॉन्च करने की जवाबदारी अभिषेक को सौंपी गई, लेकिन इससे इन नवोदित कलाकारों का संघर्ष और बढ़ गया है क्योंकि इस मूवी से उनका भला होना संभव नहीं लगता। 
 
मनुष्य और जानवर के रिश्ते पर कई बेहतरीन हिंदी फिल्में बनी हैं और दर्शकों ने इन्हें हाथों-हाथ भी लिया है। 'आज़ाद' में घोड़ा है, एक प्रेम कहानी है, घुड़दौड़ है जिस पर भारी-भरकम शर्त लगी है, जातिवाद है, लेकिन ये सब इतने रूटीन तरीके से दिखाया गया है कि आउटडेटड सा लगता है। 
 
अमीर और नकचढ़ी हीरोइन और गरीब हीरो वाली कहानी पर सत्तर और अस्सी के दशक में खूब फिल्में बनी हैं। इन्हीं फॉर्मूलों को फिर से 'आज़ाद' में पेश किया गया है, लेकिन बात नहीं बन पाई। हां, ये बात तय है कि उस दौर की कई फिल्में आपको याद आएंगी। 

 
रितेश शाह, सुरेश नायर, अभिषेक कपूर, चंदन अरोरा की लेखकों की टीम ने स्टोरी और स्क्रीनप्ले में योगदान दिया है, लेकिन ये मिल कर ऐसे सीन नहीं लिख पाए जो दर्शकों का मनोरंजन कर सके। सीन आते-जाते रहते हैं और असर नहीं छोड़ पाते। 
 
कहानी में बरसों पुराना समय दिखाया गया है और इसमें ढेर सारी गलती की है। यही हाल फिल्म में बोले जाने वाली भाषा का है। निर्देशक ने इन बारीकियों को इग्नोर किया है और शायद मसाला फिल्मों की आड़ में उन्होंने यह काम किया हो। फिल्म का क्लाइमैक्स थोड़ी हलचल जरूर मचाता है, लेकिन तब तक दर्शक इस फिल्म में रूचि खो बैठते हैं।
 
अपने भांजे की खातिर अजय देवगन ऐसा रोल कर बैठे हैं जो कोई दूसरा प्रोड्यूसर ऑफर करता तो वे ठुकराने में पल भर भी नहीं लगाते। उनके जैसे स्टार का उपयोग नहीं कर पाने में अभिषेक कपूर भी दोषी हैं। 
 
अमन देवगन बिना किसी तैयारी के साथ मैदान में कूद गए हैं और सीन दर सीन यह बात नजर आती है। सिर्फ डांस उनका अच्छा है। राशा थडानी को ज्यादा मौका नहीं मिला। उनका डांस देखने लायक है, लेकिन अभिनय के मामले में वे औसत रहीं। 
 
डायना पेंटी अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है, हालांकि उनका ट्रैक कोई असर नहीं छोड़ता। पियूष मिश्रा और मोहित मलिक का अभिनय भी औसत दर्जे का है। अमित त्रिवेदी का संगीत अच्छा है और गानों का फिल्मांकन उम्दा है। सेतु की सिनेमाटोग्राफी उल्लेखनीय है। 
 
आजाद इस बात की आजादी नहीं देती कि इस फिल्म को टिकट खरीद कर देखा जाए। 

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