‘हूज लाइफ इज इट एनीवे’ और ‘द सी इनसाइड’ से प्रेरित संजय लीला भसाली द्वारा निर्देशित फिल्म ‘गुजारिश’ एथेन मैस्केरेहास (रितिक रोशन) नामक जादूगर की कहानी है जो क्वाड्रोप्लेजिया नामक बीमारी की वजह से पिछले चौदह वर्षों से बिस्तर पर अपनी जिंदगी गुजार रहा है। बिना किसी की मदद के वह हिल-डुल भी नहीं सकता। नाक पर बैठी मक्खी भी नहीं उड़ा सकता। एक रेडियो शो होस्ट कर सुनने वालों के मन में वह जिंदगी में वह आशा और विश्वास जगाता है। जिंदगी को जिंदादिली से जीता है, लेकिन चौदह वर्ष की परेशानी के बाद अदालत से ‘इच्छा मृत्यु’ की माँग करता है।
अपनी जिंदगी से निराश एक आदमी के दर्द को संजय लीला भंसाली ने बहुत ही खूबसूरती से सेल्यूलाइड पर उतारा है। फिल्म शुरू होते ही आप एथेन की दुनिया का हिस्सा बन जाते हैं। उसके दर्द और असहाय स्थिति महसूस करने लगते हैं। उसकी हालत देख समझ में आता है कि मैदान पर फुटबॉल खेलना या अपने पैरों पर चलना कितनी बड़ी बात है। साथ ही फिल्म देखते समय इस प्रश्न का उत्तर ढूँढने की कोशिश करते हैं कि उसे इच्छा मृत्यु की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं?
मर्सी किलिंग वाली कहानी के साथ-साथ एथेन और सोफिया (ऐश्वर्या राय) की खूबसूरत-सी प्रेम कहानी भी चलती है। ऐसी मोहब्बत जो सेक्स से ऊपर है। बिना कुछ कहे सुने उनकी खामोशी ही सब कुछ बयाँ कर देती है।
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फिल्म का विषय भले ही गंभीर है, लेकिन भंसाली ने फिल्म को बोझिल नहीं बनने दिया है। वे भव्यता को हमेशा से महत्व देते आए हैं। ‘गुजारिश’ की हर फ्रेम खूबसूरत पेंटिंग की तरह नजर आती है। लाइड, शेड और कलर स्कीम का बेहतरीन नमूना देखने को मिलता है। लेकिन भंसाली की यही भव्यता कई बार कहानी पर भारी पड़ती है। मसलन एक बड़ी-सी हवेली में रहने वाला, चौदह वर्ष से बीमार, जिसके घर में कई नौकर है, आखिर खर्चा कैसे चला रहा है? जबकि फिल्म में दिखाया गया है कि उसकी आर्थिक हालत बेहद खराब है।
फिल्म में मर्सी किलिंग की बात जरूर की गई है, लेकिन यह मुद्दा फिल्म में ठीक से नहीं उठाया गया है। इसको लेकर अदालत में जो बहस दिखाई गई है, वो उतनी प्रभावशाली नहीं बन प ाई है। इन कमियों के बावजूद फिल्म बाँधकर जरूर रखती है। कई दृश्य दिल को छू जाते हैं। छत से टपकती बूँदों से अपने को बचाने की कोशिश करता एथेन, एथेन का सोफिया के साथ सेक्स करने की कल्पना करना और सोफिया द्वारा उसका उत्तर देना, 12 वर्ष बाद एथेन का घर से बाहर निकलकर दुनिया देखने वाले दृश्य और फिल्म का क्लाइमैक्स बेहतरीन बन पड़े हैं।
अभिनय इस फिल्म सशक्त पहलू है। रितिक को सिर्फ चेहरे से ही अभिनय करना था और कहा जा सकता है कि ‘गुजारिश’ उनके बेतरीन परफॉर्मेंसेस में से एक है। एक ही एक्सप्रेशन में उन्होंने खुशी और गम को एक साथ पेश किया है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ ऐश्वर्या राय खूबसूरत होती जा रही हैं। अपने कैरेक्टर में पूरी तरह डूबी नजर आईं। मोनीकंगना ने इस फिल्म से अपना करियर शुरू किया है, लेकिन उन्हें बहुत कम फुटेज मिला है। शेरनाज पटेल, आदित्य राय कपूर, सुहेल सेठ, नफीसा अली ने भी अपनी-अपनी भूमिकाओं से न्याय किया है। रजत कपूर ने ओवर एक्टिंग की है।
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पहली बार भंसाली की फिल्म का संगीत कमजोर है। गाने अच्छे लिखे गए हैं, लेकिन उनके साथ न्याय करने वाली धुनें भंसाली नहीं बना पाए। ‘उड़ी’ और ‘जिक्र है’ ही पसंद आने योग्य है। ‘उड़ी’ गाने को बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक पर बहुत मेहनत की गई है। सुदीप चटर्जी की सिनेमाटोग्राफी ने फिल्म को दर्शनीय बनाया है।
फूहड़ फिल्मों के दौर में ‘गुजारिश’ जैसी फिल्में राहत प्रदान करती हैं।