गिप्पी की कहानी से अधिकांश लोग अपने आप को जोड़ सकते हैं क्योंकि ज्यादातर लोग पढ़ने-लिखने में, स्पोर्ट्स में, लुक में औसत होते हैं। साथ ही उम्र का एक ऐसा मोड़ भी आता है जब शरीर में अचानक बदलाव आता है। अपोजिट सेक्स के प्रति रूचि पैदा हो जाती है। कुछ ऐसे ही दौर से गुजरती है गिप्पी। जो टीन और वयस्क के बीच खड़ी है। ये उम्र का ऐसा दौर है कि जब ज्यादातर पैरेंट्स समझ नहीं पाते कि वे बच्चों से किस तरह का व्यवहार करें? कैसे उन्हें बातें समझाएं?
14 वर्ष की गिप्पी अपनी मां और भाई के साथ शिमला में रहती है। उसका लुक साधारण है। वह मोटी है। ऐसे बच्चों को स्कूल में दूसरे बच्चों से निपटना आसान नहीं होता। साथ ही गिप्पी में शारीरिक तौर पर बदलाव भी आ रहे हैं। ऐसे में गिप्पी अर्जुन नामक एक लड़के की ओर आकर्षित हो जाती है। वह दोस्ती को प्यार समझ लेती है और शमीरा की पार्टी में उसे इस लव स्टोरी के कारण शर्मिंदा भी होना पड़ता है। आखिर में गिप्पी चुनौतियां स्वीकारते हुए शमीरा के खिलाफ स्कूल इलेक्शन में लड़ने का फैसला लेती है।
एक टीन एज लड़की की समस्याओं को लेकर फिल्म बनाना नि:संदेह बेहतरीन विचार है। इसे बहुत ही जबरदस्त तरीके से पेश किया जा सकता था, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। न तो इस आइडिए का भरपूर लाभ लेखक और निर्देशक नहीं ले पाए और न ही वे इसे बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर पाए।
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निर्देशक सोनम नायर ने एक आधुनिक सोच को परदे पर ईमानदारी से पेश करने की कोशिश की है, लेकिन स्क्रिप्ट दमदार न होने के कारण उनकी कोशिश कामयाब नहीं हो पाई। इन बातों को कहानी में ठीक से पिरोया नहीं गया है।
रिया विज ने गिप्पी के रूप में कमाल की एक्टिंग की है। छोटी उम्र में उन्होंने ऐसे एक्सप्रेशन दिए है जो बड़े-बड़े कलाकार नहीं दे पाते हैं। दिव्या दत्ता बेहतरीन एक्ट्रेस हैं और एक बार फिर ये बात गिप्पी के जरिये साबित हो गई।
गिप्पी में आइडिए को ठीक से मूर्त रूप नहीं दिया जा सका है, लेकिन सोनम नायर की ईमानदार कोशिश की सराहना की जा सकती है।