बुद्ध पूर्णिमा...

और बुद्ध के अनुयायी सामिष हो गए

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प्रस्तुति : विवेक हिरदे

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प्रत्युषा के पश्चात प्रकट प्रखर आदित्य सा आभामय मुखमंडल लिए भगवान गौतम बुद्ध अपने कुटीर से बाहर आए और धीर-गंभीर वाणी से शिष्यों से बोले- जाओ बच्चों और रात्रि से पूर्व भिक्षा ग्रहणकर आश्रम लौट आओ। आज पूर्णिमा की सुंदर रात्रि है। हम ध्यान और तपकर भोजन ग्रहण करेंगे, परंतु स्मरण रहे भिक्षापात्र में जो भी भिक्षा मिले, यदि वह खाने योग्य है तो उसे स्वीकार करो, तर्क न करो।

सभी शिष्य गाँव की विभिन्ना दिशाओं में भिक्षापात्र लिए चल पड़े। रात्रि पूर्णिमा के सान्निाध्य में मणिकंचन संयोग लिए अनुपम प्रतीत हो रही थी, क्योंकि प्रकृति के विलक्षण रचना नैपुण्य का सर्वश्रेष्ठ अंश है, रूप, लालित्य, तभी एक शिष्य के भिक्षापात्र में ऊपर उड़ती हुई चील के मुख से मांस का टुकड़ा गिर गया। अजीब संयोग था। शिष्य उसे फेंकना चाहकर भी फेंक नहीं पाया, क्योंकि गौतम बुद्ध ने कहा था कि 'भिक्षापात्र में जो भी भिक्षा मिले यदि वह खाने योग्य है तो उसे स्वीकार करो।' और इसी उधेड़बुन में शिष्य असमंजस की स्थिति में बुद्ध के पास पहुँचा और अपनी समस्या बताई। तत्क्षण बुद्ध बोले- 'यह एक बड़ा अनपेक्षित संयोग है। चील रोज तो ऐसा नहीं करेगी, इसलिए इस मांस को स्वीकार करो, परंतु अपना नियम मत तोड़ो।

और बुद्ध के एकमात्र कथन की परिणति यह हुई कि बौद्धधर्म को मानने वाले सभी लोग सामिष हो गए। आज भी चीन और जापान सहित कुछ देशों में मांस की दुकानों पर लिखा होता है कि 'यहाँ अपने आप मरे हुए पशुओं का मांस मिलता है।' अर्थात इस हेतु कोई पशुहत्या नहीं की गई है।
  प्रत्युषा के पश्चात प्रकट प्रखर आदित्य सा आभामय मुखमंडल लिए भगवान गौतम बुद्ध अपने कुटीर से बाहर आए और धीर-गंभीर वाणी से शिष्यों से बोले- जाओ बच्चों और रात्रि से पूर्व भिक्षा ग्रहणकर आश्रम लौट आओ।      


कुछ समय पूर्व ही मैं शिर्डी यात्रा पर कुछ साधुओं से मिला, जो निरंतर धूम्रपान कर रहे थे। मेरे टोकने पर वे बोले- 'तुम शायद जानते नहीं बाबा भी चिलम पीते थे, हम तो उन्ही के भक्त हैं।' यही हाल गजानन महाराज के शेगाँव तीर्थ स्थल पर है। वहाँ तो सिगरेट-बीड़ी कीदुकानें मंदिर परिसर में बनी हैं। वहाँ भी तर्क यही है कि गजानन महाराज भी तो चिलम पीते थे। पर ये लोग नहीं जानते कि साईंबाबा और गजानन महाराज में कश लगाने के पीछे क्या चमत्कार छिपे रहते थे।

अंततः भगवान बुद्ध ने कुशीनगर में अपने अंतिम उपदेश पर जो बात कही वह कितनी सटीक प्रतीत होती है- 'भिक्षुओं सभी वस्तुएँ नश्वर हैं। प्रयत्न करके अपना उद्धार करो।



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