दर्शकों से गद्दारी नहीं करता ‘जॉनी गद्दार’

समय ताम्रकर
बैनर : एडलैब्स फिल्म्स लि.
निर्देशक : श्रीराम राघवन
कलाकार : नील मुकेश, धर्मेन्द्र, रिमी सेन, विनय पाठक, ज़ाकिर हुसैन, दया शेट्टी
रेटिंग : 3/5

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थ्रिलर फिल्में बनाना आसान काम नहीं है। छोटी-छोटी चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। इस तरह की फिल्में दर्शक बेहद गौर से देखते हैं और गलतियाँ ढूँढने की कोशिश करते हैं। हर समय उनके दिमाग में प्रश्न उठते रहते हैं। उन सवालों का जवाब देने में अगर निर्देशक और लेखक कामयाब हो गए तो फिल्म के भी कामयाब होने के आसार बढ़ जाते हैं।

‘जॉनी गद्दार’ इस वर्ष की अब तक प्रदर्शित थ्रिलर फिल्मों में श्रेष्ठ है। ‘एक हसीना थी’ फिल्म के जरिये अपनी शुरूआत करने वाले निर्देशक श्रीराम राघवन ने ‘जॉनी गद्दार’ को देखने लायक बनाया है।

‘जॉनी गद्दार’ उन पाँच लोगों की कहानी है, जो गैरकानूनी काम करते हैं। इन्हें एक डील मिलती है, जिसके बदले में ढाई करोड़ रुपए मिलने वाले रहते हैं। विक्रम (नील मुकेश) इस रकम को अकेला हड़पना चाहता है, ताकि वह अपनी प्रेमिका के साथ खुशहाल जिंदगी जी सके। अपनी गैंग से वह गद्दारी करता है।

वह ढाई करोड़ रुपए पाने में कामयाब हो जाता है, लेकिन जैसे-जैसे उसकी गद्दारी के बारे में गैंग के सदस्यों को पता चलता जाता है वह उनको मारता जाता है। वह एक मुसीबत से निकलता है और परिस्थितिवश दूसरी मुसीबत में फँस जाता है। पैसे पास होने के बावजूद वह खर्च नहीं कर सकता।

फिल्म की कहानी में दर्शकों से कोई बात छुपाई नहीं गई है। दर्शकों को शुरुआत से पता रहता है कि गद्दार कौन है? उसका प्लान क्या है? वह गद्दारी क्यों कर रहा है? वह अपने काम में छोटी-छोटी गलतियाँ करता हैं और उन गलतियों के जरिये उसका भेद उसके साथियों के आगे खुलता जाता है। एक अपराध छिपाने के लिए उसे दूसरा अपराध करना पड़ता है।

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फिल्म की कहानी जेम्स हैडली चेज़ के उपन्यास को आधार बनाकर लिखी गई है। फिल्म का एक बहुत बड़ा हिस्सा अमिताभ-नवीन निश्चल की फिल्म ‘परवाना’ से उठाया गया है। लेकिन निर्देशक ने ईमानदारी से अपनी प्रेरणा को दृश्यों के माध्यम से फिल्म में स्वीकारा है।

पूरी फिल्म सिंगल ट्रैक पर चलती है। कोई कॉमेडी नहीं। कोई रोमांस नहीं। कोई नाच-गाना नहीं। कोई विदेशी लोकेशन नहीं। इसके बावजूद फिल्म बोर नहीं करती और दर्शक आगे का घटनाक्रम जानने के लिए उत्सुक रहता है। फिल्म की पटकथा को बड़ी सफाई से लिखा गया है और छोटी-छोटी चीजों का ध्यान रखा गया है।

निर्देशक श्रीराम राघवन की छाप हर दृश्य में नजर आती है। उनकी कहानी कहने की शैली शानदार है। उन्होंने फिल्म को ऐसा लुक दिया है, ‍जैसा कि 80 के दशक की फिल्मों का हुआ करता था।

फिल्म के टाइटल भी उन्होंने उसी अंदाज में परदे पर प्रस्तुत किए हैं। रंगों का संयोजन और फोटोग्राफी भी उस दौर की याद दिलाती है। ये उनका ही आत्मविश्वास है कि उन्होंने फिल्म का सारा भार नए कलाकार नील मुकेश के कंधों पर डाला है।

फिल्म के हर कलाकार ने शानदार अभिनय किया है। नील मुकेश ने अपने कॅरियर की शुरूआत नकारात्मक भूमिका से की है, लेकिन उन्हें शानदार रोल मिला है। रितिक जैसे दिखने वाले नील ने पूरी फिल्म का भार बखूबी उठाया है। उनके अभिनय में आत्मविश्वास झलकता है।

हालाँकि उनके बारे में ज्यादा कहना जल्दबाजी होगी, क्योंकि रोमांटिक और भावना-प्रधान दृश्यों में उन्हें अपनी अभिनय क्षमता सिद्ध करनी है, लेकिन वे लंबी रेस के घोड़े साबित हो सकते हैं।

धर्मेन्द्र का रोल छोटा है, लेकिन उनकी उपस्थिति पूरी फिल्म में दिखाई पड़ती है। इस फिल्म के बाद उनकी डिमांड निर्माता-निर्देशक के बीच बढ़ जाएगी। विनय पाठक, ज़ाकिर हुसैन, दया शेट्टी ने अपने चरित्रों को जिया है।

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रीमी सेन ने कठिन भूमिका को कुशलतापूर्वक निभाया। अश्विनी कल्सेकर (पक्या की पत्नी) और रसिका जोशी (शिवा की माँ) का अभिनय भी शानदार है। गोविंद नामदेव जरूर ओवर एक्टिंग करते हैं।

फिल्म का तकनीकी पक्ष मजबूत है। मध्यांतर के बाद फिल्म को थोड़ा छोटा किया जा सकता था। लगातार कॉमेडी देखकर आप ऊब गए हों तो बदलाव के रूप में ‘जॉनी गद्दार’ देखी जा सकती है।

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