सतीश कौशिक को रीमेक बनाने में महारत हासिल है। उन्होंने दक्षिण भारत की भाषाओं की फिल्मों के हिंदी रीमेक बनाए हैं। इस बार उन्होंने सुभाष घई की 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘कर्ज’ के आधार पर हिमेश रेशमिया के साथ ‘कर्ज’ बनाई है।
मोंटी (हिमेश रेशमिया) एक दक्षिण अफ्रीका का लोकप्रिय रॉकस्टार है। एक बार अचानक वह एक धुन बजाने लगता है। उसे एक हवेली, मंदिर और एक लड़की दिखाई देती है और वह बेहोश हो जाता है। एक पार्टी में उसकी मुलाकात टीना (श्वेता कुमार) से होती है। टीना को मोंटी पसंद करने लगता है।
छुट्टियाँ बिताने के लिए मोंटी केन्या जाता है, जहाँ उसे वो हवेली नजर आती है, जिसकी छवि उसे अकसर दिमाग में दिखाई देती है। धीरे-धीरे मोंटी को अपने पिछले जन्म की याद आने लगती है।
पिछले जन्म में वह रवि वर्मा (डीनो मोरिया) था और कामिनी (उर्मिला मातोंडकर) को चाहता था। कामिनी ने उसकी जायदाद हड़पने के लिए उसकी हत्या कर दी थी। रवि की माँ और बहन भी थीं, जिनके बारे में अब कोई नहीं जानता।
कामिनी से मोंटी नजदीकी बढ़ाता है। वह अपनी माँ और बहन का पता लगाने के साथ-साथ कामिनी से अपना बदला लेता है।
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फिल्म की कहानी बेहद सशक्त है। इसमें पुनर्जन्म, प्यार, बदला, माँ-बेटे और भाई-बहन का प्यार जैसे मसाला फिल्मों के सारे तत्व मौजूद हैं। ड्रामे की भरपूर गुंजाइश है। निर्देशक सतीश कौशिक ने इन सारे मसालों का भरपूर उपयोग किया है। उन्होंने फिल्म की गति तेज रखते हुए कई नाटकीय घटनाक्रम फिल्म में डाले हैं, जो मसाला फिल्म पसंद करने वालों को अच्छे लगेंगे।
फिल्म का प्रस्तुतीकरण आज के दौर की फिल्मों जैसा नहीं है। सतीश कौशिक ने 70 और 80 के दशक वाला ट्रीटमेंट फिल्म को दिया है। सतीश कौशिक के दिमाग में यह स्पष्ट था कि वे किन दर्शकों (आम जनता) के लिए फिल्म बना रहे हैं और वे अपने उद्देश्य में सफल रहे हैं।
फिल्म में कुछ कमियाँ भी हैं, जैसे उर्मिला की उम्र में 25 वर्ष बाद भी कोई बदलाव नहीं देखने को मिलता। उर्मिला ने रवि वर्मा की माँ और बहन को क्यों छोड़ दिया? तेज गति से भागती फिल्म मध्यांतर के बाद धीमी पड़ जाती है, लेकिन क्लाइमेक्स के समय फिर गति पकड़ लेती है। पटकथा लेखक शिराज अहमद ने घई वाली ‘कर्ज’ में थोड़े बदलाव किए हैं, लेकिन इससे कहानी पर कोई खास असर नहीं पड़ता।
अभिनेता हिमेश रेशमिया इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। उन्हें अभिनय बिलकुल नहीं आता। सतीश कौशिक ने बड़ी चतुराई से उनका उपयोग किया है, ताकि उनकी कमजोरियाँ छिप जाएँ।
नई नायिका श्वेता कुमार कहीं से भी प्रभावित नहीं कर पातीं। उनकी और हिमेश की केमेस्ट्री एकदम ठंडी है। उर्मिला मातोंडकर ने खलनायिका की भूमिका शानदार तरीके से निभाई है। गुलशन ग्रोवर और राज बब्बर की भूमिका महत्वहीन है। डैनी और असरानी ने दर्शकों को हँसाने की कोशिश की है। डीनो मोरिया और रोहिणी हट्टंगडी भी संक्षिप्त भूमिकाओं में नजर आए।
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संगीतकार हिमेश रेशमिया फिल्म की मजबूत कड़ी हैं। ‘तंदूरी नाइट्स’, ‘तेरे बिन चैन न आए’, ‘माशा अल्लाह’, ‘धूम तेरे प्यार की’ और ‘एक हसीना थी’ जैसे गाने पहले ही हिट हो चुके हैं। गानों का फिल्मांकन भव्य है, हालाँकि नृत्य में हिमेश कमजोर हैं। तकनीकी रूप से फिल्म औसत है।
यह फिल्म कुछ अलग होने का दावा नहीं करती, लेकिन मसाला फिल्म पसंद करने वालों को अच्छी लगेगी। जिन लोगों ने सुभाष घई की ‘कर्ज’ को पसंद किया है, उन्हें भी यह फिल्म देखकर निराशा नहीं होती है और जो पहली बार ‘कर्ज’ देख रहे हैं उन्हें भी यह पसंद आ सकती है।