किसी का भाई किसी की जान फिल्म समीक्षा : छोला-इडली का कॉम्बिनेशन

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023 (14:56 IST)
kisi ka bhai kisi ki jaan review: बॉलीवुड दक्षिण भारतीय सिनेमा से इतना डरा हुआ है कि या तो साउथ इंडियन फिल्मों का रीमेक बना रहा है या फिर उनके जैसी फिल्में बनाने की कोशिश कर रहा है। सलमान खान की फिल्म 'किसी का भाई किसी की जान' तमिल फिल्म 'वीरम' का रीमेक है, लेकिन इसे पूरी तरह साउथ इंडियन स्टाइल में बनाया गया है। फिल्म की हीरोइन, विलेन, मुख्य चरित्र अभिनेता दक्षिण भारतीय हैं। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक, गानों का फिल्मांकन, एक्शन सीन और ट्रीटमेंट भी दक्षिण भारतीय फिल्मों की तरह है। सिर्फ सलमान खान को छोड़ दिया जाए तो यह एक साउथ इंडिया के किसी प्रोडक्शन हाउस द्वारा बनाई गई हिंदी फिल्म लगती है।
 
कहानी में एक्शन, रोमांस और फैमिली ड्रामा का बोलबाला है, लेकिन कहानी बहुत ही रूटीन है। बस्ती को खाली कराने वाले विलेन और उनकी राह में खड़ा हीरो वाला कॉन्सेप्ट बहुत पुराना हो चुका है। अनाथ भाइयों के लिए शादी न करने वाला भाई का आइडिया 60 के दशक की फिल्मों में नजर आता था। लिहाजा मामला पूरी तरह से स्क्रीनप्ले और निर्देशन पर आ टिकता है कि वे कैसे रूटीन कहानी पर एक मनोरंजक फिल्म बनाते हैं। 
 
स्पर्श खेत्रपाल और ताशा भम्बारा ने कहानी और स्क्रीनप्ले लिखा है। फिल्म को सलमान खान के फैंस की पसंद के अनुरूप डिजाइन किया गया है। समय-समय पर उन्होंने कुछ अच्छे उतार-चढ़ाव दिए हैं जो दर्शकों को चौंकाते हैं। पर्सनल लाइफ में सलमान खान जिस तरह से दिल से सोचने वाले इंसान हैं, वैसा ही उनका कैरेक्टर भाईजान दिखाया गया है। वह लोगों की मदद करता है। परिवार उसके लिए सबसे पहले है। परिवार के बचाव के लिए वह किसी से भी भिड़ जाता है। पूरे मोहल्ले का वह हीरो है। काम क्या करता है, ये मत पूछिए। 
 
भाईजान तीन भाइयों लव (सिद्धार्थ निगम), इश्क (राघव जुयाल) और मोह (जस्सी गिल) के साथ रहता है। चाहत (विनाली भटनागर) लव की, सुकून (शहनाज़ गिल) इश्क की और मुस्कान (पलक तिवारी) मोह की गर्लफ्रेंड हैं। तीनों भाई शादी करना चाहते हैं, लेकिन दिक्कत ये है भाईजान न खुद शादी करना चाहते हैं और न भाइयों को करने देना चाहते हैं। पत्नी आएगी तो कलह कराएगी। आखिरकार भाई लोग भाग्या (पूजा हेगड़) नामक लड़की को भाईजान के करीब लाते हैं जो हैदराबाद की रहने वाली है। उसका भाई बालाकृष्णा गुंडामनेनी (वेंकटेश) अहिंसावादी है। लव स्टोरी में कुछ विलेन भी हैं- नागेश्वरा (जगपति बाबू) और महावीर (विजेंदर सिंह) जिनकी भाईजान और भाग्या के परिवार से दुश्मनी है। 
 
कहानी के कुछ हिस्से कमजोर हैं। जैसे नागेश्वरा और बाला की दुश्मनी वाला ट्रेक बहुत ज्यादा अपील नहीं करता। महावीर इतना बड़ा विलेन नहीं लगता कि सलमान जैसे हीरो से टक्कर ले। भाईजान के तीन भाई और उनकी गर्लफ्रेंड्स के किरदार निहायत ही बेवकूफ लगते हैं। भाइयों के प्रेम को लेकर बातें तो खूब कही गई हैं, लेकिन वैसे सीन नहीं बनाए गए हैं कि दर्शक भाइयों के प्यार की गरमाहट को महसूस करे। 
 
फिल्म का शुरुआती आधा घंटा कनेक्ट नहीं करता। सलमान के बालों से लेकर सेट तक सब कुछ इतना नकली है कि दर्शक फिल्म से जुड़ नहीं पाते। फिल्म में एंटरटेनमेंट का ग्राफ तब उठता है जब पूजा हेगड़े की एंट्री होती है। सलमान और पूजा के रोमांस वाला हिस्सा उम्दा है और इंटरवल पाइंट तक फिल्म में कुछ अच्छे और मनोरंजक सीन देखने को मिलते हैं। स्क्रीनप्ले राइटर्स ने कुछ अच्छे उतार-चढ़ाव दिए हैं, लेकिन यह बात पूरी फिल्म के लिए नहीं कही जा सकती। 
 
इंटरवल के बाद फिल्म लड़खड़ाते हुए चलती है। कुछ अच्छे टर्न्स और ट्विस्ट आते हैं तो कुछ लंबे और बोरिंग दृश्यों से भी सामना होता है। कहानी ठहर जाती है। क्लाइमैक्स में खूब एक्शन है, लेकिन विलेन और हीरो के बीच इतनी तगड़ी दुश्मनी नजर नहीं आती इससे ये बहुत ज्यादा अपील नहीं करते। 
 
कुछ कैरेक्टर्स को ज्यादा फुटेज की जरूरत थी या उन पर ध्यान देने की जरूरत थी जिससे वो फिल्म में निखर कर दिखाई देते। जैसे, वेंकटेश और जगपति बाबू वाले कैरेक्टर्स पर मेहनत की जरूरत थी। इनकी स्टोरी और डिटेल में दी जाती तो यह फिल्म के लिए बेहतर होता। 
 
निर्देशक फरहाद सामजी ने फिल्म को बैलेंस करने की कोशिश की है। ड्रामा, रोमांस, एक्शन और इमोशन में से वे सभी को ठीक से संभाल नहीं पाए। फैमिली ड्रामा ज्यादा अपील नहीं करता। सलमान और पूजा का रोमांस अच्छा लगता है, जबकि सलमान के भाइयों वाले रोमांटिक ट्रेक निहायत ही बकवास हैं। कॉमेडी इसलिए अच्छी नहीं लगती क्योंकि संवादों में दम नहीं है। कुछ एक्शन सीक्वेंस अच्छे हैं, जैसे मेट्रो ट्रेन में सलमान और गुंडों के बीच फिल्माया गया फाइट सीक्वेंस।
 
सलमान खान का अपना एक्टिंग स्टाइल है और उसी दायरे में रहकर उन्होंने एक्टिंग की है। डांस करते समय वे धीमे लगते हैं क्योंकि उनकी बॉडी बेहद सख्त हो गई है और कहीं-कहीं वजन बढ़ा हुआ नजर आता है। एक्शन सीन में वे अच्छे लगते हैं। पूजा हेगड़े, सही मायनों में फिल्म की हीरो हैं। अपनी खूबसूरती और आत्मविश्वास से फिल्म में ताजगी का झोंका लाती हैं। उनकी एक्टिंग शानदार है और जब-जब स्क्रीन पर वे आती हैं छा जाती हैं। 
 
वेंकटेश दग्गुबाती बेहतरीन एक्टर हैं, लेकिन अफसोस की बात रही कि उनका पूरा उपयोग नहीं हो पाया। यही हाल जगपति बाबू का है। विलेन के रूप में वे जबरदस्त लगे हैं, लेकिन कहानी में उनके लिए बहुत ज्यादा स्कोप नहीं था। राघव जुयाल, जस्सी गिल, सिद्धार्थ निगम को फौरन एक्टिंग स्कूल में ए‍डमिशन ले लेना चाहिए। शहनाज़ गिल, पलक तिवारी और विनाली भटनागर में घटिया एक्टिंग का मुकाबला था और तीनों ही विजेता रहीं। 
 
सतीश कौशिक, तेज सप्रू और आसिफ शेख बोर करते हैं। रोहिणी हट्टंगडी, अभिमन्यु सिंह उम्दा रहे हैं। भाग्यश्री के बहाने सलमान ने 'मैंने प्यार किया' वाले दिन याद किए हैं। रामचरण भी एक गाने में आकर कुछ डांस स्टेप्स दिखा गए। विजेंदर सिंह ने खूब ओवर एक्टिंग की है और सलमान से टक्कर लेने वाले विलेन में जो बात होना चाहिए वो उनमें नजर नहीं आई।  
 
फिल्म के दो-तीन गाने मधुर हैं और उनका फिल्मांकन भी बढ़िया है। रवि बसरूर का बैकग्राउंड म्यूजिक और वी. मणिकांदन की सिनेमाटोग्राफी शानदार हैं। एक्शन और स्टंट्स में थ्रिल है। एडिटिंग और टाइट होना थी, खास तौर पर सेकंड हाफ  में कुछ सीन ज्यादा ही लंबे हो गए हैं।  
 
किसी का भाई किसी की जान की कहानी रूटीन जरूर है, लेकिन कुछ टर्न्स और ट्विस्ट मनोरंजक भी हैं। हर दर्शक वर्ग को खुश करने की कोशिश की गई है। ज्यादा उम्मीद से नहीं देखी जाए या टिपीकल बॉलीवुड फिल्म देखना हो तो पसंद आ सकती है। 
 

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