पार्च्ड : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
पिछले सप्ताह रिलीज हुई 'पिंक' में शहरी महिलाओं का चित्रण था तो इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म 'पार्च्ड' भारत के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की दयनीय स्थिति को बयां करती है। शहर में रहने वाले और ग्रामीण जीवन से अपरिचित लोग महिलाओं की यह हालत देख दंग रह जाएंगे। गांवों में टीवी और मोबाइल तो पहुंच गए हैं, लेकिन महिलाओं के प्रति पुरुषों के दृष्टिकोण में रत्ती भर बदलाव नहीं देखने को मिलता है। उनके लिए स्त्री अभी भी सेक्स और बच्चा पैदा करने की मशीन है। वे स्त्रियों को पीटते हैं, मर्दानगी दिखाते हैं, क्रूरता भरा व्यवहार करते हैं और तमाम अधिकारों से वंचित रखते हैं। वे मर्द तो बन गए लेकिन इंसान नहीं बन पाए।
 
फिल्म की लेखक और निर्देशक लीना यादव हैं। इसके पहले वे शब्द और तीन पत्ती बना चुकी हैं। पार्च्ड में उन्होंने तीन किरदारों रानी (तनिष्ठा चटर्जी), लाजो (राधिका आप्टे) और बिजली (सुरवीन चावला) के जरिये बाल विवाह, वेश्यावृत्ति, विधवा, घरेलू हिंसा, वैवाहिक बलात्कार जैसी तमाम बातों को पात्रों के जरिये दिखाया गया है।
32 वर्षीय रानी 15 की उम्र में ही विधवा हो गई। उसका 17 साल का बेटा है जिसकी वह शादी करती है। बेटे को अपनी पत्नी पसंद नहीं है और दोस्तों की संगत में रह कर वह बिगड़ गया है। मोबाइल पर ब्लू फिल्म देख उसके दिमाग में औरत की कल्पना कुछ और ही है। बिजली एक बोल्ड महिला है जो नाच-गाने का आइटम करती है और अपना शरीर भी बेचती है। लाजो को शादी के बाद भी बच्चा नहीं हुआ और उसे बांझ कह कर उसका पति दिन-रात पीटता है। 
 
लाजो को बिजली के जरिये पता चलता है कि पुरुष भी बांझ हो सकता है। बच्चे की खातिर वह अन्य पुरुष से संबंध बना कर गर्भवती होती है। ये तीनों महिलाएं आपस में सहेलियां हैं और आपसी दु:ख को बांटती रहती हैं। दु:ख से भरी जिंदगी में कुछ पल खुशियों के भी वे चुरा लेती हैं। तीनों प्यार की जरूरत महसूस करती हैं जो उन्हें किसी पुरुष से नहीं मिलता। प्यार की उनकी जिंदगी में कितनी कमी है कि रानी से एक अनजान शख्स फोन पर मीठी बातें करती हैं और वह शर्म से लाल हो जाती है।
 
फिल्म दर्शाती है कि पुरुष अपनी दैहिक जरूरतों को 'मर्दानगी' का नाम देते हैं, लेकिन महिलाओं की दैहिक जरूरत को कोई नहीं समझता। रानी और लाजो अपनी इच्छाओं को दबाकर रखती हैं। पार्च्ड इशारा करती है कि महिलाओं को अपनी स्थिति में सुधार करना है तो उन्हें खुद आगे बढ़ना होगा। रानी अपनी बहू जानकी का जीवन सुधारने के लिए जानकी की शादी उसके प्रेमी से करा देती है।  

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लीना यादव का प्रस्तुतिकरण बहुत बोल्ड है और थपेड़े की तरह चेहरे पर टकराता है। बोल्ड सीन, गालियां और हिंसा से उन्होंने परहेज नहीं किया है। कहानी में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं है, लेकिन वे अपनी प्रस्तुति के बल पर बांध कर रखती हैं। महिलाओं के प्रति फिल्म में हिंसा ज्यादा हो गई है जिससे बचा जा सकता था। महिलाओं के सेक्स के प्रति विचार को उन्होंने अच्छे से दिखाया है। गालियों में महिला के बारे में ही बुरा क्यों कहा जाता है, इस पर भी वे रोष जताती हैं और उनकी महिला पात्र ऐसी गालियां बकती हैं जिनमें पुरुषों को बुरा कहा जाता है। आदिल हुसैन और राधिका आप्टे वाला लव मेकिंग सीन वास्तविकता नहीं लगता है। लीना के लेखन या निर्देशन में एक कमी यह भी महसूस होती है कि पात्रों के दर्द को दर्शक महसूस नहीं करता। ग्रामीण पात्र उन्होंने अच्छे से पेश किए हैं, लेकिन गांव नकली लगता है। 
 
अभिनय की दृष्टि से फिल्म मालामाल है। चूंकि फिल्म का निर्देशन एक महिला ने किया है इसलिए तीनों प्रमुख अभिनेत्रियों ने बिंदास तरीके से कैमरे के सामने अभिनय किया है। बोल्ड दृश्यों में उनमें कोई झिझक नजर नहीं आती। तनिष्ठा चटर्जी का अभिनय सधा हुआ है और वे ग्रामीण महिला के किरदार में डूब गई। राधिका आप्टे अपने हर किरदार को ऊर्जावान बना देती हैं। लाजो के रूप में वे प्रभावित करती हैं। सुरवीन चावला का अभिनय अच्छा है, लेकिन वे शहर की महिला लगती हैं। सहायक कलाकारों का अभिनय भी अच्छा है।  
 
फिल्म को अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सिनेमाटोग्राफर रसेल कारपेंटर ने शूट किया है। क्लोज़-अप, लैंडस्कैप और रंगों का संयोजन में उनका कमाल देखने को मिलता है। कलाकारों के चेहरे के भावों को उन्होंने बखूबी पकड़ा है।  
 
कुल मिलाकर 'पार्च्ड' महिलाओं की आंतरिक भावनाओं और पुरुष शासित समाज की झलक अच्छे से दिखाती है। 
 
बैनर : अजय देवगन फिल्म्स 
निर्माता : अजय देवगन, गुलाब सिंह तनवार, असीम बजाज, रोहन जगदाले, लीना यादव
निर्देशक : लीना यादव
कलाकार : तनिष्ठा चटर्जी, राधिका आप्टे, सुरवीन चावला, अदिल हुसैन, लहर खान
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 1 घंटा 58 मिनट 5 सेकंड 
रेटिंग : 3.5/5

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