हाल ही में जियो हॉटस्टार पर रिलीज हुई वेबसीरिज सर्च: द नैना मर्डर केस को रोहन सिप्पी ने निर्देशित किया है। यह लोकप्रिय डेनिश सीरिज The Killing का भारतीय रूपांतरण है। लगभग चार घंटे की यह सीरिज 6 एपिसोड में खत्म होती है और शुरू से ही दर्शकों को एक रोमांचक मर्डर मिस्ट्री का वादा करती है। लेकिन अंत तक आते-आते कहानी की रफ्तार और रोमांच दोनों ही थम जाते हैं।
सीरिज की सबसे बड़ी खामी इसका अंत है। कहानी जैसे ही गति पकड़ने लगती है, अचानक वहीं खत्म हो जाती है और दर्शक के मन में सवालों का अंबार छोड़ देती है। जैसा कि आजकल की वेबसीरिज़ में चलन बन गया है, अगला सीजन लाने के लिए कुछ बातें अधूरी छोड़ दी जाती हैं, लेकिन सर्च में तो पूरी कहानी ही अधूरी रह जाती है। न कातिल का खुलासा होता है, न ही रहस्य का समाधान। दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है और यही इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है।
कहानी नैना नाम की एक कॉलेज गर्ल के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसकी लाश जंगल में बरामद होती है। अब सवाल ये है कि आखिर नैना को किसने और क्यों मारा? यही रहस्य सुलझाने के लिए एसीपी संयुक्ता दास (कोंकणा सेन शर्मा) मैदान में उतरती हैं।
रोहन सिप्पी ने कहानी में कई सब-प्लॉट्स जोड़े हैं ताकि कहानी को भावनात्मक और सामाजिक परतों में बांधा जा सके। जैसे, संयुक्ता दास एक ईमानदार लेकिन ऐसी महिला अफसर हैं, जो अपने काम और निजी जीवन के बीच संतुलन नहीं बना पा रही। उनकी टीनएज बेटी उनसे नाराज है, पति के साथ मतभेद हैं और करियर की जिम्मेदारियां उन्हें लगातार दबाव में रखती हैं। ये बातें आजकल क्राइम इन्वेस्टिगेशन सीरिज में आम हो चली है।
शक की सुई नेता (शिव पंडित) पर भी घूमती है, जिसकी पार्टी जल्दी हो रहे चुनाव का हिस्सा है। कुछ ऐसे लोगों पर भी शक की सुई घुमाई जाती है जिसे देख दर्शक फौरन जान जाते हैं कि यह कातिल नहीं है।
संयुक्ता की टीम में जय कंवल (सूर्या शर्मा) नाम का एक अधिकारी आता है जो उनके बिल्कुल उलट स्वभाव का है। दोनों के बीच लगातार नोकझोंक चलती रहती है और यही सीरिज को कुछ मानवीय स्पर्श देती है। मगर इन सबके बावजूद कहानी में वह गहराई नहीं आ पाती जो एक अच्छे थ्रिलर के लिए जरूरी होती है।
रोहन सिप्पी जैसे अनुभवी निर्देशक सर्च में वे किसी भी स्तर पर दर्शकों को चौंकाने में नाकाम रहते हैं। सीरिज का टोन और सिनेमैटिक ट्रीटमेंट तो बांध कर रखता है, लेकिन कहानी और लेखन कमजोर कड़ी साबित होती है। हर मोड़ अनुमानित लगता है। संवादों में धार नहीं है और इन्वेस्टिगेशन सीन तो जैसे बस औपचारिकता भर लगते हैं।
मर्डर मिस्ट्री की जान होती है उसका रोमांच, कि आखिर कातिल कौन है और क्यों, लेकिन सर्च में ये सस्पेंस तो क्रिएट किया गया है लेकिन मजा नहीं आता। कहानी में ट्विस्ट कम और खालीपन ज्यादा है।
अगर इस सीरिज को देखने का कोई ठोस कारण है, तो वह हैं कोंकणा सेन शर्मा। उन्होंने एसीपी संयुक्ता दास के किरदार में जान डाल दी है। उनका चेहरा भावनाओं का दर्पण है, थकान, गुस्सा, आत्मसंघर्ष और संवेदनशीलता सब कुछ झलकता है। जब-जब वह स्क्रीन पर आती हैं, कहानी थोड़ा बेहतर महसूस होती है।
सूर्या शर्मा और शिव पंडित ने भी अपने किरदारों को ईमानदारी से निभाया है। अन्य कलाकारों का काम भी उम्दा है।
सीरिज की सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छे हैं। एडिटिंग थोड़ी कसावट मांगती थी क्योंकि कुछ हिस्से अनावश्यक रूप से लंबे लगते हैं।
अंततः, सर्च: द नैना मर्डर केस एक अधूरी और धीमी मर्डर मिस्ट्री है, जो बड़े वादे करती है लेकिन उन्हें निभा नहीं पाती। इसका अंत दर्शक के धैर्य की परीक्षा लेता है। सिर्फ कोंकणा सेन शर्मा का दमदार अभिनय ही इसे थोड़ा संभाल पाता है। इस सीरिज को तब वक्त दिया जा सकता है जब देखने के लिए ओटीटी पर कुछ ढंग का नहीं मिल रहा हो।
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निर्देशक : रोहन सिप्पी
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कलाकार: कोंकणा सेन शर्मा, सूर्या शर्मा, शिव पंडित, श्रद्धा दास
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ओटीटी: जियो हॉटस्टार
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सीजन: 1, एपिसोड्स: 6
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रेटिंग: 2/5