एक दीवाना था : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
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निर्माता : फॉक्स स्टार स्टुडियो
निर्देशक : गौतम मेनन
संगीत : एआर रहमान
कलाकार : प्रतीक, एमी जैक्सन
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 16 रील
रेटिंग : 1/5

सचिन कुलकर्णी (प्रतीक) मलयाली लड़की जेस्सी (एमी जैक्सन) को चाहता है। सचिन के मुताबिक जेस्सी से शादी में कुछ अड़चने हैं। जैसे लड़का हिंदू है तो लड़की ईसाई। उम्र में लड़की एक साल उससे बड़ी है। लड़की के माता-पिता रूढ़िवादी हैं। वे फिल्म नहीं देखते और न ही अमिताभ बच्चन को पहचानते जबकि लड़का फिल्मों में अपना करियर बनाना चाहता है। लड़की का भाई भी एक बड़ी रूकावट है।

इसी तरह की कुछ रूकावटें दर्शक और मनोरंजन के बीच है। जैसे कहानी ठीक से लिखी नहीं गई है। स्क्रीनप्ले की बात करना बेकार है। निर्देशन बेहद साधारण है। कलाकारों की एक्टिंग भी खास नहीं है। फिल्म इतनी लंबी और उबाऊ है कि नींद आने लगती है।

आश्चर्य की बात तो ये है कि इस फिल्म को गौतम मेनन ने निर्देशित किया है जो दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में एक बड़ा नाम है। गौतम की इस फिल्म से दर्शक कभी जुड़ नहीं पाता। साथ ही तकनीकी रूप से भी फिल्म बेहद कमजोर है। आधी से ज्यादा फिल्म में कैमरा एंगल और एडिटिंग बेहद घटिया है।

एक लव स्टोरी में जो इमोशंस और स्पार्क चाहिए वो पूरी फिल्म में मिसिंग है। अंतिम कुछ रीलों में फिल्म गति पकड़ती है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी रहती है। इस फिल्म को दो अंत के साथ रिलीज किया गया है।

सचिन और जेस्सी के कैरेक्टर्स को ठीक से नहीं लिखा गया है। वे पूरी तरह कन्फ्यूज नजर आते हैं क्योंकि कब क्या प्रतिक्रिया देंगे, कहा नहीं जा सकता। अच्छे से बात करते हुए वे अचानक चिल्लाने लगते हैं।

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सचिन पहली नजर में ही जेस्सी को दिल दे बैठता है। प्यार के इजहार में भी जल्दबाजी कर देता है। जेस्सी उसे साफ बता देती है कि वह उसे नहीं चाहती, लेकिन धीरे-धीरे उस पर सचिन का जादू चलने लगता है।

जेस्सी को इतना हिम्मतवाली बताया गया है कि वह चर्च में दूसरे शख्स से शादी करने से इंकार कर देती है, लेकिन यह बात घरवालों को बताने की उसमें हिम्मत नहीं है कि वह सचिन से शादी करना चाहती है।

सचिन से संबंध तोड़ कर उसका यूके चले जाना भी समझ से परे है। वह सचिन से इतनी सी बात से नाराज हो जाती है कि सचिन ने उसे वहां मिलने नहीं आने दिया जहां वह शूटिंग कर रहा था। सचिन ने भी उसे क्यों नहीं आने दिया, इसका भी कोई जवाब नहीं मिलता। फिल्म और फिल्म इंडस्ट्री को लेकर किए गए सचिन के मजाक भी बेहद बुरे हैं।

पूरी फिल्म ऐसी लगती है ‍जैसे किसी लेख का खराब अनुवाद किया गया हो। शायद गौतम मेनन ठीक से हिंदी समझते नहीं हैं और इसी कारण हिंदी रीमेक में गड़बड़ी नजर आती हैं। वे अपने कलाकारों के भावों को ठीक से पेश नहीं कर पाए, जबकि लव स्टोरी में एक्सप्रेशन का सही होना बेहद जरूरी होता है।

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प्रतीक बब्बर पूरी तरह से डायरेक्टर्स एक्टर हैं। अच्छा निर्देशक मिलता है तो उनका काम निखर कर आता है। ‘एक था दीवाना’ में वे निराश करते हैं। उनके अभिनय में विविधता नजर नहीं आती।

एमी जैक्सन सुंदर हैं, लेकिन उम्र में वे प्रतीक से एक वर्ष नहीं बल्कि चार-पांच साल बड़ी दिखाई देती हैं और हैं भी। उनका अभिनय कहीं ठीक है तो कहीं बुरा। एमी का किरदार को ठीक से पेश नहीं किया गया है जिसका असर उनके अभिनय पर पड़ा है। प्रतीक के दोस्त बने मनु रिषी वाले सीन थोड़ा मनोरंजन करते हैं। शोले बनाने वाले रमेश सिप्पी भी चंद सीन में नजर आते हैं।

फिल्म के संगीत से जावेद अख्तर और एआर रहमान के नाम जुड़े हुए हैं। उनका काम अच्छा है, लेकिन उनकी ख्याति के अनुरूप नहीं है।

कुल मिलाकर ‘एक था दीवाना’ में दीवानगी नदारद है।

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