राब्ता : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
राब्ता देखते समय राकेश ओमप्रकाश मेहरा की मिर्जिया याद आती है जो कि मेहरा की सबसे कमजोर फिल्म है। उस फिल्म में दो प्रेम कहानियां समानांतर चलती है। एक का कालखंड वर्षों पुराना है और दूसरी आज के दौर में सेट है। राब्ता में भी यही बात है, लेकिन यहां पर पुनर्जन्म वाला एंगल जोड़ दिया गया है। पिछले जन्म में दो प्रेमी एक विलेन के कारण मिल नहीं पाए थे। पुनर्जन्म लेकर फिर वे साथ होते हैं और आगे की कहानी का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। 
 
निर्माता के रूप में दिनेश विजन के पास लंबा अनुभव है। कई सफल फिल्म उन्होंने सैफ अली खान के साथ मिलकर बनाई है। निर्माता रहते हुए उन्हें निर्देशन का कीड़ा काट खाया और 'राब्ता' देखने के बाद यही लगता है कि वे निर्माता ही रहते तो बेहतर होता। निर्देशक के रूप में उन्हें अभी और तैयारी करना चाहिए। 
 
अमृतसर से शिव (सुशांत सिंह राजपूत) नौकरी के लिए बुडापेस्ट जा पहुंचता है। लड़कियां उसकी कमजोरी है। शिव में पता नहीं ऐसी क्या खास बात है कि लड़कियां उसकी ओर खींची चली आती है। 
 
खैर, चॉकलेट शॉप पर उसकी मुलाकात सायरा (कृति सेनन) से होती है। सायरा और शिव दोनों एक-दूसरे की ओर आकर्षित हो जाते हैं। सायरा का एक बॉयफ्रेंड भी रहता है जिससे शिव ब्रेकअप भी करा देता है। 
 
चट बिस्तर के बाद पट ब्याह वे करना चाहते हैं। लगभग सवा घंटे तक यह सारा ड्रामा चलता रहता है जो नितांत ही उबाऊ है। इसको 'फनी' बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन मजाल है जो मुस्कान भी आ जाए। शिव और सायरा का पूरा रोमांस नकली लगता है। 
 
इसके बाद एंट्री होती है जैक (जिम सरभ) की, जो अरबपति है। काम के सिलसिले में शिव दूसरे शहर जाता है और सायरा से जैक दोस्ती बढ़ाता है। एक दिन सायरा अपने आपको जैक की कैद में पाती है। जैक को पिछले जन्म वाली सारी बात पता है और इस जन्म में वह सायरा को पाना चाहता है। 
 
सायरा कुछ समझ नहीं पाती, लेकिन एक दिन समुंदर में गिर जाती है और उसे सब याद आ जाता है। यहां से फिल्म चली जाती है सैकड़ों वर्ष पूर्व। शिव, सायरा और जैक का पिछला जन्म दिखाया जाता है। पहले से ही बेपटरी होकर लुढ़क रही फिल्म और निम्नतम स्तर पर चली जाती है। 
 
पुनर्जन्म वाला यह हिस्सा इतना कन्फ्यूजिंग है कि निर्देशक और लेखक क्या बताना चाह रहे हैं कुछ समझ नहीं आता। संवाद भी बड़े अजीब हो जाते हैं। राजकुमार राव जैसे कलाकार की यहां पर दुर्गति कर दी गई है।
 
एक बार फिर फिल्म वर्तमान दौर में आती है। हीरोइन और विलेन को सब याद आ गया, लेकिन हीरो को कुछ याद नहीं आता। बहरहाल क्लाइमैक्स में थोड़ी फाइटिंग होती है और सब सही हो जाता है। 
 

चांद, तारे, बारिश, पूर्णिमा से दोनों जन्मों की कहानी को जोड़ने के जो प्रयास किए गए हैं वो अर्थहीन हैं। सीन इतने लंबे रखे गए हैं कि झल्लाहट होती है। निर्देशक के रूप में दिनेश विजन असफल रहे हैं। न तो वे फिल्म को मनोरंजक बना पाए हैं और न उन्होंने लॉजिक का ध्यान रखा है। फिल्म के लेखक कुछ भी नया पेश नहीं कर पाए और कहानी अत्यंत ही कमजोर है। 
 
सुशांत सिंह राजपूत कोई रोमांस के बादशाह शाहरुख खान तो है नहीं जो रोमांटिक फिल्म में जान फूंक सके। 'कूल' लगने के उनके अतिरिक्त प्रयास साफ नजर आते हैं। कई दृश्यों में वे असहज नजर आएं। कृति सेनन पर दीपिका पादुकोण का हैंगओवर नजर आया। शायद दिनेश विजन ने उनसे दीपिका की तरह अभिनय करने का बोला हो क्योंकि दिनेश ने कुछ फिल्में दीपिका के साथ बनाई हैं। 
 
जिम सरभ का लुक उनके कैरेक्टर पर फिट बैठता है, लेकिन उनका कैरेक्टर ठीक से नहीं लिखा गया है। 'सिगरेट खत्म होने के पहले जान बचा सकता है तो बचा ले' जैसे संवाद उन पर बिलकुल सूट नहीं जमते। वरूण शर्मा टाइप्ड हो गए हैं और हर फिल्म में एक जैसे नजर आते हैं। 
 
दीपिका पादुकोण पर फिल्माया गया गाना ही फिल्म का एकमात्र सुखद पहलू है, लेकिन एक गाने के लिए ढाई घंटे की फिल्म झेलना समझदारी की बात नहीं है। 
 
बैनर : मैडॉक फिल्म्स, टी-सीरिज़ 
निर्माता : दिनेश विजन, भूषण कुमार, होमी अडजानिया, कृष्ण कुमार
निर्देशक : दिनेश विजन 
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती 
कलाकार : सुशांत सिंह राजपूत, कृति सेनन, जिमी सरभ, दीपिका पादुकोण (एक गाने के लिए) 
रेटिंग : 1/5 
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