सुल्तान : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
पिछले कुछ दिनों से बॉलीवुड में खेल की पृष्ठभूमि पर फिल्म बनने लगी हैं और सुपरस्टार सलमान खान की फिल्म 'सुल्तान' देसी खेल कुश्ती के इर्दगिर्द बुनी गई प्रेम कथा है। 
 
कहानी है हरियाणा के एक गांव की। 30 साल का सुल्तान अली खान (सलमान खान) इस उम्र में भी पतंग लूटता रहता है और जिंदगी के प्रति गंभीर नहीं है। आरफा हुसैन (अनुष्का शर्मा) एक पहलवान की बेटी है और उसका सपना भारत के लिए कुश्ती में ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीतना है। आरफा को सुल्तान दिल दे बैठता है, लेकिन आरफा उसे उसकी औकात या‍द दिला देती है। इस बेइज्जती से सुल्तान जिंदगी को सीरियसली लेने लगता है और पहलवानी शुरू करता है। कामयाबी उसके कदम चूमती है और आरफा से उसका निकाह हो जाता है। विवाह के बाद एक ऐसी घटना घटती है कि आरफा और सुल्तान के बीच दीवार खड़ी हो जाती है। एक-दूसरे को चाहने के बावजूद दोनों अलग हो जाते हैं। इससे सुल्तान टूट जाता है। हालात ऐसे बनते है कि वह 'प्रो टेक डाउन' स्पर्धा में हिस्सा लेता है। चालीस की उम्र में तोंद के साथ सुल्तान के लिए विश्व के दिग्गज खिलाड़ियों से भिड़ना आसान बात नहीं है। क्या वह सफल वापसी कर पाएगा? क्या आरफा और सुल्तान के बीच की दूरी मिटेगी? इन बातों का जवाब फिल्म में मिलता है। 
 
फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले, संवाद और निर्देशन अली अब्बास ज़फर ने किया है। अली ने अपनी कहानी को दो भागों में बांटा है। एक तरफ सुल्तान, आरफा और पहलवानी है तो दूसरी ओर सुल्तान-आरफा की मोहब्बत है। इन दोनों कहानियों को उन्होंने पिरोकर खूबसूरती से साथ चलाया है। 
 
दोनों कहानियों की तुलना की जाए तो खेल पर प्रेम भारी पड़ता है। सलमान की जो पहलवान के रूप में यात्रा दिखाई गई है वो अविश्वसनीय है। अधिक उम्र में एक खिलाड़ी का कुश्ती सीखना आरंभ करना और देखते ही देखते अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में मैडल जीतना, यह बात हजम नहीं होती। यहां कहानी पर सुपरस्टार सलमान भारी पड़ते हैं। खेल को गंभीरता से न लेते हुए निर्देशक ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि सलमान सुपरस्टार हैं, इसलिए उनके लिए यह सब मुमकिन है। फिल्म में जहां-जहां खेल आता है वहां-वहां सलमान मिसफिट लगते हैं। ऐसा लगता है कि उनकी जगह युवा सितारा होना चाहिए था, लेकिन युवा सितारों के स्टारडम में इतना दम नहीं है कि वे सलमान की तरह भीड़ खींच सके।
 
सुल्तान और आरफा की प्रेम कहानी बहुत ही उम्दा तरीके से पेश की गई है। यहां दो प्रेमियों की जिद, अहं का टकराव, जुनून वाला इश्क और अलगाव है। सुल्तान और आरफा के किरदार सीधे दर्शकों से जुड़ जाते हैं। दर्शक उनकी मोहब्बत और जुदाई को महसूस करते हैं।


 
'सुल्तान' की कहानी पिछले वर्ष रिलीज हुई 'ब्रदर्स' से मिलती-जुलती है, लेकिन 'ब्रदर्स' एक सूखी फिल्म थी जिसमें इमोशन नकली लगे, सुल्तान में इमोशनल की लहर पूरी फिल्म में बहती रहती है और इस लहर के नीचे कहानी और स्क्रिप्ट की कमियां छुप जाती हैं। सुल्तान-आरफा की प्रेम कहानी को धार देते हैं फिल्म के गीत। इरशाद कामिल ने सार्थक बोल लिखे हैं, भले ही गाने हिट नहीं हुए हैं, लेकिन फिल्म देखते समय ये कहानी को आगे बढ़ाने और दर्शकों को फिल्म से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
 
निर्देशक के रूप में अली अब्बास ज़फर ने अपना काम इत्मीनान से किया है। उन्होंने फिल्म को दो घंटे 50 मिनट की बनाया है ताकि सलमान के फैंस परदे पर भरपूर सलमान दर्शन कर सकें। अली ने कमर्शियल फॉर्मेट का ध्यान रखा है, लेकिन साथ ही उन्होंने फिल्म को फॉर्मूलाबद्ध होने से बचाया है। सुल्तान और आरफा के किरदार को गढ़ने में भरपूर समय लिया है और फिर सुल्तान को खेल की दुनिया में उतारा है। सलमान को उन्होंने उसी मासूमियत के साथ पेश किया है जिसे देखना दर्शकों को पसंद है। बेटे-बेटी के उपदेशात्मक जैसे कुछ दृश्यों से बचा जा सकता था।
 
पहले हाफ में फिल्म तेजी से चलती है। दूसरे हाफ के शुरुआत में फिल्म लड़खड़ाती है, लेकिन अंत में फिर संभल जाती है। फिल्म के अंत में क्या होने वाला है, सभी जानते हैं, लेकिन सलमान अपनी उपस्थिति से इस जाने-पहचाने क्लाइमेक्स में जोश भर देते हैं। 
 
फिल्म को आर्टर ज़ुरावस्की नामक पोलिश सिनेमाटोग्राफर ने शूट किया है। उन्होंने न केवल हरियाणा बल्कि कुश्ती और मार्शल आर्ट वाले सीन भी उम्दा तरीके से शूट किए हैं। आमतौर पर स्पोर्ट्स वाले सीन फिल्म में बहुत ज्यादा होते हैं तो उनकी एकरसता से दर्शक बोर हो जाते हैं, लेकिन यह आर्टर की सिनेमाटोग्राफी का कमाल है कि उन्होंने हर फाइट को अलग-अलग कोणों से शूट किया है। 

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फिल्म के सभी कलाकारों का काम अच्छा है। सलमान खान ने कुश्ती वाले सीन में काफी मेहनत की है। धोबी पछाड़ वाले दृश्य वास्तविक लगते हैं। दौड़-भाग वाले सीन में वे उतने फुर्तीले नहीं लगते हैं जितना की फिल्म में उन्हें दिखाया गया है। उनका अभिनय अच्छा और ठहराव लिए है। खास बात यह है कि सुल्तान को उन्होंने सलमान खान नहीं बनने दिया। हरियाणवी लहजे में हिंदी बोली है। कहीं-कहीं वे जल्दी बोल गए हैं जिससे कुछ संवाद समझ में नहीं आते हैं। निर्देशक को हरियाणवी के कठिन शब्दों से बचना था। 
 
अनुष्का शर्मा ने अपने किरदार को खास एटीट्यूड दिया है। वे महिला पहलवान के रूप में विश्वसनीय लगी हैं और भावनात्मक दृश्यों में उनका अभिनय देखते ही बनता है। रणदीप हुड्डा छोटे रोल में अपना असर छोड़ जाते हैं। सुल्तान के दोस्त के रूप में अनंत शर्मा प्रभावित करते हैं। अमित सध, परीक्षित साहनी सहित अन्य अभिनेताओं की एक्टिंग बेहतरीन है। 
 
'सुल्तान' परफेक्ट फिल्म नहीं है, लेकिन मनोरंजन का झरना फिल्म में निरंतर बहता रहता है इसलिए देखी जा सकती है। यदि आप सलमान के फैन हैं तो कहने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। 
 
बैनर : यश राज फिल्म्स
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : अली अब्बास जफर 
संगीत : विशाल-शेखर
कलाकार : सलमान खान, अनुष्का शर्मा, रणदीप हुड्डा, अमित सध 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 50 मिनट 
रेटिंग : 3/5 
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