ऊंचाई : फिल्म समीक्षा

Webdunia
शनिवार, 12 नवंबर 2022 (13:50 IST)
1947 में स्थापित राजश्री प्रोडक्शन्स प्रा.लि. पिछले 75 बरस से फिल्म बना रहा है और इतने समय तक जोखिम भरे फिल्म व्यवसाय में टिके रहना का‍बिल-ए-तारीफ है। इस बैनर की 60 वीं फिल्म 'ऊंचाई' को सूरज बड़जात्या ने निर्देशित किया है।

यह बैनर साफ-सुथरी, पारिवारिक और नैतिकता से भरपूर फिल्में बनाने के लिए जाना जाता है और सूरज अभी भी इसी लाइन पर चल रहे हैं। इस तरह की बातें फिल्म के जरिये अभी भी कही जा सकती हैं, लेकिन वर्तमान दौर को देखते हुए बात कहने के तरीके में बदलाव की जरूरत है और राजश्री प्रोडक्शन इस बदलाव के लिए तैयार नहीं है। 
 
ऊंचाई में दोस्ती, फर्ज, परिवार का ध्यान रखना जैसी तमाम बातें बताई गई हैं, लेकिन इनमें से कुछ थोपी हुई लगती है। ऐसा लगता है कि ज्ञान देना है तो उसके मुताबिक दृश्य रचे गए हैं और इसी तरह के सीन फिल्म को कमजोर करते हैं। दूसरी ओर कुछ दृश्य इतने जोरदार हैं जो सीधे दिल को छूते हैं और आपको भावुक कर देते हैं। 
 
जिंदगी ना मिलेगी दोबारा में युवा दोस्त एक ट्रिप पर निकलते हैं और मौज-मस्ती कर अपनी कुछ ख्वाहिश पूरी करते हैं, उसी तरह 'ऊंचाई' में 70 से 80 की उम्र के बीच दोस्त एक ट्रिप पर निकलते हैं और इसके पीछे एक इमोशनल वजह है। अमित श्रीवास्तव (अमिताभ बच्चन), ओम शर्मा (अनुपम खेर), जावेद सिद्दीकी (बोमन ईरानी) और भूपेन बरुआ (डैनी) की दोस्ती को 50 बरस से भी ज्यादा हो गए हैं। 
 
भूपेन के दिल में हमेशा से ख्वाहिश रही है माउंट एवरेस्ट जाने की। अचानक एक दिन उसकी मृत्यु हो जाती है जिससे उसके तीनों दोस्तों को झटका लगता है। वे अपने दोस्त की याद में माउंट एवरेस्ट बेस कैम्प में जाने का फैसला करते हैं, लेकिन ये इतना आसान नहीं है। उम्र हो चली है, बीमारी घर कर चुकी है, शरीर जवाब दे रहा है, लेकिन अपने जज्बे और जिद के कारण ये कठिन यात्रा पर निकल पड़ते हैं। अमित, ओम और जावेद के साथ माला (सारिका) भी शामिल होती है और ट्रेकिंग इंस्ट्रक्टर श्रद्धा (परिणिति चोपड़ा) के मार्गदर्शन में ये यात्रा शुरू होती है। 
 
कहानी सुनील गांधी की है और स्क्रीनप्ले लिखा है अभिषेक दीक्षित ने। कहानी में पारिवारिक मूल्य, दोस्ती, अपेक्षा, आशा जैसे कई संदेश दिए गए हैं और स्क्रीनप्ले राइटर्स ने इन बातों को ध्यान में रख कर सीन रचे हैं। कुछ उतार-चढ़ाव दिए हैं और भावुकता पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। 
 
ट्रैक पर जाने वाली मूल कहानी के साथ हर किरदार की बैक स्टोरी भी दिखाई गई है इनमें से कुछ दिल को छूती है और कुछ नहीं। लेकिन इनके कारण एवरेस्ट पर जाने वाला ट्रैक इतनी देर से शुरू होता है कि दर्शकों के सब्र का बांध टूटने लगता है। बेहद लंबे सीन आते हैं और बोरिंग लम्हों से भी सामना होता है। ये बात और है कि कुछ अच्छे सीन बीच-बीच में आकर फिल्म को संभाल भी लेते हैं। 
 
ट्रैकिंग वाले दृश्यों में दोहराव है इसलिए इनमें रोमांच नदारद है। इतनी उम्र वालों को इतना कठिन काम करते देखना विश्वसनीय भी नहीं लगता। यदि कलाकार बेहद फिट होते तो बात और होती। 
 
सूरज बड़जात्या बतौर निर्देशक इमोशनल दृश्यों में अपनी छाप छोड़ते हैं। कुछ दृश्य उनके जादुई टच के कारण ही देखने लायक बने हैं। कलाकारों से भी उन्होंने बेहतरीन काम लिया है।   
 
फिल्म में सभी शानदार कलाकार हैं और उनका अभिनय देखते ही बनता है। अमिताभ बच्चन ने बेहतरीन अभिनय किया है और पूरी तरह से किरदार में डूबे नजर आए हैं। उनका ये अभिनय लंबे समय याद रहेगा। अनुपम खेर जबरदस्त रहे हैं और इमोशनल दृश्यों में उनका अभिनय देखने लायक है। यही बात बोमन ईरानी के लिए भी है और वे बेहद सहज नजर आए। स्पेशल अपियरेंस में डैनी छा जाते हैं। नीना गुप्ता ने दिखाया है कि वे कितनी बेहतरीन अभिनेत्री हैं। सरिका भी प्रभाव छोड़ती हैं। 
 
फिल्म के कुछ डायलॉग बेहतरीन हैं। अमित त्रिवेदी ने कुछ अच्छी धुन बनाई हैं। मनोज कुमार खटोई की सिनेमाटोग्राफी लाजवाब है और उन्होंने खूबसूरत लोकेशन को इस तरह पेश किया है मानो हम वहीं पर पहुंच गए हों। फिल्म की एडिटिंग लूज है और इसे कम से कम 30 मिनट छोटा किया जाना चाहिए। 
 
ऊंचाई एक ऐसी मूवी है जो अच्छे और बोरिंग लम्हों के बीच में झूलती रहती है। बेहतरीन अभिनय और कुछ इमोशनल सीन प्लस पाइंट हैं तो धीमी गति और दोहराव वाले सीन इसके माइनस पाइंट्स हैं। 

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