कैसे हुआ बुद्ध को आत्म ज्ञान!

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यह घटना सिद्धार्थ के बुद्धत्व को प्राप्त होने से मात्र एक दिन पहले की है। बुद्ध ने अपने आध्यात्मिक जीवन में जितने प्रयोग किए उतने आज तक किसी ने नहीं किए।

ऐसा कहा जाता है कि बुद्ध को कोई ज्ञानी जो भी साधना, ध्यान, उपवास, व्रत व जागरण आदि करने की सलाह देता बुद्ध उसे पूरे मनोयोग से संपन्न करते और वह ज्ञानी पुरुष बुद्ध के समक्ष नतमस्तक हो लेता था, क्योंकि ऐसा साधक शिष्य उसने कभी देखा ही नहीं था।

बुद्ध उपवास का प्रयोग कर रहे थे और करते-करते अन्न का एक दाना ही पूरे दिन में खाते थे। उनकी काया दयनीय अवस्था में पहुंच गई और शरीर पूरी तरह से लगभग ऊर्जा रहित हो गया था।

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एक शाम गया की तरफ बढ़ने के लिए वे नदी में कूद पड़े। जीर्ण-शीर्ण और शक्तिहीन थे ही दो-चार हाथ ही आगे बढ़े थे कि डूबने लगे। बड़ी मुश्किल से नदी में बह रहे पेड़ के एक तने को पकड़ा और उस पर सवार होते-होते लगभग अचेतन हो गए।

बुद्ध के कुछ शिष्य दूर से ये सब दृश्य देख रहे थे और उन्हें बड़ी निराशा हुई कि जो व्यक्ति नदी पार नहीं कर सकता, वह हमें भवसागर से कैसे पार कराएगा और वे शिष्य बुद्ध को छोड़कर भाग गए।

बुद्ध को पता भी नहीं चला कि कब वे दूसरे किनारे पर पहुंचे। चेतना लौटने पर वे धीरे-धीरे वहां से चले और एक शिलाखंड पर आकर लेट गए और आकाश को देखने लगे। अभी रात थोड़ी बाकी थी। सितारे आसमान में डूब रहे थे और अब आखिरी सितारा पूरे आकाश में रह गया था। आखिरी सितारे को डूबने में कुछ समय लगाता है।

बुद्ध उसे अपलक निहारते रहे। जब वह तारा डूबा तो बुद्ध उठकर बैठ गए और तत्क्षण बुद्धत्व का प्राप्त हो गए। पौ फटते ही एक जवान कन्या अपनी मन्नत पूरी हो जाने के कारण सुबह-सुबह शिलाखंड के निटक वृक्ष पर खीर चढ़ाने आई थी।

उसने पेड़ के नीचे एक जटाधारी कृषकाय व्यक्ति को देखा। उसे लगा कि पेड़ का देवता आज खुद प्रकट हो गया है। उसने खीर का कटोरा बुद्ध के हाथों में दिया और अपने कार्य बनने का धन्यवाद भी किया।

बुद्ध को बात समझते देर न लगी। उन्होंने पूछा - बालिका तुम्हारा नाम क्या है?
कन्या का नाम सुजाता था। वह दलित कन्या थी। बुद्ध को खीर खाता देख, शेष दो-चार शिष्य भी जो साथ थे भाग खड़े हुए। बुद्ध ने कुछ दिन उसी पेड़ के सान्निध्य में व्यतीत किए और फिर बौद्ध धर्म के प्रचार में लग गए।

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