भगवान गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख माह की पूर्णिमा को हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार यह पूर्णिमा 26 मई 2021 बुधवार को मनाई जाएगी। आओ जानते हैं गौतम बुद्ध और खूबसूरत आम्रपाली के संबंधों के बारे में कुछ खास।
1. बिहार में एक जिला है जिसका नाम वैशाली है। यहां की नगरवधू आम्रपाली और यहां के राजाओं के किस्से इतिहास में भरे पड़े हैं। कहते हैं कि एक गरीब दंपति को एक अबोध मासूम लड़की आम के पेड़ के नीचे मिली। पता नहीं कौन था उसके माता पिता और क्यों उसे आम के वृक्ष ने नीचे छोड़ कर चले गए। आम के नीचे मिलने के कारण उसका नाम आम्रपाली रखा गया।
2. आम्रपाली जब किशोरावस्था में पहुंची तो उसके रूप और सौंदर्य की चर्चा नगर में फैल गई। नगर का हर पुरुष उससे विवाह करने के लिए लालायित हो उठा। राजा से लेकर व्यापारी हर कोई आम्रपाली को पाना चाहता था। उसके माता पिता के समक्ष अब दुविधा और भय उत्पन्न हो चला था। अगर आम्रपाली किसी एक को चुनती तो राज्य में अशांति फैल जाती।
3. जब वैशाली के राज प्रशासन को यह पता चला तो उन्होंने नगर में शांति स्थापित करने के लिए आम्रपाली को क्रमानुसार अंत में नगरवधू बना दिया। आम्रपाली को जनपथ कल्याणी की उपाधि 7 साल के लिए दी गई। इसे साम्राज्य की सबसे खूबसूरत और प्रतिभाशाली महिला को दिया जाता था। आम्रपाली को अपना महल मिला। सेविकाएं मिली और लोगों से शारीरिक संबंध बनाने के लिए चयन का अधिकार भी मिला। इसके साथ ही वह दरबार की नर्तकी भी बन गई। आम्रपाली के रूप की चर्चा जगत प्रसिद्ध थी और उस समय उसकी एक झलक पाने के लिए सुदूर देशों के अनेक राजकुमार उसके महल के चारों ओर अपनी छावनी डाले रहते थे।
4. वैशाली में गौतम बुद्ध के प्रथम पदार्पण पर उनकी कीर्ति सुनकर उनके स्वागत के लिए सोलह श्रृंगार कर अपनी परिचारिकाओं सहित आम्रपाली गंडक नदी के तट पर पहुंची। आम्रपाली को देखकर बुद्ध को अपने शिष्यों से कहना पड़ा कि तुम लोग अपनी आंखें बंद कर लो या नीचे कर लो..., क्योंकि भगवान बुद्ध जानते थे कि आम्रपाली के सौंदर्य को देखकर उनके शिष्यों के लिए संतुलन रखना कठिन हो जाएगा।
5. ज्ञान प्राप्ति के पांच वर्ष पश्चात भगवान बुद्ध का वैशाली आगमन हुआ और उनका स्वागत वहां की प्रसिद्ध राजनर्तकी आम्रपाली ने किया था। बौद्ध धर्म के इतिहास में आम्रपाली द्वारा अपने आम्रकानन में भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों को निमंत्रित कर भोजन कराने के बाद दक्षिणा के रूप में वह आम्रकानन भेंट देने की बड़ी ख्याति है।
6. यह भी कहते हैं कि आम्रपाली एक बौद्ध भिक्षु पर मोहित हो गईं थी। आम्रपाली ने बौद्ध भिक्षु को ना केवल खाने पर आमंत्रित किया बल्कि 4 महीने के प्रवास के लिए भी अनुरोध किया था। बौद्ध भिक्षु ने उत्तर दिया कि वह अपने गुरू बुद्ध की आज्ञा के बाद ही ऐसा कर सकते हैं। अंत में आम्रपाली ने गौतम बुद्ध से कहा कि मैं आपके भिक्षु को मोहित नहीं कर पाई और उनकी आध्यात्मिकता ने मुझे ही मोहित कर धम्म की राह पर चलने को विवश कर दिया है।
7. आम्रापानी ने गौतम बुद्ध के समक्ष भिक्षु बनने की इच्छा प्रकट की परंतु पहले तो बुद्ध ने इसके लिए इनकार कर दिया। हालांकि इस घटना के बाद ही बुद्ध ने स्त्रियों को बौद्ध संघ में प्रवेश की अनुमति दी थी। आम्रपाली इसके बाद सामान्य बौद्ध भिक्षुणी बन गई और वैशाली के हित के लिए उसने अनेक कार्य किए। उसने केश कटा कर भिक्षा पात्र लेकर सामान्य भिक्षुणी का जीवन व्यतीत किया।
बुद्ध और आम्रपाली की कथा : आम्रपाली और गौतम बुद्ध की कहानी कई तरह से पढ़ने को मिलते हैं। इस संबंध में एक कथा मिलती है कि एक बार भगवान बुद्ध विचरते हुए वैशाली के वन-विहार में आए। नगर में उनके दर्शन करने के लिए आमजनों के साथ ही नगर के बड़े-बड़े श्रेष्ठिजन भी उनके दर्शन के लिए पहुंचे। हर किसी की इच्छा थी कि तथागत उसका निमंत्रण स्वीकार करें और उसके घर भोजन करने के लिए पधारें। वैशाली की सबसे सुंदर और प्रतिष्ठित गणिका आम्रपाली भी बुद्ध के तपस्वी जीवन को देखकर प्रभावित हो चुकी थी तथा वह भी अपना यह घृणित जीवन छोड़कर भिक्षुणी बनना चाहती थीं। यही सोचकर वह भी गौतम बुद्ध को निमंत्रण देने पहुंच गई।
बुद्ध ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया और वे उसके घर हो भी आए। जब उनके शिष्यों को इस बात का पता चला तो उन्होंने बुरा मान कर उनसे स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने एक गणिका के घर जाकर बड़ा ही अनुचित कार्य किया है। अपने शिष्यों की बात सुनकर तथागत उन सबसे बोले, 'श्रावको! आप लोगों को आश्चर्य है कि मैंने गणिका के घर कैसे भोजन किया। उसका कारण यह है कि वह यद्यपि गणिका है किंतु उसने अपने को पश्चाताप की अग्नि में जलाकर निर्मल कर लिया है।
जिस धन को पाने के लिए मनुष्य मनौतियां करता हैं और न जाने क्या-क्या तरीके इस्तेमाल करता है, उसी को आम्रपाली ने तुच्छ मानकर लात मारी है और अपना घृणित जीवन त्याग दिया है। ऐसे में मैं उसका निमंत्रण कैसे अस्वीकार कर सकता था। आप लोग स्वयं सोचे कि क्या अब भी उसे हेय माना जाए?'
गौतम बुद्ध की बात सुनकर सभी शिष्यों को महसूस हुआ कि बुद्ध तो सही बात कर रहे हैं। इसलिए उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ और उन्होंने तथागत से क्षमा मांगी। बुद्ध ने भी अपने शिष्यों को माफ कर दिया।