लव आज कल : प्यार के प्रति नजरिया

समय ताम्रकर
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निर्माता : सैफ अली खान, दिनेश विजान
निर्देशक : इम्तियाज़ अली
गीतकार : इरशाद कामिल
संगीतकार : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : सैफ अली खान, दीपिका पादुकोण, ऋषि कपूर, राहुल खन्ना, नीतू सिंह
रेटिंग : 2.5/5

‘सोचा न था’ और ‘जब वी मेट’ फिल्म बनाने के बाद इम्तियाज अली की पहचान ऐसे निर्देशक के रूप में बन गई है, जो प्रेम कथा पर आधारित फिल्म बनाने में माहिर हैं। इन दोनों फिल्मों की कहानी में नयापन नहीं था, लेकिन जो बात इन्हें विशेष बनाती है वो है इम्तियाज का प्रस्तुतिकरण। इस वजह से दर्शकों का ‘लव आज कल’ से ज्यादा उम्मीद करना स्वाभाविक है और यही उम्मीद ‘लव आज कल’ पर भारी पड़ती है। फिल्म देखने के बाद ऐसा लगता है कि जो आशाएँ लेकर आए थे वो पूरी नहीं हो पाईं।

लड़का-लड़की के बीच प्यार सदियों से चला आ रहा है। पहले कबूतरों से संदेश भेजे जाते थे। ‘आय लव यू’ कहने में वर्षों बीत जाते थे। अब ई-मेल या एसएमएस से बातचीत होती है। वर्तमान पीढ़ी सेक्स को ही प्यार समझ बैठी है और तू नहीं और सही वाक्य पर विश्वास करती है। प्रेमी के इंतजार में वे उम्र तो क्या कुछ घंटे नहीं बिता सकते। इन दो पीढि़यों के प्यार के प्रति नजरिये को ‘लव आज कल’ में रेखांकित किया गया है।

फिल्म में दो कहानियाँ समानांतर चलती हैं। जय (सैफ अली खान) और मीरा (दीपिका पादुकोण) 2009 के युवा हैं। वे बेहद व्यावहारिक हैं। साथ घूमना, मौज-मस्ती करना उन्हें पसंद है और शादी पर उनका विश्वास नहीं है। काम की खातिर जब मीरा लंदन छोड़कर दिल्ली जाती है तो वे अपने रिश्ते को तोड़ने में देर नहीं लगाते। उनका मानना है कि उनके शहरों की दूरी बहुत ज्यादा है, इसलिए ब्रेकअप जरूरी है। वे ब्रेकअप को सेलिब्रेट भी करते हैं।

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एक कहानी 1965 की है। वीरसिंह (सैफ अली खान/ऋषि कपूर) हरलीन को बेहद चाहता है। दोनों को प्रेम के इजहार में समय लगता है। हरलीन की सगाई हो जाती है, लेकिन वीरसिंह हिम्मत नहीं हारता और उसे भगाकर ले जाता है।

इन दोनों कहानियों को वर्तमान में मिलाया गया है। युवा ‍वीरसिंह (सैफ अली) अब बूढ़ा (ऋषि कपूर) हो गया है और वह जय को प्रेम के अर्थ बताता है। जय और मीरा अलग होने के बाद एक-दूसरे की कमी महसूस करते हैं और उन्हें समझ में आता है कि यही प्यार है।

दोनों कहानियों में कोई नई बात नहीं है। ‘लव कल’ में वीर और हरलीन के प्रेम में तीव्रता नजर नहीं आती और उनकी प्रेम कहानी सतही लगती है। जबकि इस कहानी में प्रेम की भावनाओं को दिखाने का पर्याप्त अवसर था।

‘लव आज’ के किरदारों को ज्यादा ही आधुनिक दिखाने की कोशिश की गई है, जिससे वे बनावटी लगते हैं। उनकी कहानी भी ‘हम तुम’ जैसी फिल्मों में आ चुकी है। ये किरदार फिल्म की शुरुआत में व्यावहारिक इनसान की तरह व्यवहार करते हैं, तब तक फिल्म भी अच्‍छी लगती है। लेकिन फिल्म के अंत में कुछ ज्यादा ही भावुक हो जाते हैं और यहीं पर फिल्म मार खा जाती है। साथ ही प्यार को लेकर दोनों बहुत ज्यादा कन्फ्यूज नजर आते हैं। राहुल खन्ना से शादी के बाद अचानक अगले ही दिन दीपिका को महसूस होता है कि वे सैफ को प्यार करती हैं। अचानक उनमें आए बदलाव का कोई कारण नजर नहीं आता क्योंकि राहुल से वे शादी अपनी मर्जी से करती हैं। सैफ अली का लुटेरों को दीपिका का फोटो नहीं देने वाला दृश्य तो एकदम फिल्मी है।

लेखन की तुलना में इम्तियाज का निर्देशन अच्छा है। दोनों कहानी को बड़ी सफाई से उन्होंने गूँथा है और इसके लिए फिल्म की एडिटर आरती बजाज भी प्रशंसा के काबिल हैं। दर्शक को अलर्ट रहना पड़ता है कि फिल्म में कब कौनसी कहानी दिखाई जा रही है। हालाँकि पुरानी कहानी को सीपिया में दिखाया गया है। युवा वीर के रूप में सैफ और बूढ़े वीर के किरदार में उन्होंने ऋषि कपूर को लेकर अच्छा प्रयोग किया है।

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जय का किरदार निभाने के लिए सैफ की उम्र ज्यादा है, लेकिन वे इस बात को महसूस नहीं होने देते हैं। सैफ ने सलाम नमस्ते, हम तुम वाली अभिनय की शैली यहाँ भी दोहराई है। वीर के रूप में सैफ निराश करते हैं। पंजाबी लहजे में हिंदी बोलते समय वे असहज लगे। दीपिका पादुकोण खूबसूरत हैं, लेकिन अभिनय के मामले में कमजोर साबित हुईं। ऋषि कपूर अब इस तरह की भूमिकाओं में टाइप्ड होते जा रहे हैं। राहुल खन्ना, हरलीन बनी लड़की को ज्यादा अवसर नहीं मिले।

प्रीतम का संगीत उम्दा है। ‘चोर बाज़ारी’, ‘आहूँ आहूँ’, ‘दूरियाँ’, ‍’ट्विस्ट’ सुनने लायक हैं। फिल्म के संवाद बेहतरीन हैं। तकनीकी रूप से फिल्म सशक्त है।

कुल मिलाकर ‘लव आज कल’ एक औसत और टाइमपास फिल्म है।

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