धोबी घाट : मुंबई अनोखी भूमिका में

समय ताम्रकर
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बैनर : आमिर खान प्रोडक्शन्स
निर्माता : आमिर खान, किरण राव
निर्देशक : किरण राव
कलाकार : प्रतीक, मोनिका डोगरा, कृति मल्होत्रा, आमिर खान
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 1 घंटा 35 मिनट * 10 रील
रेटिंग : 3/5

आमिर खान नहीं चाहते कि प्रशंसक उनकी कोई फिल्म देखने आए और निराश हो। इसलिए वे दूसरे फिल्मकारों की तरह झूठ नहीं बोलते हुए अपनी फिल्म के बारे में सच बोलना पसंद करते हैं।

‘धोबी घाट’ के रिलीज होने के पहले ही उन्होंने कह दिया था कि यह मेनस्ट्रीम सिनेमा नहीं है। इसमें वो लटके-झटके नहीं हैं जो आम मसाला फिल्मों में होते हैं। यह एक प्रयोगत्मक और वास्तविकता के निकट की फिल्म है, जिसका ट्रीटमेंट एक आर्ट फिल्म की तरह है।

‘धोबी घाट’ की कहानी चार किरदारों के इर्दगिर्द घूमती है, जो अलग-अलग पृष्ठभूमि से मुंबई आए हुए हैं। चारों की अलग-अलग कहानी है जो एक-दूसरे से कहीं ना कहीं जुड़ी हुई है।

अरुण (आमिर खान) एक पेंटर है, जो कम बोलना और अकेले रहना पसंद करता है। उसे किसी भी किस्म की रिलेशनशिप पसंद नहीं है। उत्तर प्रदेश से ब्याह कर मुंबई आई यास्मिन (कृति मल्होत्रा) पति की बेरुखी से परेशान है। वह एक वीडियो कैमरे के जरिये मुंबई को शूट कर मन बहलाती है और अपने दिल की बातें कैमरे को बताती है।

शाई (मोनिका डोगरा) शौकिया रूप से कैमरे की आँख से मुंबई दर्शन करती है। इसमें उसका साथ देता है बिहार से आया मुन्ना (प्रतीक) जो धोबी है, लेकिन फिल्मों में हीरो बनना उसका सपना है।

इनके अलावा अनोखी भूमिका में मुंबई है, जो चुपचाप इन किरदारों की गतिविधियों को देखता रहता है। उनकी उत्कंठा, अकेलापन, अनुभव और प्यार के जरिये इस शहर का फ्लेवर दिखाया गया है।

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किरण राव ने एक निर्देशक के रूप में अच्छी शुरुआत की है। उनकी फिल्म और किरदार रियल लाइफ के बेहद करीब हैं। उनका दु:ख, दर्द, हँसी, खुशी आम लोगों जैसी लगती है। फिल्म में उत्सुकता इसलिए बनी रहती है कि कहानी अगले मोड़ पर क्या करवट लेगी यह पता लगाना मुश्किल है।

कहानी कहने के लिए उन्होंने जटिल तरीका अपनाया है जिसकी वजह से एक आम दर्शक को फिल्म समझने में कठिनाई हो सकती है। किरण ने दर्शक की समझदारी पर भी काफी कुछ छोड़ा है और प्रस्तुतिकरण ऐसा रखा है कि दर्शक भी सक्रिय होकर फिल्म देखें।

उदाहरण के लिए फिल्म की शुरुआत में मुन्ना हाथ में टॉर्च और लाठी लिए निकलता है और उसका दोस्त कहता है अपने गंदे काम के लिए जा। उस वक्त यह सीन निरर्थक जान पड़ता है। फिल्म के आखिर में दिखाया गया है कि मुन्ना रात को चूहे मारता है तब पता चलता है कि वह गंदा काम क्या था।

फिल्म में अधिकांश अपरिचित या नए चेहरे हैं, जो कि इस कहानी को परफेक्ट सूट करते हैं। मोनिका डोगरा ने शाई के किरदार को बखूबी निभाया है। अरुण और मुन्ना के बीच में फँसी शाई की उलझन को चेहरे के जरिये उन्होंने बयाँ किया है।

प्रतीक ने एक कम पढ़े-लिखे लड़के की भूमिका को बखूबी निभाया है। उनकी डॉयलॉग डिलेवरी और हावभाव देखने लायक हैं। कुछ दृश्यों में उनका अभिनय कमाल का है। यास्मिन बनी कृति मल्होत्रा भी प्रभावित करती हैं।

आमिर खान के अभिनय में कोई खोट नहीं है, लेकिन उनकी जगह नया चेहरा होना चाहिए था, क्योंकि उनकी सुपरस्टार की छवि लगातार परेशान करती रहती है।

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तुषार कांति रे की सिनेमॉटोग्राफी उल्लेखनीय है। मुंबई की वास्तविक लोकेशन्स को उम्दा कोणों से उन्होंने गजब का शूट किया। मुंबई की सँकरी गलियाँ, समुद्र, धोबी घाट, पुराने मकान और बाजार, ब्लैक एंड व्हाइट फोटोग्राफ्स, वीडियो डायरी और पेंटिंग के जरिये देखने को मिलती है। यास्मिन की वीडियोग्राफी की अपरिपक्वता को भी उन्होंने बेहतरीन तरीके से पेश किया है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक ‍कहानी के मूड के अनुरूप है।

कुल मिलाकर ‘धोबी घाट’ उन लोगों के लिए है जो धैर्य के साथ कला फिल्म का आनंद उठाना पसंद करते हैं।

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