रॉकेट्री द नम्बी इफेक्ट: फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 1 जुलाई 2022 (15:24 IST)
आर माधवन ने फिल्म 'रॉकेट्री: द नम्बी इफेक्ट' में जरूरत से ज्यादा जिम्मेदारियां उठा ली। निर्माता भी हैं, निर्देशन भी उनका है, कहानी-पटकथा-संवाद भी लिख डाले और फिल्म में लीड रोल भी निभाया है। यह भार फिल्म में नजर आता है। एक अभिनेता के रूप में तो वे प्रभावित करते हैं, लेकिन इस विषय पर एक अच्छा लेखक और निर्देशक कमाल कर सकता था। जैसा फिल्म के नाम से जाहिर है यह मूवी नंबी नारायणन पर आधारित बायोग्राफिकल ड्रामा फिल्म है। नम्बी नारायणन इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन के पूर्व वैज्ञानिक और एरोस्पेस इंजीनियर रह चुके हैं। 

 
यह ऐसे इंसान की कहानी है जिसने देश के लिए विज्ञान के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान दिया, लेकिन बाद में उस पर देश के साथ गद्दारी के आरोप लगे। मामला अदालत तक पहुंचा। परिवार के साथ बदसलूकी हुई। हालांकि बाद में नंबी नारायणन को अदालत ने बेकसूर ठहराया और उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण भी दिया। फिल्म दर्शाती है कि किस तरह से एक सीधे-सादे इंसान को कुछ लोग बुरी तरह प्रताड़ित कर उसे तोड़ने की कोशिश करते हैं। 
 
रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट दो भागों में बंटी है। इंटरवल के पहले वाला भाग नंबी की इंटेलीजेंसी और उपलब्धियों पर केन्द्रित है कि किस तरह सीढ़ी दर सीढ़ी वे सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए। इंटरवल के बाद दिखाया गया है कि नंबी के साथ साजिश होती है और किस तरह उनका परिवार मुसीबतों से घिर जाता है। 'गद्दारी' का आरोप लगते ही हाथ जोड़ने वाले लोग उन पर पत्थर बरसाने लगते हैं। 
 
आमतौर पर जो बात समझने में कठिन होती है उसे हम कहते हैं कि ये तो रॉकेट साइंस है। यह बात फिल्म के पहले भाग पर भी लागू होती है। माना कि फिल्म एक ऐसे वैज्ञानिक पर है जो रॉकेट टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है, लेकिन इतने ज्यादा टेक्नीकल शब्दों का उपयोग किया गया है मानो हम फिजिक्स का कोई लेक्चर अटैंड कर रहे हों। नंबी और उनके साथी की जो बातें हैं वो ज्यादातर दर्शकों के सिर के ऊपर से जाती है। समझ ही नहीं आता कि नंबी और उनके साथी किस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं? वे क्या बना रहे हैं? इससे क्या फायदा होगा? बेहतर होता कि इन बातों को बहुत ही सरल तरीके से समझाया जाता ताकि दर्शकों को सारी बातें समझ में आती। 
 
मोटी-मोटी बातें समझ आती है कि नंबी ने नासा का ऑफर ठुकराया था। वे 'लि‍क्विड प्रोपल्शन' के एक्सपर्ट थे। फ्रांस से उन्होंने वाइकिंग इंजिन टेक्नोलॉजी ली थी और बदले में 52 भारतीय वैज्ञानिकों ने फ्रांस में काम किया था। नंबी ने रॉल्स रॉयस के सीईओ से अरबों रुपये का प्लांट मुफ्त में लिया था। कूटनीति के बल पर रशिया से कुछ इंजिन अमेरिकियों के नाक के नीचे से लेकर भारत आए थे। इनमें से कुछ प्रसंग उम्दा हैं, लेकिन ज्यादातर बहुत ज्यादा टेक्नीकल हैं। 
 
नंबी पर जब गद्दारी के आरोप लगते हैं तो यहां भी बातें स्पष्ट नहीं होती। किसकी यह साजिश है? यह सब क्यों और अचानक कैसे हुआ? नंबी को बाद में बेकसूर क्यों ठहराया गया? इन प्रश्नों के उत्तर पूरी तरह नहीं मिलते। यहां पर सारा फोकस इस बात पर रहा कि नंबी और उनके परिवार के साथ कितना बुरा बर्ताव हुआ। फिल्म में कई बातें अस्पष्ट ही रह जाती हैं। फिल्म के लेखक बातों को सही तरीके से रख और समझा नहीं पाए। 
 
निर्देशक के रूप में आर माधवन छाप नहीं छोड़ते। कहानी कहने के लिए उन्होंने परंपरावादी तरीका अपनाया है। कुछ पारिवारिक दृश्य, दोस्तों के हंसी-मजाक वाले सीन और बीच-बीच में नंबी की उपलब्धियों का जिक्र। हल्के-फुल्के सीन बेअसर हैं। इन्हें मनोरंजन के लिए रखा गया है, लेकिन ये मनोरंजक नहीं लगते। नंबी नारायण की ऐतिहासिक उपलब्धि और उनके जुनून को फिल्म में इस तरह से पेश नहीं किया है कि दर्शकों को हिला कर रख दे। 
 
आर माधवन ने नम्बी नारायणन का रोल अच्छे से निभाया है। हालांकि उनका वजन काफी बढ़ गया है, लेकिन इस रोल की डिमांड फिजिकल फिटनेस नहीं है। मीना के रूप में सिमरन, उन्नी के रूप में सैम मोहन प्रभावित करते हैं। रजत कपूर की विग बड़ी अजीब लगी। अन्य अभिनेताओं ने भी अच्छा सपोर्ट किया है। गेस्ट अपियरेंस में शाहरुख खान शानदार रहे हैं। 
 
'रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट' एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जानकारी देती है जिसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं, लेकिन एक अच्छा निर्देशक इस बात और भी बेहतर तरीके से बता सकता था। 
 

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