मूवी रिव्यू : वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा

समय ताम्रकर
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वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा में कहानी को वही से आगे बढ़ाया गया है जहां पर पिछली फिल्म खत्म हुई थी। इमरान हाशमी की जगह अक्षय कुमार ने ले ली। पिछले भाग में हकीकत और फसाना का अनुपात लगभग बराबर था। हाजी मस्तान से प्रेरित किरदार सुल्तान का पूरा चित्रण था तो दाउद से प्रेरित किरदार शोएब का उदय फिल्म में दिखाया गया था। फिल्म में खूब उतार-चढ़ाव थे और गैंगस्टर की दुनिया को मनोरंजक तरीके से पेश किया गया था।

इस बार किरदार तो वास्तविक जीवन से प्रेरित है, लेकिन कहानी में हकीकत कम और कल्पना का प्रतिशत बहुत बढ़ गया है। कहानी इतनी दमदार नहीं है कि बांध कर रखे सके। ऐसा लगता है कि पिछली फिल्म को मिली कामयाबी का फायदा उठाने के लिए सीक्वल बना दिया गया है।

शोएब (अक्षय कुमार) अपने दुश्मन रावल (महेश मांजरेकर) को सबक सिखाने के लिए विदेश से मुंबई आता है। पूरा मुंबई उसके कब्जे में है जहां उसके काले कामों का साम्राज्य चलता है। शोएब का असलम (इमरान खान) बहुत एहसान मानता है क्योंकि जब वह छोटा था तब शोएब ने उस पर हाथ रखा और उसकी जिंदगी को बेहतर बनाया। जस्मीन (सोनाक्षी सिन्हा) कश्मीर से मुंबई हीरोइन बनने आई है। शोएब और असलम दोनों जस्मिन पर मर मिटते हैं। वफादारी, दोस्ती, एहसान जैसी बातें उठती हैं। आखिर में जस्मिन किसे मिलती है, ये फिल्म का सार है।

फिल्म की सबसे बडी समस्या यह है कि दर्शक इस आशा के साथ यह फिल्म देखने आता है कि उसे गैंगस्टर की जिंदगी में झांकने का मौका मिलेगा। एक्शन होगा। काले कारनामे होंगे, लेकिन निकलती है लव स्टोरी। चलिए, मान लेते हैं कि गैंगस्टर भी प्रेम करते हैं, लेकिन यह प्रेम कहानी बिलकुल अपील नहीं करती, जबकि पूरी फिल्म प्रेम त्रिकोण के आसपास घूमती है।

इस प्रेम कहानी को खूब खींचा गया है। एक सीन सोनाक्षी-इमरान का तो दूसरा सोनाक्षी-अक्षय कुमार का। यही क्रम चलता रहता है। अक्षय और सोनाक्षी के दृश्य तो झेले जा सकते हैं, लेकिन सोनाक्षी-इमरान वाले दृश्य बोरिंग है। लंबे समय तक कहानी आगे ही नहीं बढ़ती है। सोनाक्षी के मन की बात कि वह किसे चाहती है और किसे नहीं, को काफी देर बाद दिखाया गया है। फिल्म जब खत्म होने के नजदीक पहुंचती है तो अचानक वह फैसला ले लेती है कि यह मेरा दोस्त है और यह प्रेमी। कुल मिलाकर सोनाक्षी का किरदार बेहद कन्फ्यूजिंग है।

शोएब के किरदार को बहुत बड़ा दिखाया गया है। लार्जर देन लाइफ। वह बहुत खतरनाक है। जबरदस्त तरीके से उसकी एंट्री होती है। अंतरराष्ट्रीय मैच में उसके इशारे से टॉस और मैच का परिणाम निकलता है। जिस लड़की पर उसकी नजर होती है अगले पल वह उसके साथ बिस्तर पर होती है। लेकिन अपनी गैंग के एक मामूली सदस्य असलम से उसका टकराव जमता नहीं है क्योंकि असलम के किरदार को उस तरह से लिखा नहीं गया है कि वह एक खतरनाक गैंगस्टर से टक्कर लेने वाला लगे।

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रावल वाला ट्रेक कमजोर है। जिस दुश्मन को मारने के लिए शोएब मुंबई आता है, उसे ताकतवर दिखाना जरूरी था, उसे ज्यादा फुटेज मिलना थे, लेकिन प्रेम-त्रिकोण को ज्यादा महत्व देने के चक्कर में रावल वाला किस्सा बेहद मामूली बन जाता है।

फिल्म समीक्षा का शेष भाग और रेटिंग अगले पेज पर...


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मिलन लथुरिया ने सत्तर और अस्सी का दशक पिछली फिल्म में अच्छे तरीके से पेश किया था, यहां भी किया है, लेकिन यही काफी नहीं है। उन्होंने सिंगल-स्क्रीन दर्शक को ध्यान में रखकर सीन गढ़े हैं, लेकिन इनके लिए ठीक से जगह नहीं बन पाई है। फिल्म के कलाकारों की हीरोगिरी दिखाने के लिए कुछ दृश्य रखे गए हैं, जिनका मूल कहानी से सही तालमेल नहीं बनता है। फिल्म का अंत और बेहतर किया जा सकता था। जिस दर्शक वर्ग के लिए यह फिल्म बनाई गई है, उसे यह अंत उतना अच्छा नहीं लगे।

फिल्म में खूब डायलॉगबाजी है। ऐसा लगता है कि डायलॉग पहले सोच लिए गए और फिर उनके मुताबिक दृश्य लिखे गए हैं। फिल्म का बैकग्राउंड म्युजिक और कैमरावर्क उम्दा है। प्रीतम द्वारा बनाए गए एक-दो गीत अच्छे कहे जा सकते हैं।

अक्षय कुमार ने शोएब के किरदार को एक खास किस्म के मैनेरिज्म और स्टाइलिश तरीके से पेश किया है। खास बात यह है कि पूरी फिल्म में उन्होंने इस स्टाइल को पकड़ कर रखा है। फिल्म का ट्रेलर देख कर ही समझ आ गया था कि इमरान खान इस फिल्म के लिए गलत कास्टिंग है। पूरी फिल्म में वे दबे-दबे से दिखे। उनका चेहरा भावहीन रहा। वे अपने कैरेक्टर को ठीक से उभार नहीं पाए। कही भी वे अक्षय से टक्कर लेने लायक नहीं दिखे। सोनाक्षी सिन्हा का किरदार ठीक से नहीं लिखा गया है और इसका असर उनकी एक्टिंग पर भी नजर आता है। सोनाली बेन्द्रे और महेश मांजरेकर के रोल छोटे हैं। दो सेकंड के लिए विद्या बालन भी नजर आती हैं आखिर एकता कपूर के लिए लकी जो हैं।

कुल मिलाकर वंस अपॉन ए टाइम इन दोबारा पिछली फिल्म को मिली कामयाबी को भुनाने का प्रयास भर है।

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बैनर : बालाजी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : एकता कपूर, शोभा कपूर
निर्देशक : मिलन लुथरिया
संगीत : प्रीतम
कलाकार : अक्षय कुमार, सोनाक्षी सिन्हा, इमरान खान, सोनाली बेन्द्रे, सोफी चौधरी, महेश मांजरेकर
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 40 मिनट
रेटिंग : 2/5
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