बिट्टू बॉस : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
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बैनर : वाइड फ्रेम पिक्चर्स, वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स
निर्माता : कुमार मंगत पाठक
निर्देशक : सुपवित्र बाबुल
संगीत : राघव साचर
कलाकार : पुलकित सम्राट, अमिता पाठक
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 10 मिनट
रेटिंग : 2/5

बिट्टू बॉस की कहानी पर अच्छी फिल्म बनने की संभावनाएं थीं, लेकिन स्क्रीनप्ले की कमियों ने इन संभावनाओं को खत्म कर दिया। कहानी को जिस तरह से आगे बढ़ाया गया है वो विश्वसनीय नहीं है और किसी तरह फिल्म को खत्म किया गया है।

पंजाब के छोटे शहर में रहने वाला बिट्टू (पुलकित सम्राट) अपने शहर का स्टार है। शादियों में ‍वीडियो शूटिंग करता है। लोकप्रिय इतना है कि जब तक वह न पहुंचे रस्म अदायगी रोक दी जाती है। एक शादी में मृणालिनी (अमिता पाठक) नामक लड़की पर बिट्टू मर मिटता है। धीरे-धीरे वह मृणालिनी के दिल में अपनी जगह बना लेता है।

मृणालिनी चाहती है कि लोग बिट्टू को ‘टुच्चा वीडियोग्राफर’ ना कहे। वो कुछ बड़ा काम करें, जिससे उसे प्रतिष्ठा और पैसा हासिल हो। इसको लेकर उसका मृणालिनी से जोरदार झगड़ा होता है और तुरं त ढे र सार ा पैस ा कमान े क े लि ए अपने एडिटर वर्मा (राजिंदर सेठी) के कहने पर वह ब्लू फिल्म बनाने के लिए शिमला पहुंच जाता है।

शिमला के एक होटल में रूककर वह दूसरे कमरों में हिडन कैमरे लगा देता है ताकि कमरे में उन्हें वाली गतिविधियों को रिकॉर्ड कर मार्केट में बेचे और खूब पैसा कमाए। बिट्टू दिल का बहुत अच्छा है और उससे यह काम नहीं होता। उल्टे वह कैमरे से नजर रख एक लड़की की रक्षा करता है। पति-पत्नी के बीच प्यार पैदा करता है। किस तरह से मृणालिनी का वह दिल जीतता है, यह फिल्म के क्लाइमैक्स में दिखाया गया है।

बिट्टू बॉस टुकड़ों-टुकड़ों में अच्छी फिल्म है। फिल्म का वो हिस्सा जिसमें बिट्टू के कैरेक्टर के जरिये दर्शकों को परिचित कराया जाता है मनोरंजक है। मृणालिनी के दिल को जीतने की बिट्टू की कोशिश वाला हिस्सा औसत है। मृणालिनी अचानक क्यों बिट्टू को दिल दे बैठती है, इसके लिए कोई ठोस कारण लेखक नहीं दे पाए हैं।

शिमला में बिट्टू और उसके असिस्टेंट के बीच कुछ सीन मजेदार हैं। लेकिन बिट्टू का हिडन कैमरों से फिल्म बनाने की बात हजम नहीं होती। साथ ही जिन दो प्रसंगों के जरिये यह दिखाने की कोशिश की गई है कि बिट्टू एक अच्छा इंसान है और अपने प्रेमिका को पाने के लिए किसी भी तरह का समझौता नहीं कर सकता है वो बेहद बचकाने हैं। ये प्रसंग लंबे खींचे गए हैं जिससे फिल्म की गति धीमी होकर बोरियत हावी हो जाती है।

बिट्टू से नाराज मृणालिनी उससे मिलने शिमला क्यों पहुंचती है, इसका भी कोई जवाब नहीं मिलता है क्लाइमेक्स बेदम है और और किसी तरह फिल्म का अंत किया गया है।

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सुपवित्र बाबुल का निर्देशन ठीक-ठाक है। उनमें संभावनाएं हैं, लेकिन उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना होगा। कहानी को परदे पर कहने की कला को और निखारना होगा। उन्होंने अपने कलाकारों से अच्छा काम लिया है और कुछ इमोशनल सीन अच्छे फिल्माए हैं।

पुलकित सम्राट ने अपना काम पूरी गंभीरता से किया है और उनमें आत्मविश्वास नजर आता है। अमिता पाठक को फिल्म में इसलिए मौका मिल गया क्योंकि वे निर्माता की बेटी हैं। फिल्म के दूसरे हिस्से में वे लंबे समय तक गायब रहीं।

कुल मिलाकर ‘बिट्टू बॉस’ एक औसत फिल्म है।

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