Raksha Bandhan Movie Review: अच्छे विषय पर खराब फिल्म अक्षय कुमार की रक्षा बंधन

समय ताम्रकर
गुरुवार, 11 अगस्त 2022 (20:12 IST)
आनंद एल राय की इस बात की तारीफ की जा सकती है कि इस दौर में उन्होंने भाई-बहन के रिश्ते पर फिल्म बनाने का साहस किया और तारीफ यही खत्म हो जाती है क्योंकि फिल्म में तारीफ के लिए और कुछ भी नहीं है। जो कहानी उन्होंने 'रक्षा बंधन' फिल्म के लिए चुनी है वो साठ के दशक की फिल्मों में हुआ करती थी। अब तो टीवी पर भी इस तरह के ड्रामे कभी-कभी ही देखने को मिलते हैं। 
 
चार अनब्याही बहनें और उनकी शादी के लिए हड्डी गलाने वाली मेहनत कर दहेज इकट्ठा करते भाई की कहानी आज के दौर में फिट नहीं लगती। चलिए ये कहानी भी आपने मंजूर कर ली, लेकिन इसका प्रस्तुतिकरण प्रोग्रेसिव नहीं बल्कि पीछे की ओर ले जाने वाला है। 
 
कहानी में शारीरिक अक्षमता को लेकर मजाक है, मोटापे और रंग को लेकर टिप्पणियां हैं, गोलगप्पे खिलाकर लड़का पैदा करने वाला दावा है और मुख्य किरदारों के लिए दहेज लेना-देना आम बात है। माना कि किरदारों की सोच ही ऐसी है, लेकिन 80 प्रतिशत फिल्म में ये बातें खींची गई हैं, इनके इर्दगिर्द मजाक बुने गए हैं तो ये बातें चुभना स्वाभाविक ही है। लेखकों ने होशियारी दिखाते हुए फिल्म के अंत में एक ट्विस्ट देकर सब कुछ सही कर दिया और ज्ञान पिलाकर सब बराबर करने की कोशिश की है, लेकिन बात नहीं बनती। 
 
हिमांशु शर्मा और कनिका ढिल्लो ने मिलकर 'रक्षा बंधन' की कहानी लिखी है और उनका लेखन अपनी सहूलियत के हिसाब से है। उन्हें जो सही लगा वो किया और ये उम्मीद की कि दर्शकों ये सब पचा जाएंगे। 
 
लाला केदारनाथ (अक्षय कुमार) अपनी प्रेमिका सपना (भूमि पेडणेकर) से इसलिए शादी नहीं कर पाया क्योंकि लाला ने अपनी मरती मां को वचन दिया था कि पहले चार बहनों की शादी करेगा तभी वो घोड़ी चढ़ेगा। 
 
दहेज न दे पाने के कारण बहनों की शादी नहीं हो पा रही है। एक बहन की शादी का दहेज 20 लाख रुपये तो चार बहनों का दहेज 80 लाख रुपये। दुकान गिरवी रखता है तो एक बहन की शादी होती है। 
 
फिर वह किडनी बेच देता है। दर्शकों को अनिल कपूर की 'साहेब' याद हो गई होगी। फिर 'रक्षा बंधन' में एक ऐसी घटना घटती है कि लाला को समझ आता है कि दहेज देना भी पाप है। वह अपनी बहनों को इस काबिल बनाने पर जोर देता है कि वे खुद अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। 
 
फिल्म का विषय अच्छा है, लेकिन विषय के अच्छे होने से फिल्म के अच्छे होने की गारंटी नहीं है। रक्षा बंधन की कहानी और स्क्रीनप्ले बहुत ही गड़बड़ है। दहेज विरोधी बातें की गई हैं, लड़कियों के पैरों पर खड़े होने की वकालत की गई हैं, और भी अच्छी-अच्छी बातें हैं, लेकिन इन अच्छी बातों को बताने के लिए जो ड्रामा बनाया गया है वो लचर है। ऐसे में शिक्षाप्रद बातें बेअसर ही रह जाती हैं। लेखकों ने पहले तो खूब फालतू बातें कीं और जब कहानी समेटने की बात आई तो जादू की छड़ी से सब सही कर दिया। 

ALSO READ: Laal Singh Chaddha Movie Review: आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा की फिल्म समीक्षा
 
स्क्रीनप्ले में लाउडनेस भरी हुई है। हर कलाकार चीखता-चिल्लाता रहता है। उत्तर भारत के छोटे शहरों के किरदार हिंदी फिल्मों में टाइप्ड होते जा रहे हैं। इन कलाकारों का पहली फ्रेम से चीखना-चिल्लाना शुरू होता है तो आखिरी फ्रेम तक जारी रहता है। कानों को कष्ट होने लगता है। 
 
कुछ दृश्य बहुत ही बुरे तरीके से लिखे गए हैं। जैसे सपना के पिता अपनी बेटी को देखने के लिए एक लड़का बुलाते हैं तो उसके परिवार के साथ लाला की बहनें जिस तरह की हरकतें करती हैं उस पर आप सिर्फ आश्चर्य ही व्यक्त कर सकते हैं। भले ही यह सीन कॉमेडी के नाम पर रखा गया हो, लेकिन फिल्म में बिलकुल फिट नहीं बैठता। 
 
तीन-चौथाई फिल्म में ड्रामे के नाम पर उटपटांग हरकतें होती रहती है। जो ट्विस्ट भी दिया गया है उसके लिए ठोस कारण पैदा नहीं किया गया है। आखिरी के कुछ मिनटों में फिल्म आपको इमोशनल करती है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी रहती है। 
 
आनंद एल. राय एक सुलझे निर्देशक हैं, लेकिन यहां पर कहानी और स्क्रीनप्ले के चयन के मामले में गच्चा खा गए हैं। उन्हें फिल्म का टेंपो इतना लाउड रखने की जरूरत ही क्या थी, फिर चाहे रंगों का मामला हो या किरदारों के मिजाज का। हर कोई एक-दूसरे पर चढ़ाई के लिए ही तैयार रहता है।
 हर फ्रेम में जरूरत से ज्यादा भीड़ आनंद एल राय ने रखी है। फिल्म आपको छलावा देती है कि बहुत तेजी से भाग रही है जबकि हकीकत ये है कि 110 मिनट की फिल्म भी लंबी लगती है। 
 
अक्षय कुमार ओवर द टॉप रहे और कई जगह ओवरएक्टिंग करते दिखे, ले‍किन इसमें उनका दोष कम और निर्देशक का ज्यादा है। कम से कम उनके लिए ढंग की मूंछ तो चुनी जाती। भूमि पेडणेकर, साहिल मेहता, नीरज सूद और सदिया खतीब ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाए। सीमा पाहवा तो आधी फिल्म के बाद ही गायब हो गईं। असल में अक्षय कुमार पर इतना ज्यादा फोकस रहा कि दूसरे किरदारों को उभरने का मौका नहीं मिला। 
 
तकनीकी रूप से फिल्म औसत है और यही हाल संगीत का भी है। एडिटिंग जरूरत से ज्यादा शॉर्प है। कुल मिलाकर 'रक्षा बंधन' आनंद एल राय की सबसे कमजोर फिल्म है। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

बॉलीवुड हलचल

ग्रीन साड़ी पहन रश्मिका मंदाना ने फ्लॉन्‍ट की पतली क‍मरिया, देखिए एक्ट्रेस का दिलकश अंदाज

पोर्नोग्राफी मामले ने फिर बढ़ाई शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा की मुश्किलें, ED ने घर पर मारा छापा

पुष्पा 2 : द रूल पर चली सेंसर बोर्ड की कैंची, इतने घंटे होगा फिल्म का रनटाइम

फैन ने मांगा दिलजीत दोसांझ से कोलकाता कॉन्सर्ट का टिकट, सिंगर ने दिखाई दरियादिली

IFFI 2024 की क्लोजिंग सेरेमनी में बंदिश बैंडिट्स' सीजन 2 ने छेड़ा सुरों का शानदार संगम

सभी देखें

जरूर पढ़ें

भूल भुलैया 3 मूवी रिव्यू: हॉरर और कॉमेडी का तड़का, मनोरंजन से दूर भटका

सिंघम अगेन फिल्म समीक्षा: क्या अजय देवगन और रोहित शेट्टी की यह मूवी देखने लायक है?

विक्की विद्या का वो वाला वीडियो फिल्म समीक्षा: टाइटल जितनी नॉटी और फनी नहीं

जिगरा फिल्म समीक्षा: हजारों में एक वाली बहना

Devara part 1 review: जूनियर एनटीआर की फिल्म पर बाहुबली का प्रभाव

अगला लेख