मसखरों का ‘धमाल’

समय ताम्रकर
निर्माता : इंद्र कुमार-अशोक ठाकरिया
निर्देशक : इंद्र कुमार
संगीत : अदनान सामी
कलाकार : संजय दत्त, रितेश देशमुख, अरशद वारसी, जावेद जाफरी, आशीष चौधरी
रेटिंग : 2.5/5

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इंद्र कुमार कभी भी महान फिल्म बनाने का दावा नहीं करते। उन्हें अपनी सीमाओं का अच्छी तरह से ज्ञान है और वे उसी सीमा में रहकर बेहतर करने की कोशिश करते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य है कि सिनेमाघर में रुपए खर्च कर आए हुए दर्शक का पूरा पैसा वसूल हों।

उनके द्वारा रचा गया हास्य बहुत महान नहीं होता। हास्य फिल्म बनाने के लिए वे अकसर छोटे-छोटे चुटकुलों को श्रृंखलाबद्ध रूप में पेश करते हैं। सुनो, हँसो और भूल जाओ।

‘धमाल’ की वही कहानी है जो दो माह पूर्व प्रदर्शित फिल्म ‘जर्नी बॉम्बे टू गोवा’ की थी। लगता है कि दोनों फिल्मों के लेखक ने एक ही जगह से प्रेरणा ली है। वहीं मसखरों की फौज, खजाने को पाने की होड़ और बॉम्बे से गोवा की जर्नी, लेकिन ‘धमाल’ उस फिल्म के मुकाबले बेहतर हैं।

मानव (जावेद जाफरी), आदित्य (अरशद वारसी), रॉय (रितेश देशमुख) और बोमन (आशीष चौधरी) चार दोस्त हैं। कोई महाबेवकूफ है तो कोई जरूरत से ज्यादा होशियार। एक दिन बोस (प्रेम चोपड़ा) उन्हें मरने के पहले एक खजाने के बारे में बता देता है।

बोस के पीछे इंस्पेक्टर कबीर (संजय दत्त) पड़ा रहता है। बोस की मौत का जिम्मेदार वह इन चारों को मानता है। जब उसे खजाने का पता चलता है तो वह भी उस खजाने को पाने की होड़ में शामिल हो जाता है। सब आपस में लड़ पड़ते हैं और अकेले ही खजाने की तलाश में निकल पड़ते हैं। इस भागमभाग को हास्य दृश्यों के माध्यम से दिखाया गया है।

शुरूआत के पन्द्रह मिनट फिल्म बोर करती है, लेकिन जब चारों को खजाने के बारे में पता चलता है उसके बाद फिल्म देखने में रूचि पैदा होती है। फिल्म चुटकुले-दर-चुटकुले आगे बढ़ती है। जरूरी नहीं है कि हर चुटकुले का एक ही स्तर हो। कुछ हँसाते हैं, तो कुछ बोर करते हैं।

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इंद्र कुमार की नजर में आम भारतीय दर्शक की औसत बुद्धि 10 से 14 वर्ष की है और उसी के हिसाब से अपने दृश्य गढ़ते हैं, लेकिन उन्हें यह मान लेना चाहिए कि दर्शक अब समझदार हो गया है। दिल, बेटा, राजा के समय की बात कुछ और थी।

फिल्म की खास बात यह है कि इसमें दिखाया गया हास्य अश्लीलता और फूहड़ता से कोसों दूर है। बच्चों को इस फिल्म में आनंद मिल सकता है।

अभिनय के मामले में जावेद जाफरी, आशीष चौधरी, रितेश देशमुख और अरशद हँसाने में कामयाब रहे। अरशद और रितेश के चरित्र को और अच्छी तरह से उभारा जा सकता था, क्योंकि दोनों अच्छे अभिनेता हैं। संजय दत्त के बारे में भी यही कहा जा सकता है। बड़े दिनों बाद असरानी ने अच्छा काम किया है। फिल्म में कोई नायिका नहीं है और कमी भी महसूस नहीं होती है।

फिल्म में दो गाने हैं। एक गीत फिल्म के आरंभ में आता है और दूसरा समापन पर। इंद्र कुमार का शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए कि उन्होंने बेवजह गानों को नहीं ठूँसा। तकनीकी स्तर पर फिल्म थोड़ी कमजोर है। फोटोग्राफी खास नहीं है और संपादन में कसावट की जरूरत थी। संवादों का भी स्तर घटता-बढ़ता रहता है।

कुल मिलाकर ‘धमाल’ टाइमपास करने के लिए अच्छी है। दिमाग मत लगाओ, पॉपकार्न खाओ, फिल्म देखो और भूल जाओ।

‘धमाल’ में मैंने हँसाने की कोशिश की है : इंद्र कुमार
धमाल : मौज-मस्ती की कहानी
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