फरहान अख्तर और राकेश ओमप्रकाश मेहरा 'भाग मिल्खा भाग' जैसी बेहतरीन स्पोर्ट्स फिल्म दे चुके हैं। यह जोड़ी 'तूफान' नामक स्पोर्ट्स फिल्म फिर लेकर आई है। पहली फिल्म महान धावक मिल्खा सिंह के जीवन पर आधारित थी, जबकि 'तूफान' की कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। पिछले कुछ समय से बॉलीवुड में स्पोर्ट्स फिल्में लगातार बन रही हैं और सफल भी रही हैं। ज्यादातर अंडरडॉग की कहानी पर बेस्ड हैं जिसका अंत सभी को पता रहता है, तूफान भी इसी राह पर चलती है।
अज़ीज अली उर्फ अज्जू भाई (फरहान अख्तर) डोंगरी के एक गैंगस्टर के लिए वसूली का काम करता है। मारपीट में जब उसे चोट लगती है तो वह अस्पताल में अनन्या (मृणाल ठाकुर) से इलाज कराने जाता है। जब अनन्या को अजीज के काम के बारे में पता चलता है तो वह उसे हिकारत से देखती है। इसका अजीज को बुरा लगता है।
अजीज बॉक्सिंग के खेल के प्रति आकर्षित है और इस खेल में नाम कमाना चाहता है। बॉक्सिंग सीखने के लिए वह नाना प्रभु (परेश रावल) नामक कोच के पास पहुंचता है जो मुस्लिमों को पसंद नहीं करते हैं। बॉक्सिंग के प्रति अजीज के प्रेम को देख नाना उसे बॉक्सिंग सीखाने का फैसला करते हैं।
इधर अनन्या भी अजीज को पसंद करने लगती है। दोनों शादी का फैसला करते हैं तो धर्म की दीवार खड़ी हो जाती है। क्या दोनों की शादी होगी? क्या अज्जू बॉक्सिंग के करियर में नाम कमाएगा? इसके इर्दगिर्द फिल्म घूमती है।
निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा जानते थे कि उनके पास स्पोर्ट्स वाली कहानी में बताने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। स्पोर्ट्स के नाम पर उनके पास एक युवक की कहानी थी जो बॉक्सर बनने का सपना देखता है और फिर मेहनत कर नाम कमाने की कोशिश करता है। इसलिए उन्होंने दो भिन्न धर्म वाले प्रेमी वाला ट्रैक भी डाला। किस तरह से आज के दौर में हिंदू और मुस्लिम को विवाह करने में और विवाह के बाद में परेशानियां दोनों ओर से आती है यह उन्होंने दर्शाया है।
बात उन्होंने अच्छे से शुरू की थी। 'लव जिहाद' और मुस्लिमों के प्रति नफरत वाला एंगल भी डाला, लेकिन फिर इसे बीच फिल्म में ही छोड़ दिया और फिर स्पोर्ट्स वाला ट्रैक पकड़ लिया। इससे फिल्म पर से उनकी पकड़ छूट गई। दरअसल जब अनन्या के साथ एक हादसा होता है उसके बाद ही फिल्म बिखर जाती है।
अजीज का बॉक्सिंग की दुनिया में लौटना और फिर नाम कमाना वाला हिस्सा फिल्म की कमजोर कड़ी है। जिस खेल से आप पांच साल से दूर हैं उसमें वापसी करने के बाद नाम कमाना बेहद कठिन है, लेकिन फिल्म में सब कुछ इतनी आसानी से होते दिखाया है यकीन नहीं होता। इससे स्पोर्ट्स ड्रामे वाला रोमांच भी गायब हो जाता है।
तूफान की एक और बड़ी समस्या इसकी लंबाई है। 163 मिनट इस कहानी को कहने के लिए बहुत ज्यादा है। शुरुआती घंटा तो बहुत तेज है। बहुत सारी घटनाएं बता दी जाती हैं। इसके बाद प्रश्न उठने लगते हैं कि अब क्या बताएंगे? और वाकई में, दिखाने के लिए लेखक और निर्देशक के पास ज्यादा नहीं था और उन्होंने अज्जू की खेल की दुनिया में वापसी के नाम पर फिल्म को खासा खींच डाला है। फिल्म को चुस्त संपादन की सख्त जरूरत है।
बतौर निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा के पास कहानी कहने का सलीका है। उन्होंने इस मूवी में भी कुछ बेहतरीन इमोशनल दृश्य पेश किए हैं। अज्जू और अनन्या की प्रेम कहानी, अनन्या के अपने पिता के साथ वाले सीन, बॉक्सिंग सीखने वाले सीन अच्छे से पेश किए हैं, लेकिन बाद में उन्हें लेखकों का साथ नहीं मिला।
फरहान अख्तर ने बतौर बॉक्सर अपने रोल में जान फूंकी है। वे रियल बॉक्सर लगे हैं और उनकी कड़ी मेहनत स्क्रीन पर नजर आती है। लेकिन वसूली करने वाले गुंडे में वे कम जमे हैं।
मृणाल ठाकुर कैमरे के सामने सहज लगी हैं। फिल्म में उनके हल्के-फुल्के क्षण राहत प्रदान करते हैं। नाना प्रभु के रूप में परेश रावल ने अपना काम बेहतरीन तरीके से अदा किया है। मोहन आगाशे, सुप्रिया पाठक, हुसैन दलाल ने अपने-अपने रोल बखूबी निभाए हैं।
फिल्म के संवाद बेहतरीन हैं। सिनेमाटोग्राफी शानदार है। बॉक्सिंग वाले सीन रियल लगते हैं। कुल मिलाकर यह तूफान इतना दमदार नहीं है कि दर्शकों को इमोशन्स और रोमांच में उड़ा ले जाए।
निर्माता : रितेश सिधवानी, फरहान अख्तर, राकेश ओमप्रकाश मेहरा
निर्देशक : राकेश ओमप्रकाश मेहरा
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : फरहान अख्तर, मृणाल ठाकुर, परेश रावल, सुप्रिया पाठक, हुसैन दलाल, मोहन आगाशे
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 43 मिनट 30 सेकंड
* अमेजन प्राइम वीडियो पर उपलब्ध