द फैमिली मैन भारत की उन चुनिंदा वेबसीरीज़ में से है जिसके हर सीजन का इंतजार दर्शक सांस रोककर करते हैं। पहले दो सीजन की सफलता के बाद तीसरा सीजन एक जिम्मेदारी लेकर आता है, कहानी को आगे बढ़ाने की, किरदारों को और गहराई देने की और दर्शकों को पहले जैसा रोमांच महसूस कराने की। निदेशक राज-डीके ने इस बार दायरा और बड़ा कर दिया है। कहानी नॉर्थ ईस्ट की ओर मुड़ती है, जहां अशांति सिर्फ स्थानीय नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय साजिशों का नतीजा है।
देश की सीमा से सटे इलाकों में चीन द्वारा बसाए गए गांवों का मुद्दा कहानी को मजबूती देता है। यह सिर्फ एक जासूसी थ्रिलर नहीं, बल्कि उन वास्तविक चुनौतियों की ओर इशारा है जिनसे भारत जूझ रहा है। स्थानीय नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक, सभी शांति और प्रगति की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जमीन पर हालात हर गुजरते दिन के साथ उलझते ही जा रहे हैं।
कहानी का दायरा तब और रोमांचक हो जाता है जब पता चलता है कि इंटरनेशनल हथियार माफिया भी इस क्षेत्र को अस्थिर बनाकर फायदा उठाना चाहता है। इस पूरी साज़िश के बीच श्रीकांत फिर एक ऐसे जाल में उलझ जाता है जहाँ दुश्मन ही नहीं, बल्कि उसके अपने लोग भी उसके खिलाफ खड़े दिखाई देते हैं।
इस बार श्रीकांत की जर्नी सिर्फ मिशन तक सीमित नहीं है। वह अपने निजी जीवन को बचाने की कोशिश कर रहा है, करियर दांव पर लगा है और ऊपर से हर तरफ अविश्वास की दीवारें खड़ी होती जा रही हैं। यही चीज सीरीज को भावनात्मक रूप से और मजबूत बनाती है।
श्रीकांत के जीवन में एक और ट्विस्ट तब आता है जब उसकी जगह ऑफिसर यतीश को उतार दिया जाता है। वहीं सुचित्रा से उसका रिश्ता भी लगातार खिंच रहा है और दोनों के बीच की दूरी कहानी में एक अलग कड़वाहट जोड़ती है।
सीजन 3 की सबसे मजबूत बात है इसके नए किरदार। रुक्मा के रूप में जयदीप अहलावत पूरी स्क्रीन पर छा जाते हैं। उनका रफ-टफ, इमोशनलेस और खतरनाक अंदाज़ कहानी में जान भर देता है। मीरा के रूप में निमरत कौर न सिर्फ स्टाइलिश, बल्कि एक इंटरनेशनल टच भी जोड़ती हैं, हालांकि उनका किरदार कुछ जगहों पर स्क्रिप्ट के कारण कमजोर पड़ता है।
जुगल हंसराज द्वारा निभाया गया हथियारों का सौदागर द्वारकानाथ पुराने दौर की याद दिलाता है, शांत दिखने वाला लेकिन अंदर तक खतरनाक आदमी। गुल पनाग की सलोनी भी लंबे समय बाद वापसी करके कहानी में पुराना कनेक्शन जोड़ती है।
प्रियमणि, शरीब हाशमी और दर्शन कुमार जैसे कलाकार अपनी भूमिकाओं में सहज दिखाई देते हैं, हालांकि कुछ को स्क्रीन टाइम कम मिलना खटकता है।
सीरिज तेज रफ्तार में शूट की गई है और कई जगह रोमांच चरम पर पहुंच जाता है। दृश्य असली लोकेशन पर फिल्माए गए हैं, जो कहानी में यथार्थ जोड़ते हैं। लेकिन जिस बात से दर्शक सबसे ज्यादा निराश होते हैं वह है इसका अंत।
अगले सीजन के लिए कुछ धागे छोड़ने की परंपरा समझ में आती है, लेकिन यहां तो बहुत सारे सवाल अनसुलझे रह जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे कहानी अचानक बीच में ही छोड़ दी गई हो।
मीरा जैसे स्मार्ट किरदार का म्यांमार जाकर आसानी से फंस जाना जानबूझकर लिखा हुआ ट्विस्ट लगता है। वहीं श्रीकांत के दो पुराने साथियों द्वारा अचानक नियम तोड़कर उसका साथ देना भी सहज नहीं लगता। ये कमियां कहानी की पकड़ कमजोर कर देती हैं।
मनोज बाजपेई इस सीजन की रीढ़ हैं। उनकी अभिनय क्षमता इतनी स्वाभाविक है कि वह हर सीन में एक नया स्तर जोड़ देते हैं। जयदीप अहलावत की मौजूदगी सीरीज में वही असर छोड़ती है जैसे पहले सीजन में मूसा की धमक महसूस हुई थी।
नॉर्थ ईस्ट की रियल लोकेशन, पहाड़ी रास्ते, राजनीतिक माहौल और स्थानीय संस्कृति सीरीज को एक नया लुक देते हैं। इन सबके बीच कहानी अपनी पकड़ बनाए रखती है, लेकिन अगर अंत थोड़ा ठोस होता, तो यह सीजन एक धमाकेदार मास्टरपीस बन सकता था।
कलाकार : मनोज बाजपेयी, शरीब हाशमी, दर्शन कुमार, प्रियमणि, दलीप ताहिल, जयदीप अहलावत, निमरत कौर, गुल पनाग, जुगल हंसराज
सीजन: 3 * एपिसोड्स : 7
अमेज़न प्राइम वीडियो पर उपलब्ध
रेटिंग : 3/5