वेक अप सिड, सारे पल कहें

समय ताम्रकर
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बैनर : यूटीवी मोशन पिक्चर्स, धर्मा प्रोडक्शन्स
निर्माता : करण जौहर, हीरू जौहर
निर्देशक : अयान मुखर्जी
गीत : जावेद अख्तर
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय, अमित त्रिवेदी
कलाकार : रणबीर कपूर, कोंकणा सेन शर्मा, अनुपम खेर, शिखा तलसानिया, नमिता दास, सुप्रिया पाठक, कश्मीरा शाह, राहुल खन्ना (विशेष भूमिका)
यू/ए सर्टिफिकेट * 15 रील * 2 घंटे 15 मिनट
रेटिंग : 3/5

‘वेक अप सिड’ में जिंदगी के उस हिस्से को दिखाया गया है, जिससे ज्यादातर लोग गुजरते हैं। पढ़ाई खत्म होने के बाद कइयों के सामने कोई लक्ष्य नहीं होता। उनका हर दिन बिना किसी खास योजना के गुजरता है। इसका भी एक खास मजा है कि अगले क्षण हम क्या करेंगे, यह हमें भी पता नहीं होता।

कॉलेज के अंतिम वर्ष में सिड (रणबीर कपूर) फेल हो गया है और जिंदगी में उसका कोई गोल नहीं है। होंडा सीआरवी में लांग ड्राइव, सुबह तक चलने वाली पार्टियाँ, इंटरनेट और वीडियो गेम्स के सहारे सिड की जिंदगी गुजरती है। पैसों का अभाव उसने देखा ही नहीं है। क्रेडिट कार्ड से वह खर्च करता है और डैड पैसे चुकाते हैं।

सिड के डैड चाहते हैं कि वह उनका व्यसाय में हाथ बँटाए, लेकिन सिड की रूचि नहीं है। इसको लेकर सिड और उसके पिता में विवाद होता है और सिड अपनी दोस्त आयशा बैनर्जी (कोंकणा सेन शर्मा) के पास रहने चला जाता है।

आयशा की सोच सिड से बिलकुल अलग है। उसके कुछ लक्ष्य हैं, जिन्हें पाने के लिए वह कोलकाता से मुंबई आई है। उम्र में सिड से थोड़ी बड़ी आयशा, सिड को बच्चा मानती है और उसे परिपक्व इंसान की तलाश है। पुराने गाने की वह शौकीन है और महान लेखकों की पुस्तक पढ़ती है। जिंदगी के प्रति विपरीत नजरिया रखने वाले जब दो इंसान साथ रहते हैं तो एक-दूसरे के गुण-अवगुण वे अपना लेते हैं।

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बिगड़ैल सिड व्यवस्थित रहना, अंडा बनाना और कपड़े धोना सीख लेता है। यही नहीं वह उसी मैग्जीन में नौकरी हासिल कर लेता है, जहाँ आयशा काम करती है। इधर आयशा को भी महसूस होता है कि व्यक्ति में थोड़ा बचपना भी रहना चाहिए बजाय हमेशा गंभीरता और परिपक्वता का आवरण ओढ़े रहने के। अलग होने के बाद उन्हें महसूस होता है कि वे एक-दूसरे की कमी महसूस कर रहे हैं और यही प्यार है।

सिड और आयशा के रिश्ते और जिंदगी के प्रति नजरिये को फिल्म बखूबी उभारती है, लेकिन उनकी पृष्ठभूमि में चल रहे घटनाक्रमों पर ध्यान नहीं दिया गया, जिससे फिल्म का समग्र प्रभाव कम हो जाता है।

कोलकाता से लेखक बनने आई आयशा ‘मुंबई बीट’ के संपादक की असिस्टेंट बनना क्यों मंजूर कर लेती है, जिसका काम उसे कॉफी पिलाना, टाइम टेबल बनाना और टेबल साफ करना है। वह दूसरी जगह भी काम कर सकती थी।

नौकरी मिलने के पहले ही वह फ्लैट किराए से ले लेती है और साज-सज्जा पर खूब पैसा खर्च करती है। आखिर कहाँ से आया इतना पैसा? जबकि वह सिड जैसे अमीर परिवार से नहीं है। बिगड़ैल सिड को सुधारने में भी जल्दबाजी की गई है।

‘दिल चाहता है’ और ‘लक्ष्य’ से प्रभावित 26 वर्षीय अयान मुखर्जी ने युवाओं को ध्यान में रखकर यह फिल्म निर्देशित की है, लेकिन वे भूल गए कि युवा तेज गति की फिल्म पसंद करते हैं क्योंकि ‘वेक अप सिड’ की गति धीमी है।

कहानी में ज्यादा उतार-चढ़ाव और ड्रामा नहीं है। यह सिर्फ संवादों के सहारे आगे बढ़ती है और सिर्फ दो किरदारों के इर्दगिर्द घूमती है, इसलिए निर्देशक पर यह जिम्मेदारी आ जाती है कि वह इस बात का ध्यान रखे कि दर्शकों की दिलचस्पी बनी रहे। इसमें अयान थोड़े-बहुत कामयाब रहे हैं।

उन्होंने कई दृश्यों को अच्छे से पेश किया है, जैसे आयशा के जन्मदिन को सिड द्वारा सैलिब्रेट करना, सिड और उसके पिता का टकराव, सिड का अपनी माँ से ठीक तरह से पेश नहीं आना और बाद में अपनी गलती मानना। कहा जा सकता है कि अयान में एक अच्छा निर्देशक बनने की संभावनाएँ हैं और उनके प्रस्तुतिकरण में ताजगी है।

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अयान ने अपने कलाकारों से बेहतरीन अभिनय करवाया है। रणबीर कपूर ने सिड के किरदार में जान डाल दी है और उनका ये अब तक का श्रेष्ठ अभिनय है। कोंकणा सेन शर्मा जैसी सशक्त अभिनेत्री के सामने वे कहीं से भी कमजोर नहीं लगे। कोंकणा के लिए इस तरह की भूमिका निभाना बाएँ हाथ का खेल है। अनुपम खेर ने काफी दिनों बाद उम्दा अभिनय किया। राहुल खन्ना और कश्मीरा शाह को ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए।

‘वेक अप सिड’ यादगार फिल्म नहीं है, लेकिन इसमें ताजगी है, जिसकी वजह से यह एक बार देखी जा सकती है।

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