सलाम वैंकी : फिल्म समीक्षा

Webdunia
शनिवार, 10 दिसंबर 2022 (08:31 IST)
सलाम वैंकी देख आपको संजय लीला भंसाली की फिल्म 'गुजारिश' की याद आ सकती है, जिसमें बीमारी से ग्रस्त एक युवा इच्छा मृत्यु की गुजारिश करता है। 'सलाम वैंकी' में 24  साल का युवा ऐसी बीमारी से ग्रस्त है जिसके शरीर के अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर रहे हैं। वह अपने शरीर के अंग डोनेट करना चाहता है और उसकी मां अपने बेटे के लिए इच्छा मृत्यु चाहती है और इसके लिए कोर्ट तक जा पहुंचती है। 
 
सलाम वैंकी और गुजारिश में अंतर यह है कि 'सलाम वैंकी' बहुत ही उदास फिल्म है। गुजारिश में दर्शकों के मनोरंजन का ध्यान रखा गया था, लेकिन सलाम वैंकी में ऐसा कुछ नहीं मिलता जो दर्शकों को खुश रख सके। 
 
माना कि कहानी में बहुत दु:ख है, दर्द है, लेकिन स्क्रीनप्ले और निर्देशन इस तरह का होना चाहिए था रोते-रोते दर्शक थोड़ा हंस भी ले। उसके मन में पात्रों के प्रति सहानुभूति भी हो। इस श्रेणी में 'आनंद' जैसी फिल्म कोई नहीं है। ठीक है, आनंद बनाना हर किसी के बस की बात नहीं है, लेकिन इसके आसपास तो जाया जा सकता है। 
 
यह फिल्म श्रीकांत मूर्ति द्वारा लिखी 'द लास्ट हुर्रा' पर आधारित रियल लाइफ स्टोरी है। वैंकी कृष्णन (विशाल जेठवा) अपनी जिंदगी के अंतिम दिनों में है। उसकी ख्वाहिश अंगदान की है, लेकिन भारत में आपको अपनी जिंदगी का लेने का हक नहीं है इसलिए उसकी मां सुजाता (काजोल) अदालत के द्वारा खटखटाती है। 
 
फिल्म पहले अस्पताल में घूमती रहती है और फिर अदालत में शिफ्ट होती है। माना कि सुजाता बहुत बहादुर महिला है, लेकिन अपने बेटे के लिए मृत्यु मांगने वाले सीन में जो इमोशन पैदा होने थे वो काम लेखक और निर्देशक से नहीं हो पाए। 
 
फिल्म कई बार बिखरी हुई भी लगती है और कुछ ट्रैक मामूली से लगते हैं। दरअसल इस फिल्म की लिखावट इतनी मजबूत नहीं है कि वे दर्शकों को हिला दे या झकझोर दे। 
 
निर्देशक के रूप में रेवती का काम खास नहीं है। वे फिल्म को एक दिशा नहीं दे पाई और न ही मुद्दे को जोर-शोर से उठा पाई। दर्शकों को इमोशनल करने की उनकी कोशिश दिखाई देती है।  
 
जहां तक एक्टिंग का सवाल है तो काजोल औसत से बेहतर रहीं, लेकिन उस स्तर के तक नहीं पहुंच पाईं जितनी उनमें क्षमता है। विशाल जेठवा का काम बेहतर है। प्रकाश राज, राजीव खंडेलवाल, राहुल बोस, आहना कुमरा मजबूती से उपस्थिति दर्ज कराते हैं। स्पेशल अपियरेंस में आमिर खान भी हैं। 
 
सलाम वैंकी का विषय हटके जरूर है, लेकिन फिल्म वैसी नहीं है। 

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