ट्रैप्ड : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
ट्रैप्ड से विक्रमादित्य मोटवाने, अनुराग कश्यप और राजकुमार राव जुड़े हुए हैं। अनुराग ने पैसा लगाया है। मोटवाने ने इसके पहले उड़ान और लुटेरा जैसी बेहतरीन फिल्में बनाई हैं। राजकुमार राव ने तो अभिनय में कई पुरस्कार जीते हैं, इसलिए फिल्म के प्रति उत्सुकता होना स्वाभाविक है। 
 
फिल्म के नाम से ही स्पष्ट है कि‍ कोई फंस गया है। ये और कोई नहीं फिल्म का हीरो शौर्य (राजकुमार राव) है। वह फंसा है एक बिल्डिंग की 35वीं मंजिल पर स्थित एक छोटे से फ्लैट में। न उसके पास खाने को है और न पीने को। बिजली भी नहीं है। बिल्डिंग में कोई भी नहीं रहता है। उसे नीचे लोग नजर आ रहे हैं पर उसकी आवाज उन तक नहीं पहुंचती। वह कई तरीके आजमाता है, लेकिन सभी बेअसर साबित होते हैं। वह वहां कैसे फंसा? बाहर निकल पाया या नहीं? इसके जवाब के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। 
शौर्य फ्लैट से बाहर निकालने के लिए अपना दिमाग लगाता है और फिल्म देख रहे दर्शक अपना। आपके द्वारा सोची गई बात कभी वह पहले कर लेता है तो कभी बाद में। इस तरह से दर्शक के दिमाग में उत्पन्न कुछ बातों का समाधान मिल जाता है तो कुछ का नहीं।
 
शौर्य आग लगाता है। कार्डबोर्ड पर लिखकर मैसेज नीचे भेजता है। चीखता है। चीजें नीचे फेंकता है, पर सब बेअसर। वह थकता है। गिरता है। फिर उठता है और अपना संघर्ष जारी रखता है। इस दौरान वह अपने कुछ डर पर भी जीत हासिल करता है। चूहों से डरने वाला शौर्य कबूतर मार गिराता है। 
 
निर्देशक विक्रमादित्य मोटवाने के सामने बड़ा चैलेंज था। फिल्म का 90 प्रतिशत वक्त एक छोटे से फ्लैट में गुजरता है। ज्यादातर समय एक ही कलाकार दिखाई देता है। संवाद भी ज्यादा नहीं है। दर्शकों को बांध कर रखना आसान नहीं था। 102 मिनट का समय उन्होंने लिया और अच्छी बात यह कि इंटरवल नहीं किया ताकि दर्शक शौर्य के तनाव को लगातार महसूस कर सके। वे फिल्म पर पकड़ बनाए रखते हैं, लेकिन स्क्रिप्ट की कमियां बार-बार उभर आती हैं।
 
स्क्रिप्ट में कुछ गलतियां हैं। कोई घर में बंद हो जाए तो दरवाजे पर सबसे ज्यादा जोर लगाता है, लेकिन शौर्य इस दिशा में ज्यादा प्रयास नहीं करता। वह चाहता तो घर के दरवाजे में ही आग लगा सकता था। क्या दरवाजा फायर-प्रूफ था? यह बात कही बताई नहीं गई। शौर्य का जिंदगी और मौत का संघर्ष दर्शकों को अपील नहीं करता। उसकी झटपटाहट महसूस नहीं होती। 
 
यह जानने की सभी को इच्छा होती है कि वह कैसे निकलेगा? क्लाइमैक्स में यह देखने को मिलता भी है, लेकिन ऐसा नहीं है कि आप 'वाह' कह सके। 
 
राजकुमार राव का अभिनय शानदार है। डर, जीत, झुंझलाहट, हार, संघर्ष के सारे भाव उनके चेहरे पर देखने को मिलते हैं। गीतांजली थापा का रोल छोटा जरूर है, लेकिन वे उपस्थिति दर्ज कराती हैं। 
 
हॉलीवुड में इस तरह की कई फिल्में बनी हैं, बॉलीवुड में इस तरह का यह पहला प्रयास है। बात पूरी तरह बन नहीं पाई, लेकिन प्रयास की सराहना की जा सकती है। 
 
बैनर : फैंटम प्रोडक्शन्स, रिलायंस एंटरटेनमेंट
निर्माता : मधु मंटेना, विकास बहल, अनुराग कश्यप
निर्देशक : विक्रमादित्य मोटवाने
कलाकार: राजकुमार राव, गीतांजली थापा 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 1 घंटा 42 मिनट 56 सेकंड
रेटिंग : 2/5 
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