राज : द मिस्ट्री कन्टीन्यूज़

समय ताम्रकर
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बैनर : विशेष फिल्म्स, सोनी बीएमजी
निर्माता : मुकेश भट्ट
निर्देशक : मोहित सूरी
संगीत : तोषी, शरीब साबरी, राजू सिंह, गौरव दासगुप्ता
कलाकार : इमरान हाशमी, अध्ययन सुमन, कंगना
रेटिंग : 2/5

‘राज : द मिस्ट्री कन्टीन्यूज़’ का पिछली फिल्म ‘राज’ से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल ‘राज’ को एक ब्रांड नेम बना दिया गया है और हो सकता है कि विशेष फिल्म्स इसी नाम से एक और फिल्म बनाए। ये बात निर्माता मुकेश भट्ट ने स्पष्ट कर दी है और दर्शकों को किसी तरह से अँधेरे में नहीं रखा है।

रहस्य, रोमांच और हॉरर फिल्म बनाना भट्ट ब्रदर्स की खासियत है और कई बार उन्होंने दर्शकों को डराकर पैसे कमाए हैं, लेकिन ‘राज 2’ एक कमजोर फिल्म है क्योंकि जब राज खुलता है तो दर्शक ठगा-सा महसूस करता है।

कहानी है पृथ्वी (इमरान हाशमी) नामक चित्रकार की, जो भविष्य में होने वाली घटनाओं को कैनवास पर चित्र के रूप में बना देता है। नंदिनी (कंगना) और यश (अध्ययन सुमन) एक-दूसरे को चाहते हैं और जल्दी ही शादी करने वाले हैं। नंदिनी से पृथ्वी कभी मिला नहीं है, लेकिन वो उसके चित्र बनाता है।

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एक दिन उसे नंदिनी दिखाई देती है तो वह उसे अपनी पेंटिंग्स दिखाता है। पेंटिंग्स को देख लगता है कि नंदिनी पर बड़ा खतरा आने वाला है। पहले तो नंदिनी उसकी बात नहीं मानती, लेकिन जब उसके साथ कुछ घटनाएँ घटती हैं तो वह उस पर विश्वास करने लगती है। एक दिन पृथ्वी नंदिता की ऐसी पेंटिंग बनाता है, जो उसके मौत होने का आभास देती है। नंदिता इस राज का पता लगाना चाहती है। यश को इस तरह की बातों में विश्वास नहीं है। वह नंदिता की मदद नहीं करता, लेकिन पृथ्‍वी नंदिता का साथ देता है। इसके बाद क्या होता है, ये ‘राज’ है।

फिल्म की शुरुआत को देख लगता है कि कुछ हटकर देखने को मिलेगा, लेकिन धीरे-धीरे यह आम हॉरर फिल्मों की तरह हो जाती है। कुछ दृश्य ऐसे हैं, जिन्हें देख दर्शक चौंकता या डरता है, वहीं ज्यादातर दृश्य ऐसे हैं जो हर हॉरर फिल्मों में पाए जाते हैं। कंगना के आईने के सामने खड़े होने वाला दृश्य, पार्टी से निकलकर सड़कों पर भागने वाला दृश्य, बाथ टब वाला दृश्य अच्छे बन पड़े हैं।

मोहित सूरी ने कहानी लिखने के साथ-साथ निर्देशन भी किया है, लेकिन दोनों में वे कमजोर साबित हुए हैं। वे विश्वास और अंधविश्वास की बात करते हैं, लेकिन अंत में अंधविश्वास भारी पड़ जाता है। जिस राज को उन्होंने छिपाकर रखा और दर्शकों की उत्सुकता बढ़ाई, अंत में राज खुलता है तो मामला टाँय-टाँय फिस्स नजर आता है। फिल्म का अंत बेहद खराब है और ठीक से लिखा नहीं गया है। इमरान हाशमी का भविष्य देखने वाले विचार का ठीक से उपयोग नहीं किया गया।

निर्देशक के रूप में भी मोहित प्रभावित नहीं कर पाए। वे कहानी को स्क्रीन पर ठीक तरह से पेश नहीं कर पाए। पहले तो उन्होंने दर्शकों को खूब डराने में कई रील खर्च कर डाली। दर्शक डर-डरकर बोर हो गए, लेकिन उन्होंने ‘राज’ नहीं खोला। और जब बारी रहस्य पर से परदा उठाने की आई तो उनके पास कम समय बचा। फिल्म का अंत ताबड़तोड़ तरीके से निपटाया गया। कई सवाल अनसुलझे रह गए।

इमरान हाशमी ने अपना किरदार अच्छी तरह से निभाया है। उनके प्रशंसक जरूर निराश हो सकते हैं क्योंकि उन्होंने फिल्म में रोमांस नहीं किया है। कंगना ने एक बार फिर अच्छा अभिनय किया है। चेहरे के जरिये वे भावों को अच्‍छी तरह से व्यक्त करती हैं। अध्ययन सुमन का अभिनय कुछ दृश्यों में अच्छा था तो कुछ में खराब। उत्साह में आकर वे ओवर एक्टिंग करने लगते हैं। उनकी हेअर स्टाइल चेंज करने की भी जरूरत है। जैकी श्रॉफ भी छोटे रोल में दिखाई दिए।

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इमरान की फिल्मों का संगीत हमेशा हिट रहता है और राज भी इसका अपवाद नहीं है। ‘सोनिया’ और ‘माही’ पहले ही लोकप्रिय हो चुके हैं। रवि वालिया की सिनेमाटोग्राफी उम्दा है और कैमरे के जरिये उन्होंने दर्शकों को डराया है। फिल्म को संपादित किए जाने की सख्त जरूरत है क्योंकि इसकी लंबाई अखरती है।

कुल मिलाकर राज टुकड़ों-टुकड़ों में डराती है, अच्छी लगती है, लेकिन पूरी फिल्म के रूप में निराश करती है।
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