फन्ने खां : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
अच्छी फिल्मों का रीमेक बनाना आसान बात नहीं है और कई बार इनके बिगड़े रूप देखने को मिले हैं। ऑस्कर में बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म श्रेणी में नॉमिनेट हुई 'एवरीबडी इज़ फेमस' को हिंदी में 'फन्ने खां' नाम से बनाया गया है। यह एक ऐसी टीनएज लड़की लता शर्मा की की कहानी है जिसके माता-पिता उसे म्युजिकल स्टार बनाना चाहते हैं। बेबी सिंह (ऐश्वर्या राय बच्चन) की लता फैन है। लता की आवाज अच्छी है, लेकिन वजन ज्यादा है। वह जहां जाती है बॉडी शेमिंग का शिकार बनती है क्योंकि संगीत अब देखने की भी चीज हो गया है। 
 
फिल्म की शुरुआत अच्छी है और यह कई मुद्दों को उठाती है, जैसे टीनएजर्स में अच्छा दिखने की होड़। मोटापे को लेकर हीनभावना। सेलिब्रिटी बनने का दबाव। टीवी पर चलने वाले म्युजिक रियलिटी शो की ड्रामेबाजी और टीआरपी के लिए रचे गए प्रपंच। लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है ये सब बातें हवा हो जाती है और फिल्म में ऐसा घटनाक्रम दिखाया जाता है जो अविश्वसनीय हो जाता है। 
 
लता का पिता प्रशांत (अनिल कपूर) बेबी सिंह का अपहरण कर लेता है। इसमें उसका दोस्त अधीर (राजकुमार राव) उसकी मदद करता है। अपहरण वाले घटनाक्रम के बाद सब कुछ नकली सा लगता है जिसमें अधीर और बेबी के बीच का रोमांस भी शामिल है। 
 
लेखन के मामले में फिल्म कमजोर साबित होती है। अधीर और बेबी के बीच प्यार अचानक हो जाता है कि दर्शक चौंक जाते हैं कि यह कब और कैसे हुआ? बेबी सिंह को बड़ा स्टार दिखाया गया है, लेकिन उसको ढूंढने की कोई कोशिश नहीं की जाती जबकि टीवी पर खूब इस बात को लेकर हंगामा मचता है। प्रशांत एक सीधा-सादा इंसान है और उसके द्वारा अपहरण जैसा काम करने वाली बात हजम नहीं होती।  
 
कुल मिलाकर लेखक ने इन बातों के लिए सिचुएशन सही नहीं बनाई है इसलिए कहानी की बुनियाद बहुत कमजोर हो जाती है और दर्शकों को सवाल लगातार परेशान करते रहते हैं।
 
'फन्ने खां' में चार प्रमुख पात्र हैं, प्रशांत, लता, अधीर और बेबी सिंह, लेकिन काम सिर्फ प्रशांत पर किया गया है। बेबी सिंह और अधीर के किरदार आधे-अधूरे से लगते हैं। फिल्म का अंत कमजोर है और किसी तरह बात को खत्म किया गया है। इसमें कोई लॉजिक भी नजर नहीं आता। 
 
कुछ ऐसी बातें भी हैं जो अच्छी लगती हैं, जैसे प्रशांत और उसकी बेटी वाला ट्रैक। प्रशांत अपनी बेटी के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है जबकि बेटी की निगाह में पिता की कोई अहमियत नहीं है, इसके बावजूद वह लगा रहता है। बेटी के प्रति उसका यह प्यार काफी इमोशनल है और कई सीन भावुक भी करते हैं। एक गरीब परिवार के सपने और संघर्ष को भी फिल्म में अच्छे से दिखाया गया है। 
 
फिल्म का निर्देशन अतुल मांजरेकर ने किया है। अतुल की इसलिए तारीफ की जा सकती है कि कहानी में कमियों के बावजूद उन्होंने फिल्म को ठीक-ठाक बनाया है और उनके प्रस्तुतिकरण के बल पर दर्शक फिल्म से जुड़े रहते हैं। जब-जब फिल्म नीचे जाती है वे इमोशनल सीन के जरिये संभाल लेते हैं। लेकिन कई बार लेखन की कमियों से वे भी जूझते नजर आए। 
 
फन्ने खां की कहानी में संगीत का महत्व है इसलिए फिल्म के गानों का महत्व बढ़ जाता है। अमित त्रिवेदी ने काम तो अच्छा किया है, लेकिन गाने हिट नहीं हुए हैं। बावजूद इसके फिल्म देखते समय कुछ गाने अच्छे लगते हैं। फिल्म का बैकग्राउंड म्युजिक उम्दा है। 
 
पूरी फिल्म अनिल कपूर के इर्दगिर्द घूमती है और उन्होंने शानदार अभिनय किया है। मोहम्मद रफी और शम्मी कपूर को भगवान मानने वाला, ऊर्जा से भरा और बड़े सपने देखने वाले प्रशांत के किरदार को उन्होंने बखूबी जिया है। लगता ही नहीं कि वे एक्टिंग कर रहे हैं। 
 
ऐश्वर्या राय बच्चन जैसी स्टार और राजकुमार राव जैसे कलाकार के रोल में गहराई ही नहीं है और उनके साथ न्याय नहीं कर पाना बड़ी भूल है। पीहू सैंड का अभिनय उम्दा है और वे अपने रोल में बिलकुल फिट नजर आईं। दिव्या दत्ता का रोल लंबा नहीं है। बेबी के मैनेजर के रूप में गिरीश कुलकर्णी ओवर एक्टिंग करते नजर आए। 
 
'फन्ने खां' में एक अच्छी फिल्म बनने की क्षमता थी जो पूरी नहीं हो पाई। 
 
 
निर्माता : भूषण कुमार, राकेश ओमप्रकाश मेहरा, अनिल कपूर
निर्देशक : अतुल मांजरेकर
संगीत : अमित त्रिवेदी, तनिष्क बागची
कलाकार : अनिल कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन, राजकुमार राव, दिव्या दत्ता, पिहू सैंड, गिरीश कुलकर्णी 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 9 मिनट 40 सेकंड 
रेटिंग : 2/5 

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