डायल 100 : मूवी रिव्यू
डायल 100 स्क्रीनप्ले के मामले में मार खा जाती है। जो दिखाया गया है उस पर यकीन ही नहीं होता। मनोज बाजपेयी, नीना गुप्ता और साक्षी तंवर भी फिल्म को बचा नहीं पाते।
डायल 100 मात्र 104 मिनट की है, लेकिन फिल्म देखते समय यह अवधि भी बहुत लंबी लगती है इसी से साबित हो जाता है कि थ्रिलर होने के बावजूद फिल्म में वो बात नहीं है कि जो दर्शकों को जकड़ कर रखे। फिल्म की शुरुआत बेहद बोरिंग है। मुंबई पुलिस इमरजेंसी कॉल सेंटर पर नाइट ड्यूटी कर रहा पुलिस अफसर निखिल सूद (मनोज बाजपेयी) के पास एक महिला का फोन आता है। वह अजीबो-गरीब तरीके से बात करती है। कभी बोलती है कि आत्महत्या कर रही हूं और फिर कहती है कि किसी की हत्या करने वाली हूं। निखिल उसकी बातों पर खास ध्यान नहीं देता, लेकिन कुछ देर बाद उसे समझ आता है कि खतरे में उसकी पत्नी प्रेरणा (साक्षी तंवर) और बेटा है।
लगभग बीस से पच्चीस मिनट तक फोन पर बात होती रहती है। कैमरा सिर्फ मनोज बाजपेयी पर टिका रहता है। माना कि मनोज अच्छे एक्टर हैं, लेकिन इस तरह से एक ही कैरेक्टर को एक ही जगह पर लगातार देखना आसान बात नहीं है। सस्पेंस बहुत जल्दी खुल जाता है और सारी बातें इस पर आ टिकती है कि निखिल किस तरह अपने परिवार को बचाएगा।
'डायल 100' में कुछ भी नया नहीं है। सीन दर सीन आपको देखे हुए लगेंगे। कभी आपको अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू की 'बदला' याद आएगी, कभी 'द फैमिली मैन' तो कभी अनिल कपूर की सीरिज '24' की। मजेदार बात यह है कि '24' बनाने वाले रेंसिल डिसिल्वा ने ही 'डायल 100' का डायरेक्शन किया है।
रेंसिल ने फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले भी लिखा है और यही पर उनका काम कमजोर है। टीनएज बच्चे की समस्या, ड्रग्स, बिगड़ैल अमीरजादे युवा और बदला जैसी कई बातें उन्होंने 'डायल 100' में दिखाने की कोशिश की है, लेकिन बात नहीं बन पाई। स्क्रीनप्ले में ऐसी खामियां है कि चल रहे घटनाक्रमों पर यकीन नहीं होता।
पुलिस इमरजेंसी कॉल सेंटर पर कोई भला इतनी आसानी से कैसे तार काट सकता है। सेंटर में घुसने वाले इस अजनबी को दर्शक पहले सीन में ही पकड़ लेते हैं, लेकिन वहां बैठा कोई पुलिस ऑफिसर इस बात को नोटिस नहीं करता।
बदला लेने का जो प्लान बनाया गया है वो कई सवाल खड़े करता है। बच्चे और माता-पिता की दूरी वाला ट्रैक तो हम मनोज बाजपेयी की वेबसीरिज 'द फैमिली मैन' में देख ही चुके हैं। वही दोहराव नजर आता है। क्लाइमैक्स जरूर चौंकाता है क्योंकि इस तरह के अंत की उम्मीद बहुत ही कम थी।
रेंसिल का निर्देशन उनके लेखन से बेहतर है। तकनीकी रूप से वे मजबूत हैं। एक निर्देशक के रूप में वे दर्शकों पर पकड़ बनाने की कोशिश करते नजर आते हैं।
मनोज बाजपेयी ने अपना काम अच्छे से किया है, हालांकि इस तरह का रोल उनके लिए बहुत ही आसान बात है। नीना गुप्ता को जो किरदार सौंपा गया है उसके लिहाज से उनकी उम्र बहुत ज्यादा है। जो काम वे फिल्म में करती नजर आती हैं, नीना के लिए बहुत ही मुश्किल नजर आता है। साक्षी तंवर को ज्यादा अवसर नहीं मिले। सपोर्टिंग कास्ट का काम औसत दर्जे का है।
'डायल 100' तभी 'डायल' कीजिए जब करने के लिए कुछ नहीं हो।
निर्देशक : रेंसिल डिसिल्वा
कलाकार : मनोज बाजपेयी, नीना गुप्ता, साक्षी तंवर
* जी 5 पर उपलब्ध * 16 वर्ष से ऊपर के व्यक्तियों के लिए